रोएसलर ने की भारत में सुधारों की मांग
२ नवम्बर २०१२नई दिल्ली के निकट गुड़गांव में जर्मन अर्थव्यवस्था का एशिया प्रशांत सम्मेलन शुरू हुआ है. पहले दिन की बैठक का नतीजा था, कमजोर होता आर्थिक विकास, संरक्षणवाद और असमान प्रतियोगिता एशिया में निवेश की सबसे बड़ी बाधाएं हैं. जर्मनी के अर्थनीति मंत्री फिलिप रोएसलर ने कहा, "मैं समझता हूं कि ये देश विदेशी निवेश पर निर्भर हैं. इसलिए उन्हें ऐसे बाजारों की जरूरत है जो आज के मुकाबले ज्यादा खुले हैं." उन्होंने एशियाई देशों से संरचनात्मक सुधार करने और निष्पक्ष प्रतियोगिता की मांग की.
पिछले दस साल में जर्मनी से एशियाई देशों को होने वाले निर्यात में हर साल 9 फीसदी की वृद्धि हुई है. यह कुल निर्यात का दुगुना है. रोएसलर ने कहा कि यदि जर्मन अर्थव्यवस्था को इस इलाके में अपनी सक्रियता बढ़ानी है तो उसे स्पष्ट नियमों और दूरगामी भरोसेमंद कानूनों की जरूरत है. उन्होंने कहा कि इलाके के नौजवानों को रोजगार चाहिए. "विकास के अंत में नौकरियां पैदा होती हैं." जर्मन के उप चांसलर रोएसलर ने स्पष्ट किया कि जर्मन कंपनियां भारत को बिजलीघरों के निर्माण में मदद कर सकती हैं.
सीमेंस के प्रमुख पेटर लोएशर जर्मन अर्थव्यवस्था के एशिया प्रशांत आयोग के अध्यक्ष हैं. उन्होंने एशियाई देशों की सरकारों से बौद्धिक संपदा की सुरक्षा करने की अपील की. उन्होंने कहा, "अच्छे शासन के बिना निष्पक्ष प्रतियोगिता भी संभव नहीं है." उन्होंने ऐसे नियमों को जरूरी बताया जो सार्वजनिक टेंडर की सुरक्षा करें. लोएशर ने कहा कि गिरती विकास दर के कारण भारत के सबसे अच्छे दिन नहीं हैं, लेकिन फिर भी अच्छे दिन हैं. ढांचागत संरचना के विकास में देरी भारत की सबसे बड़ी समस्या है.
अर्थनीति मंत्री रोएसलर ने नई दिल्ली में भारत के वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा से भी मुलाकात की. रोएसलर ने यूरोपीय संघ के साथ भारत की मुक्त व्यापार संधि की वार्ता को कठिन वार्ता बताया तो आनंद शर्मा ने उम्मीद जताई कि दिसम्बर या जनवरी तक वार्ता पूरी हो जाएगी. रोएसलर ने कहा कि ऑटोमोबाइल और मशीनरी उद्योग के क्षेत्र में ड्यूटी कम करने के मुद्दे पर मुश्किलें हैं लेकिन यूरोपीय संघ को छोटी मोटी बातों पर नहीं अड़ना चाहिए. आनंद शर्मा ने कहा कि 8 नवम्बर को ब्रसेल्स में होने वाली भेंट में यदि अधिकारियों के बीच सहमति हो जाती है तो दिसम्बर या जनवरी में मंत्रिस्तरीय वार्ता संभव है.
जर्मनी ट्रेड एंड इन्वेस्ट संस्था के अनुसार भारत और जर्मनी के बीच कारोबार पिछले दस साल सालों में तिगुना हो गया है. 2011 में दोनों देशों के बीच 18 अरब यूरो का दोतरफा कारोबार हुआ जिसके इस साल 20 अरब यूरो हो जाने की उम्मीद है. इंडो-जर्मन चैंबर ऑफ कॉमर्स का मानना है कि 1000 से ज्यादा जर्मन कंपनियां भारत में मौजूद हैं.
एमजे/एएम (डीपीए)