विदेशी दखलंदाजी की बलि चढ़ता सीरिया
१ सितम्बर २०१२डीडब्ल्यूः डीडब्ल्यू सीरियाई सीमा पर कुर्दी लड़ाकों से मिले हैं. यह लोग दावा करते हैं कि इन्होंने एक भी गोली नहीं चलाई. देश में बढ़ी हिंसा के मद्देनजर यह मानना मुश्किल है.
सालीह मुस्लिम मुहम्मदः चाहे आप माने या न माने, यह शायद देश का एकमात्र हिस्सा है जहां सीरियाई लोगों की तमन्नाओं की कद्र की जाती है क्योंकि इस इलाके में कोई विदेशी ताकत दखलंदाजी नहीं कर रही. शुरुआत से ही हम कुर्द लोग आजादी और लोकतंत्र के लिए लड़ रहे हैं, हम एक शांतिपूर्ण क्रांति चाहते थे, हिंसक नहीं. सत्ता ने विरोधी आंदोलनों को हिंसक बना दिया क्योंकि वे ज्यादा ताकतवर हैं. अब तक हम अपने को सुरक्षित रखने में सफल रहे हैं और हमारे इलाके भी शांत हैं हालांकि कोबानी और आफ्रिन में कुछ एक आध हिंसक घटनाएं हुई हैं. हम इस क्रांति का हिस्सा जरूर हैं लेकिन हम अपनी तरह का सीरिया चाहते हैं, और लोगों के हिसाब का नहीं.
लेकिन अफवाहों के मुताबिक आपकी पार्टी ने बशर अल असद की सरकार के साथ युद्धविराम का समझौता किया है.
किसी के साथ किसी भी तरह का समझौता नहीं हुआ है. आप मुझे बताइए. सीरिया में लड़ाई कराना कौन चाहता है, तुर्की? हमारे तुर्की से कोई संबंध नहीं हैं. नाटो? सऊदी अरब? कतर? हमारे इनसे कोई संबंध नहीं हैं क्योंकि इन्होंने कभी हमारे अस्तित्व को स्वीकार नहीं किया, किसी ने सीरिया के कुर्दों का सहयोग नहीं किया. दमिश्क जानता है कि हमें अपने संवैधानिक अधिकार चाहिए और वे इसलिए हमसे डरते नहीं. हमें पता था कि असद की सरकार दो महीने में नहीं गिरेगी और इसलिए हमने अपने लोगों को जन रक्षा समितियों में संगठित किया. पिछले साल हमने चेकपोस्ट भी लगाए और सरकार कुछ नहीं कर सकी. जुलाई में फ्री सीरिया आर्मी और असद के सैनिकों के बीच लड़ाई हुई, कोबानी के बिलकुल पास जो दमिश्क की खुफिया जानकारी के लिए बहुत अहम है. लेकिन कमिश्ली जैसे इलाकों में असद की अपनी सीमा चौकियां हैं. वहां पर न तो कोई तैनात है और वह शहर में चौकीदारी भी नहीं कर रहे हैं.
इस बात का खतरा कितना बड़ा है कि सीरिया इराक की तरह सांप्रदायिक झगड़ों में फंस जाएगा?
सांप्रदायिक संघर्ष में घुसने का खतरा बहुत ज्यादा है. वास्तव में स्थिति उसी तरफ जा रही है, लेकिन जैसा मैंने कहा है कि सीरिया के लोगों ने यह अपने लिए नहीं चुना. हम जानते हैं कि हमें अपने अधिकारों के लिए लड़ना होगा और सुरक्षित करना होगा कि हमारी क्रांति की चोरी न हो जाए, जैसे कि बाकी अरब देशों में हुआ है. अलेपो को देखिए, वहां हथियारों से लैस कितने लोग हैं, कई विदेशी हैं. वे यहां क्या कर रहे हैं? हम कभी अल कायदा या उससे संबंधित गुट को हमारे इलाकों में आने नहीं देंगे.
लेकिन कई स्रोत बाते हैं कि इलाके के आसपास अरब गांवों को दमिश्क से हथियार मिले हैं. क्या यह सच है?
हमें पता है कि सरकार ने उन्हें हथियार दिए हैं लेकिन हम उनके खिलाफ नहीं लड़ेंगे जब तक कि वे हम पर हमला न करें. हमें अरबों और कुर्दों के बीच संघर्ष हर हालत में रोकना होगा. हमें पड़ोसियों की तरह रहना है इसलिए हम हिंसा को दूर रखने की कोशिश करते हैं.
तुर्की को आपकी पार्टी पीवाईडी के बढ़ते प्रभाव से चौकन्ना है और उसे शंका है कि यह कुर्दिस्तान मजदूर पार्टी पीकेके से संपर्क रखती है. पीकेके 28 साल से तुर्की के साथ संघर्ष कर रही है?
तुर्की सबको बताना चाहता है कि हम आतंकवादी हैं क्योंकि उसे डर है कि हमें अपने हक मिल जाएंगे. हम एक सीरियाई पार्टी हैं और हमारे पीकेके से कोई संबंध नहीं है. हमारी सेना भी नहीं है, हमारी बस सुरक्षा समितियां हैं और वे अपने घरों के लिए हथियार लेते हैं. और हम उन लोगों में से हैं जिन्होंने सीरिया में विपक्ष बनाया है तो तुर्की को हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए.
सीरिया में बढ़ते संघर्ष को रोकने के लिए आपके पास क्या प्रस्ताव हैं?
सीरिया के लोगों को खुद फैसला करना चाहिए. असद की सरकार हिंसक है, लेकिन आज भी, सीरिया के लोग अपना रास्ता तय कर लेते अगर इतने सारे विदेशी ताकत इसमें शामिल नहीं होते. अफसोस की बात यह है कि सरकार ईरान और रूस से हथियार ले रही है और फ्री सीरिया आर्मी को सऊदी अरब, कतर और तुर्की सहयोग दे रहे हैं. कोफी अन्नान का प्रस्ताव काम करता लेकिन सरकार और विदेशी ताकत, दोनों इसे नहीं चाहते थे. चीन और रूस भी असद से हथियार डलवाने के पक्ष में थे लेकिन पिछले जून जेनेवा में योजना को जमीनी तौर पर कोई अहमियत नहीं दी गई. आज किसी को नहीं पता है कि सीरिया का विभाजन होगा या नहीं. जो भी हो, हमें अपनी सुरक्षा की तैयारी करनी होगी, चाहे वह इस शासन में हो या विपक्ष की सरकार में या हमारे इलाके में तुर्की कार्रवाई के खिलाफ.
इंटरव्यूः कार्लोस जुरूतूसा, कमिश्ली, सीरिया /एमजी
संपादनः आभा मोंढे