शेरी रहमान अमेरिका में पाकिस्तान की नई राजदूत
२३ नवम्बर २०११प्रधानमंत्री कार्यालय के प्रवक्ता अकरम शाहीदी ने कहा, "प्रधानमंत्री ने शेरी रहमान को अमेरिका नया राजदूत नियुक्त किया है." रहमान राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी की पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी की पुरानी सदस्य हैं और लोकतांत्रिक सरकार की पक्की समर्थक भी. जानकारों के लिए उनकी नियुक्ति हैरान करने वाली है. क्योंकि उम्मीद की जा रही थी कि हुसैन ह्क्कानी के बाद सरकार सेना से करीबी किसी शख्स को इस पद पर नियुक्त करेगी. डर ये भी था कि शेरी रहमान की नियुक्ति पर तो सेना तैयार ही नहीं होगी.
सेना के रिटायर्ड जनरल और जाने माने विश्लेषक तलत मसूद कहते हैं, "यह शानदार चुनाव है. वह संसद के सुरक्षा पैनल में रही हैं. वह सुरक्षा से जुड़े मुद्दों को समझती हैं साथ ही उनके सेना से अच्छे रिश्ते हैं." यही सारी बातें पूर्व राजदूत हुसैन हक्कानी के लिए सही नहीं हैं. मंगलवार को हक्कानी ने इस्तीफा दे दिया. कुछ ही दिन पहले एक पाकिस्तानी अमेरिकी कारोबारी ने उन पर आरोप लगाया कि अमेरिकी रक्षा विभाग को एक मेमो भेजा गया था जिसमें पाकिस्तानी सेना के तख्तापलट की आशंका जताते हुए मदद मांगी गई थी. हालांकि हक्कानी ने इन आरोपों से इनकार किया है.
इस विवाद ने पाकिस्तान की राजनीति की उस बुनियादी समस्याओं को एक बार फिर उजागर कर दिया जो 1947 में देश बनने के बाद से ही वहां कायम है. यहां सत्ता के लिए सेना और राजनेताओं के बीच जंग एक आम बात है. परमाणु शक्ति से लैस इस दक्षिण एशियाई देश के इतिहास का आधा से अधिक समय ऐसा बीता है जब सेना बैरकों की बजाय सत्ता के गलियारों में काबिज रही.
शेरी रहमान पहले पत्रकार थीं और 2008 के चुनावों के बाद जब पाकिस्तान में लोकतांत्रिक सरकार का गठन हुआ तो उन्हें सूचना मंत्री बनाया गया. राष्ट्रपति जरदारी ने 2009 में जब मीडिया पर कुछ अंकुश लगाने के लिए कदम उठाया तो उनसे नाराज हो कर शेरी रहमान ने इस्तीफा दे दिया. महिला अधिकारों और अल्पसंख्यकों के हक की पक्की हिमायती शेरी रहमान को मौत की धमकी भी मिली है. उन्होंने देश के कठोर ईशनिंदा कानून में सुधार करने की मांग उठाई है और इसलिए कट्टरपंथियों के निशाने पर हैं.
पाकिस्तान के सैन्य मामलों की जानकार आयशा सिद्दिकी का कहना है कि रहमान को पाकिस्तान की राजनीति की दोनों धाराओं में जगह हासिल है. सिद्दिकी ने कहा, "अगर आप शेरी को भेजते हैं तो आप सत्तातंत्र की स्थिति को सामने रख सकेंगे और हां वह मानवाधिकारों के पक्ष में भी हैं और पीपीपी की सदस्य भी." उनके यह सब गुण उनके लिए अमेरिका में जगह बना देंगे. वॉशिंगटन में तो हक्कानी की भी बड़ी पूछ थी. माना जा रहा है कि मानवाधिकार के लिए शेरी रहमान का अभियान और उनकी उदारवादी छवि अमेरिका में हक्कानी को पसंद करने वाले लोगों को दुखी होने से बचा लेगी.
रिपोर्टः एएफपी, एपी, डीपीए/ एन रंजन
संपादनः ओ सिंह