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सरपट दौड़ता चीन और घिसटता भारत

१८ अगस्त २०११

कश्मीर तक रेल पहुंचाने की परियोजना साफ तौर पर दिखाती है कि बुनियादी ढांचे का विस्तार करने में भारत किस कदर चीन से पीछे है. भारत 25 साल में सिर्फ एक चौथाई काम पूरा कर पाया है जबकि पहाड़ी सरहद पर चीन पूरा मुस्तैद है.

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तस्वीर: picture-alliance/ dpa

भारत से लगने वाली सीमा को चीन ने तेजी से अपने सड़क और रेल मार्ग से जोड़ दिया है. भारत ने भी 25 साल पहले कश्मीर को बाकी देश से जोड़ने के लिए रेल परियोजना पर काम शुरू किया. यह खास कर वह इलाका है जहां दो दशकों से आजादी की मांग उठ रही है. लेकिन अब तक 345 किलोमीटर तक बिछने वाली रेल पटरी का लगभग 25 फीसदी काम ही पूरा हो सका है.

सुरंगें ध्वस्त होने, पैसे की कमी, पीर पंजाल की पहाड़ियों में 11 हजार फुट तक रेलवे ट्रैक बिछाने की चुनौती, रेलवे अधिकारी और भूगर्भ विज्ञानियों के बीच तनातनी को इस परियोजना में लेट लतीफी की वजह बताई जा रही है. प्रस्तावित रेल पाकिस्तान सीमा के काफी नजदीक तक जाएगी. उसे भारत सरकार के खिलाफ लड़ रहे उग्रवादियों से भी खतरा होगा. जब यह प्रोजेक्ट शुरू हुआ तो कई इंजीनियरों का अपहरण भी किया गया.

Kaschmir Landschaft
तस्वीर: picture-alliance/ dpa

कहां चीन और कहां भारत

चीन की रेल व्यवस्था भी कांडों से अछूती नहीं है. पिछले महीने ही बुलेट ट्रेन हादसे में 40 लोग मारे गए जिसके बाद इस तरह के नए प्रोजेक्ट को कुछ समय के लिए ठंडे बस्ते में डाल दिया गया है. लेकिन चीन ने अब तक 1,140 किलोमीटर लंबी छिंगहाई-तिब्बत लाइन पूरी कर ली है. यह पटरी लगभग पूरे साल जमे रहने वाले इलाकों से गुजरती है और समुद्र तल से पांच हजार मीटर ऊपर जाती है. यह काम सिर्फ पांच साल में पूरा कर लिया गया.चीन ने भारत से लगने वाले मोर्चे तक पक्की सड़क भी तैयार कर ली है, जिसके सहारे संकट की सूरत में चीनी सेना इस इलाके तक पहुंच सकती है.

भारत और चीन, दोनों ही आर्थिक ताकत के तौर पर उभर रहे हैं. लेकिन बुनियादी ढांचे का विकास करने में चीन भारत से कहीं आगे दिखता है. दोनों देशों के बीच लंबे क्षेत्र में फैले सीमा विवाद को देखते हुए चीन की यह क्षमता उसे अधिक मजबूत बनाती है.

चीन का रेल नेटवर्क जहां हिमालय के उत्तर तक पहुंचता है वहीं भारत का प्रस्तावित रेल मार्ग हिमालय के दक्षिण को छुएगा. साफ है कि दोनों देश इस इलाके पर राजनीतिक और आर्थिक पकड़ मजबूत करना चाहते हैं. नक्शे पर देखे तो चीन तिब्बत पर और भारत कश्मीर पर पूरे नियंत्रण को और मजबूत करना चाहता है. संकट पैदा होने की स्थिति में इन इलाकों तक सेना को तुरंत पहुंचाना भी रणनीति का हिस्सा है. इस तरह की स्थिति भारत और चीन संबंधों के बिगड़ने या फिर तिब्बत में दंगे भड़कने पर पैदा हो सकती है. रेल और सड़क दशकों से चीन ही हिमालय संबंधी रणनीति का हिस्सा रहे हैं.

Einweihung Bahnlinie Kaschmir
तस्वीर: AP

भारत तय करे प्राथमिकताएं

लंदन के रॉयल यूनाइटेड सर्विस इंस्टिट्यूट के शशांक जोशी कहते हैं, "कम से कम तीन क्षेत्रों में चीन ने भारत को पीछे छोड़ दिया है. ये हैं बड़े और मुश्किल प्रोजेक्टों को पूरा करना, तेजी से योजनाओं को लागू करना और आर्थिक और राजनीतिक उद्देश्यों के लिए दूरदर्शी परियोजनाएं शुरू करना." जोशी भारत चीन संबंधों पर काफी कुछ लिखते रहे हैं. वह मानते हैं कि चीन अपनी नाकामियों को छिपाने में भी बहुत माहिर है क्योंकि उनके यहां बंद राजनीतिक व्यवस्था है और उसका सूचना प्रबंधन बहुत बढ़िया है.

दूसरी तरफ भारत ने अब तक इस क्षेत्र में अपनी प्राथमिकताएं तय नहीं की हैं जबकि यहां उसकी सीमाएं दो प्रतिद्वंद्वी देशों पाकिस्तान और चीन से मिलती हैं. जोशी कहते हैं, "भारत को तय करना होगा कि वह क्या चाहता है. अगर कश्मीर का एकीकरण सर्वोच्च राष्ट्रीय प्राथमिकता है तो यह परियोजना बहुत पहले युद्ध स्तर पर चली जानी चाहिए थी."

रिपोर्टः एजेंसियां/ए कुमार

संपादनः वी कुमार

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