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सिद्धार्थ मुखर्जी को पुलित्जर पुरस्कार

१९ अप्रैल २०११

भारतीय मूल के 40 वर्षीय डॉक्टर सिद्धार्थ मुखर्जी को इस वर्ष नॉन फिक्शन वर्ग में पुलित्जर पुरस्कार से सम्मानित किया गया है. यह पुरस्कार उनकी पुस्तक 'बीमारियों का बादशाह : कैंसर की कहानी' के लिए दिया गया है.

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तस्वीर: dapd

कैंसर की कोशिकाएं तेजी से बढ़ती हैं, वे माहौल के मुताबिक अपने आपको बेहतर ढालती हैं. वे हमारी बेहतर संस्करण हैं. - अपनी पुस्तक की प्रस्तावना में सिद्धार्थ मुखर्जी कहते हैं. उनका कहना है कि अगर हम अमर होना चाहते हैं, तो अपने विकृत तरीके से कैंसर की कोशिकाएं भी यही करती हैं. 40 साल के सिद्धार्थ मुखर्जी न्यूयार्क की कोलंबिया यूनिवर्सिटी में मेडिसीन के असिस्टेंट प्रोफेसर हैं. दिल्ली के सफदरजंग एनक्लेव मे पले सेलुलर बायलॉजिस्ट ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के छात्र रहे हैं. 'बीमारियों का बादशाह : कैंसर की कहानी' उनकी पहली किताब है और प्रकाशन के बाद ही इसे भारी सफलता मिली है. न्यूयार्क टाइम्स में इसे सन 2010 की 10 बेहतरीन किताबों में से एक कहा गया था. टाइम्स मैगजीन ने भी इसे 10 बेहतरीन नॉन फिक्शन की तालिका में रखा था. सिद्धार्थ मुखर्जी यह पुरस्कार पाने वाले भारतीय मूल के चौथे अमेरिकी हैं.

अपनी पुस्तक में उन्होंने कैंसर से संबंधित सदियों के आविष्कारों, उसके खिलाफ संघर्ष में नाकामियों, कामयाबियों और मौत के डर के बारे में प्रकाश डाला है. कैंसर की बारीकियों के बारे में सरल भाषा में दी गई जानकारी के साथ साथ उनके विवरण से पता चलता है कि डॉक्टरों और रोगियों के साथ कैंसर का कैसा अनोखा रिश्ता रहा है, कैसे यह रोग हमारे अस्तित्व के साथ जुड़ चुका है.

सिद्धार्थ मुखर्जी ने जानकारी दी थी कि इस पुस्तक को तैयार करने में उन्हें दस साल लगे. दस साल, जो इस रोग के बारे में जानकारी और उसके इलाज के सिलसिले में महत्वपूर्ण रहे हैं. लेकिन जहां तक इंसान के साथ उसके रहस्यमय संबंध का सवाल है, गुत्थियां सुलझी नहीं हैं. यह पुस्तक उस रहस्य को पाठक के सामने पेश करने की कोशिश करता है - सफलता के साथ.

रिपोर्ट: उज्ज्वल भट्टाचार्य

संपादन: एन रंजन

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