अपराध में डूबते भारत के नाबालिग
६ जून २०१२सरकारी एजेंसी की रिपोर्ट के मुताबिक भारत के युवा कई तरह की आपराधिक गतिविधियों में डूबते जा रहे हैं. इसकी कई वजहें हैं लेकिन आर्थिक असमानता सबसे अहम है. रिपोर्ट के मुताबिक कई बार किशोर अपराध गुस्से या बदला लेने के लिए करते हैं और कई बार तो फिल्मों में देखे गए दृश्यों की नकल करने के लिए भी अपराध करते हैं.
दिल्ली के एक नामी स्कूल में पढ़ने वाले 14 साल के लड़के की उसके दोस्तों से बहस हो गई इसके बाद दोस्तों ने ही उसकी हत्या कर दी. इसी तरह चेन्नई में भी एक मामला सामने आया था. एक महिला अध्यापक को उसके 15 साल के विद्यार्थी ने चाकू से गोदकर मार डाला था. वजह सिर्फ इतनी थी कि महिला अध्यापक ने विद्यार्थी की कॉपी में जो टिप्पणी लिखी थी वो उसे पसंद नहीं आई थी. इसी तरह के एक अन्य दिल दहलाने वाले हादसे में उड़ीसा की एक 16 साल की लड़की के साथ उसकी क्लास के ही लड़को ने ही बलात्कार किया था.
ताजी रिपोर्ट
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की ये रिपोर्ट बताती है भारत में जितने भी अपराध होते हैं उसका 2 फीसदी नाबालिगों के हाथों होता है. हालांकि दूसरे देशों के मुकाबले ये फिर भी कम है लेकिन गैर सरकारी संगठन प्रयास के आमोद कंठ का मानना है कि इस तरह के मामले बढ़ रहे हैं. और सरकारी आंकडे़ समस्या के बेहद छोटे हिस्से के बारे में ही बात करते हैं.
कंठ के मुताबिक 2000 में बना नाबालिग न्याय संरक्षण कानून इसके लिए जिम्मेदार है. गरीब लड़कों के साथ कठोरता से व्यवहार किया जाता है.लेकिन जिनके पास पैसा है वो अपराध करके भी बच जाते हैं. नाबालिगों के बीच फैलते अपराध को कभी गंभीरता से नहीं लिया गया. इस कानून के तहत पुलिस के पास 7 साल के कम उम्र के बच्चों के खिलाफ भी मामला दायर करने का अधिकार होता है लेकिन पुलिस इसे गंभीरता से नहीं लेती और मामले को निजी स्तर पर निपटाती है. बच्चों के अधिकारों के लिए काम करने वाले हक़ सेंटर फॉर चाइल्ड राइट्स (एचएक्यूसीआरसी) की उपनिदेशक एनाक्षी गांगुली ठुकराल कहती हैं, "अमीर और गरीबों के बीच बढ़ती खाई का असर बच्चों पर होता है. अच्छी, संपन्न जीवन शैली उनके दिमाग में बस जाती है. उपभोक्तावाद और भौतिकवाद और सामाजिक दबाव में फंस जाते हैं. इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए वह अपराध और हिंसा के रास्ते पर पहुंच जाते हैं."
नेशनल क्राइम ब्यूरो के मुताबिक नाबालिगों के 40 फीसदी अपराध आर्थिक कारणों से जुड़े होते हैं. आर्थिक अपराध के बाद 3 फीसदी केस हत्या और 1.8 फीसदी केस बलात्कार के होते हैं. आंकड़े बताते हैं कि केवल गरीब लड़के ही नहीं अमीर घरों के लड़के भी आपराधिक गतिविधियों में शामिल होते हैं.
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक जिन नाबालिगों को अपराध के कारण गिरफ्तार किया गया उनमें से 27 फीसदी निरक्षर थे. 72 फीसदी का ताल्लुक गरीबी रेखा से नीचे के परिवार से था जबकि 6.8 प्रतिशत निम्न मध्यवर्ग की आय वाले परिवार से और 0.2 फीसदी अधिक आय वाले परिवार से होते हैं. लेकिन इन आंकड़ों का यह भी मतलब नहीं है कि अमीर परिवारों के किशोर ऐसे अपराध नहीं करते. ठुकराल का अनुभव है कि गरीब किशोरों के साथ कड़ा व्यवहार होता है जबकि अमीर बच जाते हैं. कंठ का मानना है कि किशोरों को यह समझ में आना चाहिए कि कानून सभी के लिए एक तरह से और प्रभावी तरीके से काम कर सकता है. क्योंकि अभी कई उदाहरण ऐसे हैं जहां न्याय नहीं किया गया है. आमोद कंठ कहते हैं, "हमारी कानून व्यवस्था में खामी है. कई बड़े अपराधी कानून के शिकंजे से बच खुले घूमते हैं. इससे नाबालिग सोचते हैं कि वह भी कोई भी अपराध करके बच सकते हैं."
रिपोर्टः तनुश्री शर्मा संधु / वीडी
संपादनः आभा मोंढे