अफगानिस्तान का फुटबॉल लीग
१७ जुलाई २०१२शो का नाम है, "मैदान ए सब्ज" यानी हरा मैदान. इसमें हजारों युवाओं ने अपने नाम लिखाए हैं. जीतने वालों को अफगानिस्तान के आठ फुटबॉल क्लबों में से किसी एक में खेलने का मौका मिलेगा. इस प्रोजेक्ट पर जम कर काम कर रहे अब्दुल सबोर वलीजादा का कहना है कि उनकी कोशिश हर अफगान के घर तक फुटबॉल पहुंचाना, बिजनेस तेज करना और खेल के जरिए देश की भावना को बढ़ाना है.
अफगान फुटबॉल टीम के सदस्य रह चुके वलीजादा कहते हैं, "बरसों तक गृह युद्ध और जंग के बाद लोग फुटबॉल पर फोकस कर सकेंगे. हर इलाके के बिजनेसमैन सबसे अच्छे खिलाड़ियों को लेने की कोशिश करेंगे. यह राष्ट्रीय एकता भी बनाएगा. मान लीजिए कि सेंट्रल जोन में कोई बहुत अच्छा खिलाड़ी है और दक्षिण जोन उसे खरीदना चाहेगा, तो इससे एकता बनेगी. वे लोग उसकी जात और कबीले के बारे में नहीं सोचेंगे. वे सिर्फ यह सोचेंगे कि वह कैसा खिलाड़ी है."
इस लीग का काम काज अफगान फुटबॉल फेडरेशन देखेगा और रौशन टेलीकॉम डेवलपमेंट और एमओबीवाई इसे प्रायोजित करेंगे. रौशन अफगानिस्तान की प्रमुख कम्युनिकेशन कंपनी है, जबकि एमओबीवाई बड़ी मीडिया कंपनी, जिसका टोलो टीवी पूरे देश में लोकप्रिय है. इसी टीवी पर वह रियालिटी शो आ रहा है, जिसमें खिलाड़ियों को चुना जाना है. सितंबर में पहला सीजन होगा और इसमें 16 मैच खेले जाएंगे.
कैसा है रियालिटी शो
इस शो के आठ एपिसोड अलग अलग शहरों में रिकॉर्ड कर लिए गए हैं. इनमें राजधानी काबुल, दक्षिण में कंधार, उत्तर में मजार ए शरीफ, पश्चिम में हेरात और पूर्व में जलालाबाद शामिल हैं. हजारों उम्मीदवारों में से सिर्फ गिने चुने लोगों को ही चुना जाएगा.
रियालिटी शो इतना आसान नहीं. युवा फुटबॉलरों को शारीरिक, मानसिक और फुटबॉल की दक्षता साबित करनी होगी. उन्हें टखनों में वजन बांध कर कीचड़ और पानी में दौड़ लगानी है. इसके बाद स्टूडियो के दर्शक 18 सर्वश्रेष्ठ फाइनलिस्ट चुनेंगे. प्रतियोगिता खत्म होने के बाद कुल मिला कर 168 लोग चुने जाएंगे. इनसे आठ टीमें बनाई जाएंगी.
इस बीच मैदान ए सब्ज की शुरुआत हो चुकी है. पहले एपिसोड में लायोनेल मेसी, पेले और क्रिस्टियानो रोनाल्डो जैसे खिलाड़ियों को खेलते हुए दिखाया गया. टोलो टीवी के कमेंटेटर मुख्तार लश्कारी ने पूछा, "आप बताइए, आप राष्ट्रपति ओबामा के बारे में ज्यादा जानते हैं या मेसी के बारे में."
अफगान फुटबॉल इतिहास
अफगानिस्तान में करीब 90 साल पहले फुटबॉल की शुरुआत हुई. लेकिन तब कोई नियम नहीं हुआ करते थे. अफगानिस्तान फुटबॉल फेडरेशन का गठन 1922 में हुआ और यह 1948 में फीफा में शामिल हुआ. 1950 के बाद तीन दशक तक अफगानिस्तान में फुटबॉल बहुत लोकप्रिय हुआ. लेकिन 1979 में जब सोवियत संघ ने अफगानिस्तान पर कब्जा किया, उसके बाद से यह खेल धीरे धीरे अफगानिस्तान की धरती पर से खत्म होता चला गया.
2001 में जब तालिबान का सफाया हुआ, तो खेल फिर से निखरने लगे. अफगानिस्तान का क्रिकेट बहुत तेजी से उभरा है और अब तो वह ट्वेन्टी 20 वर्ल्ड कप में भी खेल रहा है. अब फुटबॉल लीग के साथ इसमें नया अध्याय जुड़ सकता है. इनके नाम "ईगल्स ऑफ हिन्दुकुश" जैसे रखे जाने वाले हैं.
अफगान फुटबॉल एसोसिएशन के अध्यक्ष केरामुद्दीन करीम का कहना है कि देश की एकता के लिए सिर्फ सैनिकों की ट्रेनिंग पर ही जोर नहीं दिया जाना चाहिए, "यह नई पीढ़ी के लिए बेहद कारगर साबित हो सकता है."
एजेए/ओएसजे (एएफपी)