अमेरिका से निपटने में जुटा पाकिस्तान
२९ सितम्बर २०११वरिष्ठ अमेरिकी सेनेटर लिंड्से ग्राहम कहते हैं कि अमेरिकी कांग्रेस में इस बात के लिए समर्थन बढ़ता जा रहा है कि अमेरिका पाकिस्तान में अपनी सैन्य कार्रवाई का विस्तार करे. अब तक सिर्फ कबायली इलाकों में ड्रोन हमले होते रहे हैं.
ग्राहम विदेश नीति और उग्रवादियों से जुड़े मामलों पर रिपब्लिकन पार्टी की दमदार आवाजों में गिने जाते हैं. उनकी यह टिप्पणी अमेरिकी सेना प्रमुख माइक मुलेन के इस बयान के बाद आई है कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई ने 13 सितंबर को काबुल में अमेरिकी दूतावास पर हुए हमले में चरमपंथी संगठन हक्कानी नेटवर्क का साथ दिया.
अमेरिका से अरबों डॉलर की सहायता लेने वाला पाकिस्तान हक्कानी नेटवर्क के खिलाफ कार्रवाई करने की मांगों को लगातार अनदेखा करता रहा है. दरअसल पाकिस्तान को सेना को घरेलू स्तर पर अब तक इस बात के लिए आलोचना झेलनी पड़ रही है कि 2 मई को अमेरिकी सैन्य टुकड़ी पाकिस्तान के एबटाबाद शहर में आकर अल कायदा के नेता ओसामा बिना लादेन का सफाया भी करके चली गई और उसे कानों कान खबर नहीं हुई. पाकिस्तान में इस कार्रवाई को देश की संप्रभुता के उल्लंघन के तौर पर देखा गया.
पाकिस्तान का इनकार
अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन का कहना है कि उनका देश हक्कानी नेटवर्क को ब्लैकलिस्ट करने के लिए हो रही समीक्षा के आखिरी चरण में है. अमेरिकी अधिकारी चाहते हैं कि पाकिस्तान हक्कानी नेटवर्क के खिलाफ कार्रवाई करे, लेकिन पाकिस्तानी सेना का कहना है कि वह स्थानीय तालिबान के खिलाफ कार्रवाई में व्यस्त है और उसे पूरा किए बिना कोई नया मोर्चा नहीं खोलना चाहती.
पाकिस्तान खुद को इस गुट से कोई खतरा महसूस नहीं करता जबकि सीमापार अफगानिस्तान में तैनात विदेशी सेनाओं पर अकसर हक्कानी नेटवर्क के हमले होते हैं. हक्कानी नेटवर्क को अफगान तालिबान के सबसे खतरनाक गुटों में से एक माना जाता है. पाकिस्तान आधिकारिक तौर पर हक्कानी नेटवर्क से अपने रिश्ते से इनकार करता है लेकिन वह दशकों से पठान लड़ाकों को पालता रहा ताकि सीमापार अफगानिस्तान में अपना असर बनाए रखे और किसी न किसी तरह अपने प्रतिद्वंद्वी भारत से भी निपट सके.
बढ़ते अमेरिकी दबाव के बीच पाकिस्तानी प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी सभी पार्टियों को सरकार और सेना के पीछे लामबंद करना चाहते हैं. खास कर सेना को पाकिस्तानी विदेश नीति में बहुत अहम किरदार हासिल है. पाकिस्तानी सेना के कुछ सबसे वरिष्ठ अधिकारी भी सर्वदलीय बैठक में हिस्सा लेंगे, लेकिन यह अभी साफ नहीं है कि कितने राजनेता उनसे पाकिस्तान की मौजूदा छवि के लिए जिम्मेदार नीतियों पर सवाल जबाव कर पाएंगे.
'सेना ही करेगी फैसला'
एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के प्रमुख शुजा पाशा और विदेश मंत्री हिना रब्बानी खर बैठक में मौजूद लोगों को स्थिति से अवगत कराएंगी. खर संयुक्त राष्ट्र की महासभा में हिस्सा लेकर हाल ही में स्वदेश लौटी हैं.
गिलानी के कार्यालय ने कहा है कि बैठक में देश की सुरक्षा पर साझा रूख तय किया जाएगा. पाकिस्तानियों को संदेह है कि कहीं अमेरिका 2 मई जैसी कोई और एकतरफा कार्रवाई पाकिस्तान में न कर दे. पाकिस्तानी अखबार डॉन का कहना है कि गुरुवार की सर्वदलीय बैठक अमेरिका से रिश्तों को नया आकार देने में पहला कदम साबित हो सकती है.
रिटायर्ड जनरल और राजनीतिक समीक्षक तलत मसूद कहते हैं कि यह बैठक कड़ा संदेश देने की कोशिश करेगी कि सभी राजनीतिक पार्टियां सेना के पीछे लामबंद हैं. वह कहते हैं, "हालांकि हर कोई जानता है कि असल में यह फैसला तो सेना को ही करना है कि अमेरिका से किस तरह के रिश्ते रखने हैं."
रिपोर्ट: एजेंसियां/ए कुमार
संपादन: वी कुमार