उम्मीद क्या है...एक कुत्ता और एक पेड़
२ अप्रैल २०११शुक्रवार को राहत के लिए गश्त लगाते हेलीकॉप्टर पर सवार दल ने गहरे भूरे रंग के एक कुत्ते को केसेन्नुमा से दो किलोमीटर की दूरी पर एक तैरते हुए तख्ते पर फंसे देखा. राहत दल के बढ़िया प्रशिक्षित कर्मचारियों में से एक को हेलीकॉप्टर से नीचे भेजा गया. इससे पहले कि कर्मचारी कुत्ते तक पहुंच पाता, हेलीकॉप्टर की गड़गड़ाहट सुनकर कुत्ता डर गया और वहां से एक दूसरे तैरते टुकड़े पर कूद गया. पर राहत कर्मचारी भी कहां मानने वाले थे. थोड़ी देर की मशक्कत के बाद उन्होंने उस नादान कुत्ते को अपनी आगोश में ले ही लिया और फिर उसे सुरक्षित स्थान पर ले गए.
शायद कोई मिल जाए
मध्यम आकार के कुत्ते के गले में एक पट्टा है और कर्मचारियों के मुताबिक यह एक घरेलू कुत्ता है. हालांकि अभी तक उन्हें ऐसा कोई निशान नहीं मिल सका है जिससे कि कुत्ते के मालिक को ढूंढा जा सके. कुत्ता फिलहाल राहत कर्मचारियों के साथ घुलमिल गया है. वे उसे बिस्किट और दूसरी चीजें खिला रहे हैं. जापान में तटरक्षक बल के जवान अभी भी इस उम्मीद में गश्त लगा रहे हैं कि शायद कहीं कोई फंसा हुआ इंसान जीवित मिल जाए.
रिक्टर पैमाने पर 9 तीव्रता वाले भूकंप और सूनामी के बाद 54 जहाजों और 19 हेलीकॉप्टरों को तलाशी और राहत के काम में लगाया गया है. आपदा को आए तीन हफ्ते बीत चुके हैं पर गश्त का काम जारी है. पानी के जहाज, हेलीकॉप्टर और जमीन पर जापान की सेना के 25000 जवान राहत के काम में जुटे हैं. शुक्रवार को 32 शव निकाले गए.
उम्मीदों का पेड़
सूनामी ने किनारों पर बसी हर चीज को तबाह कर दिया पर इस तूफान के बीच चीड़ का एक पेड़ सुरक्षित बच गया. पूरे दम खम के साथ खड़े रह कर यह पेड़ इंसान की हिम्मत और फिर उठकर खड़े होने की ताकत का प्रतीक बन गया है. यह इकलौता पेड़ उस जंगल का हिस्सा है जिसमें लगे 70000 पेड़ रिकुजेनटाकाटा को पिछले 300 सालों से समुद्री हवाओं से बचाते आए. सूनामी के बाद इस जंगल में बस यही एक पेड़ बचा है. जंगल के साथ शहर की 10 फीसदी आबादी भी समंदर से आई विपदा के बाद इतिहास बन गई.
पेड़ की छाया में खड़ी 23 साल की एरी कामायशी कहती हैं, "केवल यही एक पेड़ सुरक्षित बचा है इसलिए यह वापसी का प्रतीक बन जाएगा. मुझे तो अब ठीक से यह भी याद नहीं कि यहां क्या क्या था क्योंकि सब कुछ खत्म हो गया है."
जो नहीं मिले
पेड़ के तने पर समंदर के सैलाब ने कुछ जख्म दिए हैं और नीचे की शाखाएं इससे जुदा हो गई हैं. मगर तकरीबन 33 फीट ऊंचा यह पेड़ जख्मी हालत में ही सही, खुद को बचा पाने में कामयाब रहा है. ऐसे भी कम नहीं, जिन्हें बस यही पेड़ भरोसा दिला रहा है कि जंगल एक बार फिर लहलहाएंगे और समंदर के सामने दीवार बन कर खड़े होंगे. हादसे के बाद अपने पति को ढूंढती 62 साल की किकुता कहती हैं, "मैं एक बार फिर वह खूबसूरत बीच देखना चाहती हूं जिस पर चीड़ के पेड़ झूमा करते थे."
टोक्यो से करीब 400 किलोमीटर दूर इस शहर के 1000 लोग मारे जा चुके हैं और 1300 लोग अब भी लापता हैं. हजारों लोग राहत शिविरों में रह रहे हैं.
रिपोर्टः एजेंसियां/एन रंजन
संपादनः वी कुमार