ओलांद के आगे पहले दौर में सिमटे सारकोजी
२३ अप्रैल २०१२करीब 80 फीसदी मतदाताओं ने रविवार को राष्ट्रपति पद के चुनावों में पहले दौर का विजेता चुना. दस उम्मीदवारों में से समाजवादी फ्रोंसुआ ओलांद ने निकोला सारकोजी को कम अंतर से ही सही लेकिन पछाड़ दिया है. ओलांद को 28.6 और सारकोजी को 27.1 फीसदी मत मिले. चुनाव में सबसे ज्यादा चौंकाया है उग्र दक्षिपंथियों ने जिनकी नेता मारी ले पेन ने जोरदार बढ़त हासिल की है. ली पेन को 18 फीसदी वोट मिले हैं और अंतिम दौर में यह 18 प्रतिशत कैसे बंटेंगे इस पर ही राष्ट्रपति का चुनाव टिका हुआ है.
ले पेन को मिले वोटों ने एक बार फिर साबित किया है कि यूरो को संदेह की नजर से देखने वाले नेता एम्सटरडम से वियना, हेलसिंकी से लेकर एथेंस तक सिर उठा सकते हैं क्योंकि लोगों में कटौती, बेरोजगारी पर गुस्सा है और यूरो जोन के आर्थिक संकट के कारण एक के बाद एक बेल आउट बिलों की थकान भी है. अपनी जीत का जश्न मनाते हुए मारीन ले पेन ने कहा, फ्रांस की लड़ाई तो अभी शुरू हुई है. केवल हम अब विपक्ष हैं. उन्होंने खुद को मिले समर्थन को मुख्यधारा की राजनीति के लिए जोरदार झटका बताया है.
फ्रांस को यूरो जोन से निकालने की पैरवी करने वाली ले पेन ने कहा है कि वह राष्ट्रपति चुनाव के निर्णायक दौर के बारे में अपने विचार पहली मई को मई दिवस की रैली में रखेंगी. उधर नीदरलैंड्स में मध्यावधि चुनावों के आसार दिख रहे हैं क्योंकि यूरोप विरोधी गीअर्ट विल्डर्स ने मध्य दक्षिणपंथी अल्पसंख्यक सरकार से बजट पर बातचीत करने से इनकार कर दिया है कारण है ईयू के वित्तीय मानकों में रहने के लिए की जाने वाली कटौतियां.
बहरहाल अपना पद बचाने के लिए अब सारकोजी को मध्य और उग्र दक्षिण पंथी दोनों को अपनी ओर खींचना होगा. तब ही उन्हें छह मई के रन ऑफ में जीत मिल सकती है.दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी अर्थवस्था के प्रमुख, परमाणु ऊर्जा के समर्थक की नियति भी बाकी 10 यूरो जोन के नेताओं जैसी हो सकती है जिन्हें 2009 के आर्थिक संकट के बाद पद से हटना पड़ा. दक्षिण पश्चिमी फ्रांस में उन्होंने समर्थकों से कहा, मैं जानता हूं कि मुझे हमारी सीमा पार से भी देखा जा रहा है. मेरा आखिरी कर्तव्य होगा यूरोप को फिर से विकास और रोजगार के रास्ते पर लाना.
वहीं बाजार के जानकारों का कहना है कि दो हफ्ते में जो भी जीतेगा उसे कड़ी कटौती तो करनी ही होगी. सार्वजनिक खर्चे में कटौती और बजट घाटा कम करने के लिए करों को बढ़ाने के अलावा कोई रास्ता नहीं है. जून में होने वाले संसदीय चुनावों के बाद फ्रांस में सरकार की तस्वीर भी साफ हो जाएगी.
सारकोजी के सुर
धोबी पछाड़ तो नहीं लेकिन हार का स्वाद चखने के बाद सारकोजी अब दक्षिणपंथियों को लुभाने में लगे हुए हैं तुरंत उन्होंने कड़ी सीमा नियंत्रण की पैरवी की. फ्रांस से जाते कारखानों को रोकने, काम की उचित कीमत मिलने और कानून व्यवस्था को काबू में रखने की बात भी है.
सारकोजी ने ओलांद को तीन टीवी बहसों की चुनौती दी है. सामान्य तौर पर एक ही टीवी बहस होती है. ओलांद को अभी तक मंत्री पद का अनुभव नहीं है और टीवी एक्टिंग करनी भी उन्हें सारकोजी से कम आती है. ओलांद ने सिर्फ दो मई को एक ही पार्ट टाइम टीवी बहस को स्वीकार करने की बात कही है.
बाकी बचे उम्मीदवारों में ले पेन के तीसरे नंबर को चुनौती देते दिख रहे हैं जां लूक मेलेनकोन जिन्हें 11.1 फीसदी वोट मिले हैं. राजनीति के जानकारों का मानना है कि ओलांद के पास दूसरे दौर के लिए सारकोजी से ज्यादा रिजर्व है. वह ले पेन के एक तिहाई से ज्यादा और बेरू के दो तिहाई से ज्यादा मतदाताओं को अपनी ओर खींच लेंगे.
रविवार को तीन अलग अलग संस्थाओं के सर्वे में सामने आया है कि ले पेन के 48-60 प्रतिशत मतदाता राष्ट्रपति बदलने के समर्थक हैं जबकि बेरू के समर्थक दोनों ओलांद और सारकोजी के बीच बराबर बराबर बंटे हुए हैं. वहीं मेलेनकोन ने अपने समर्थकों से अपील की है कि छह मई को बड़ी संख्या में वे चुनाव के अंतिम दौर में शामिल हों और सारकोजी को हराएं.
जीतने पर ओलांद यूरोप के चुनिंदा वामपंथी नेताओं में शामिल होंगे. उन्होंने वादा किया है कि वह यूरोपीय बजट नियमों पर फिर से बातचीत करेंगे. इससे जर्मन चांसलर अंगेला मैर्कल के नाराज होने की संभावना है. इस मतभेद से बाजार के माथे पर थोड़ी चिंता की लकीरें हैं. क्योंकि ओलांद कटौती की बजाए अमीरों का कर बढ़ाने की बात करते हैं.
फ्रांस के चुनाव जर्मनी में सरकार और अर्थव्यवस्था के बारे में एक नई बहस शुरू करेंगे, कटौती की बजाए, विकास तेज करने वाले कार्यक्रम. यूरोपीय सेंट्रल बैंक की स्वतंत्रता पर भी एक बार फिर से बहस शुरू होगी. फ्रांस-जर्मन संस्था के हेनरिक उटरवेडे कहते हैं, सारकोजी को दूसरा मौका मिलना बहुत मुश्किल होगा. ओलांद की संभावना प्रबल है. वे आगे कहते हैं, फ्रांस (जर्मनी के लिए) आसान पार्टनर कभी नहीं था और चुनाव के बाद यह वह और दूर होगा.
लगातार संकट से जूझ रहे यूरोपीय संघ के लिए एक मुद्रा का सपना दुस्वप्न होता जा रहा है खास कर वित्तीय संकट के कारण यूरो जोन के बर्तन बज रहे हैं. फ्रांस, जर्मनी यूरो जोन के ताकतवर और अमीर साझेदार हैं लेकिन उनमें भी यूरो मुद्रा पर असंतोष बढ़ रहा है.
रिपोर्टः आभा मोंढे (रॉयटर्स)
संपादनः एन रंजन