गले तक पानी आया तो बात करेगा यूरोपीय संघ
४ फ़रवरी २०११वैसे इस एक दिन की बैठक का असली मुद्दा तो ऊर्जा संकट पर चर्चा करना था लेकिन ट्यूनिशिया और उसके बाद मिस्र में जिस तरह के हालात पैदा हो गए हैं, उसके बाद ऊर्जा के मुद्दे को कम ही समय मिलेगा. यूरोपीय संघ के दक्षिण में बैठे ये देश उसके लिए परेशानी का सबब बन चुके हैं.
शुक्रवार का दिन अहम
शुक्रवार को ही मिस्र में होस्नी मुबारक के लिए तय की गई गद्दी छोड़ने की समयसीमा भी खत्म हो रही है. इस तरह जब यूरोपीय नेता बातचीत कर रहे होंगे तब काहिरा में एक विरोध रैली हो रही होगी जिसमें 10 लाख से ज्यादा लोग पहुंचने की संभावना है. इस बैठक में 27 नेता मिस्र पर यूरोपीय संघ की नीति तय करेंगे, जो रैली के हिसाब से कभी भी बदल सकती है.
वैसे इतना तो तय है कि मिस्र के घटनाक्रम में इस बैठक में आलोचना की जाएगी और वहां के सभी पक्षों से अपील की जाएगी कि सलीके से सत्ता का हस्तांतरण हो. गुरुवार को यूरोपीय संघ के देशों फ्रांस, ब्रिटेन, जर्मनी, इटली और स्पेन ने एक साझा बयान जारी कर यही बातें कहीं.
यूरोपीय संघ के एक राजनयिक ने बताया कि चीजें इतनी तेजी से बदल रही हैं कि हमें इंतजार करना ही होगा. वैसे इस सम्मेलन में यूरोजोन के देशों की आर्थिक नीति पर भी बात होनी है. बैठक के मसौदे की एक प्रति समाचार एजेंसी एएफपी के हाथ लगी है जिससे लगता है कि हाल के दिनों में आर्थिक नीतियों पर यूरोपीय नेता जो तीखे बयान देते रहे हैं, अब वे उनसे पीछे हट रहे हैं.
संघ की चुप्पी
मिस्र में घटनाक्रम को लेकर यूरोपीय संघ काफी देर तक चुप रहा. उसकी तरफ से बस यही कहा गया कि हिंसा को बढ़ावा नहीं दिया जाना चाहिए और सत्ता का तबादला व्यवस्थित तरीके से होना चाहिए. लेकिन अब जबकि मिस्र में लगी विरोध की आग अन्य अरब देशों में भी फैल रही है तो यूरोपीय नेताओं पर भी दबाव बन रहा है कि कुछ सक्रिय भूमिका में नजर आएं. ऐसा इसलिए भी है क्योंकि अरब जगत में यूरोपीय नीतियों की आलोचना हो रही है. ट्यूनिशिया के शिक्षाविद अजाम माजोब कहते हैं, "यूरोप मानता रहा है कि आर्थिक विकास के छोटे छोटे कदमों के जरिए लोकतांत्रिक सुधार किए जा सकते हैं, लेकिन यह मॉडल अब मर चुका है."
बहुत सारे विश्लेषक मानते हैं कि यूरोप अरब जगत के मामले में इसलिए भी चूका क्योंकि वह आंतकवाद के खिलाफ जंग में उलझा रहा. इंस्टीट्यूट फॉर सिक्योरिटी स्टडीज के अलवारो डी वासकोनसेलोस कहते हैं, "आतंकवाद के खिलाफ जंग ने ही यूरोपीय नेताओं को उन सरकारों को भी शह देने पर मजबूर कर दिया जिनकी वैधता पर सवाल उठते रहे हैं."
कैथरीन एशटन की विफलता
समस्या यह है कि यूरोपीय संघ में एक सुर सुनाई नहीं दे रहा है. अपनी विदेश नीति को यही एक सुर देने के लिए ब्रिटिश राजनीतिज्ञ कैथरीन एशटन को संघ के विदेश मामलों का प्रमुख बनाया गया. लेकिन उनकी कामयाबी पर काफी लोग शक करते हैं. यूरोपीय संसद के सबसे बड़े ग्रुप ईपीपी के नेता जोसेफ डॉल कहते हैं, "जब आप 27 लोग हों तो एक सुर में बात करना आसान नहीं है. लेकिन आपके पास कोई ऐसा होना चाहिए जो अलग अलग जगह जाए. आपको मिस्र जाने की जरूरत है, ट्यूनिशिया का दौरा करने की जरूरत है."
एशटन के काम पर कई जगहों से उंगलियां उठ रही हैं. मिस्र और ट्यूनिशिया के मामलों में उन्हें विफल माना जा रहा है. बेल्जियम के पूर्व प्रधानमंत्री गाई फरहोफश्टाट बेधड़क पूछते हैं, "मिसेज एशटन, यूरोप की प्रतिक्रिया इतनी सुस्त क्यों है?"
क्या कर सकता है यूरोपीय संघ
एशटन का बचाव करने वाले कहते हैं कि संतुलित प्रतिक्रिया आसान नहीं है क्योंकि एक देश को अपना भविष्य खुद ही तय करना होता है. लेकिन यूरोप की तरफ से कई प्रतिक्रियाएं हो सकती हैं. मसलन फंड रोकने की बात कही जा सकती है. अकेले मिस्र को 2011 से 2013 के बीच में यूरोपीय संघ की तरफ से 44.9 करोड़ यूरो मिलने हैं. यह पैसा विकास कामों के लिए दिया जाना है. इसके अलावा प्रतिबंधों की बात भी सख्ती से कही जा सकती है. लेकिन क्या यूरोपीय संघ होस्नी मुबारक सरकार के खिलाफ खड़ा होने को तैयार है? एशटन की प्रवक्ता कहती हैं कि यह एक सतत प्रक्रिया है और जब जरूरत होगी तो यूरोपीय संघ जरूरी कदम उठाएगा.
शुक्रवार की बैठक में इसी मुद्दे पर बात होगी कि क्या वह जरूरत आन पड़ी है और अगर हां, तो वे क्या कदम हैं जो उठाए जा सकते हैं.
रिपोर्टः एजेंसियां/वी कुमार
संपादनः महेश झा