चैपल काल मेरा सबसे खराब दौर रहाः जहीर
१४ जून २०११जहीर खान का कहना है कि उनके अलावा टीम के दूसरे वरिष्ठ सदस्यों को भी टीम में जगह पक्की नहीं दिखती थी और इसी वजह से 2005 से 2007 के बीच में टीम ने बेहद खराब प्रदर्शन किया.
बाएं हाथ के बेहतरीन गेंदबाज का कहना है, "सवाल यह उठता है कि आपसे कैसा बर्ताव किया जाता है. मुझे ऐसा लगता था कि जैसे कहा जा रहा हो कि हम आपको टीम में नहीं चाहते. आपका प्रदर्शन मायने नहीं रखता लेकिन आपका रवैया ठीक नहीं है. आप टीम इंडिया में क्रिकेट के विकास को रोक रहे हैं. मुझे निजी तौर पर ऐसा लगने लगा क्योंकि श्रीलंका में खराब प्रदर्शन न करने पर भी मुझे टीम से निकाल दिया गया."
उन्होंने कहा, "यह तो मेरी किस्मत अच्छी थी कि एशिया एलेवन की तरफ से मुझे दक्षिण अफ्रीका जाने का मौका मिल गया. मैंने नौ विकेट लिए और फिर मुझे टीम में बुला लिया गया. इस दौर में जबरदस्त संघर्ष था. अगर आपको अपने ही खेमे में जंग लड़नी पड़े, तो मामला कुछ और हो जाता है."
खिलाड़ियों से पंगा
ग्रेग चैपल को 2005 में टीम इंडिया का कोच बनाया गया. लेकिन इसके बाद से ही उनका वरिष्ठ खिलाड़ियों से पंगा हो गया. सचिन तेंदुलकर के साथ भी उनका लोचा हुआ. उस वक्त के कप्तान सौरव गांगुली के साथ तो उनका तनाव जगजाहिर है. इसकी वजह से सौरव को पहले कप्तानी से हटाया गया, फिर टीम से निकाला गया. इसके बाद 2007 वर्ल्ड कप में भारतीय टीम पहले दौर में ही बाहर हो गई. ग्रेग चैपल ने उसके बाद कोच का पद छोड़ देने का फैसला किया.
जहीर का कहना है कि इससे उलट दक्षिण अफ्रीका के गैरी कर्स्टन के कोचिंग का कार्यकाल अद्भुत रहा, "कर्स्टन ने हर किसी को मौका दिया. उन्होंने भारतीय संस्कृति को समझा और यह भी जाना कि हम कैसे काम करते हैं. उन्होंने हमें निर्देश देने की जगह हमारे करीब आने का फैसला किया. वह हमारे दोस्त रहे, कोई कोच नहीं."
शानदार कर्स्टन
ग्रेग चैपल के बुरे दौर के बाद कर्स्टन ने भारतीय टीम की बागडोर संभाली. उन्होंने बेहद खराब दौर से गुजर रही टीम को संभाला और उसे टेस्ट क्रिकेट का सरताज बनाया. इतना ही नहीं, कर्स्टन की अगुवाई में ही भारत ने 28 साल बाद वनडे वर्ल्ड कप जीता.
जहीर खान का कहना है कि चैपल के दौर में सिर्फ एक ही बात अच्छी रही कि युवा खिलाड़ियों को जगह मिली. लेकिन तजुर्बेकार खिलाड़ियों की कीमत पर युवा खिलाड़ियों को शामिल करना भी कोई बहुत अच्छी बात नहीं. जहीर का कहना है, "युवा खिलाड़ियों को जगह मिलनी अच्छी बात है. लेकिन अच्छा प्रदर्शन कर रहे खिलाड़ियों की कीमत पर नहीं."
वर्ल्ड कप की खुशी
जहीर का कहना है कि 2006 में इंग्लैंड के लीग मुकाबले में खेलने से उनके अंदर आत्मविश्वास बढ़ा. वर्ल्ड कप की ऐतिहासिक जीत के बारे में जहीर का कहना है कि अब वह एक अनुभवी क्रिकेटर बन गए हैं और 2003 के फाइनल में वह एक युवा खिलाड़ी थे. जहीर और पाकिस्तान के कप्तान शाहिद अफरीदी ने इस वर्ल्ड कप में सबसे ज्यादा 21-21 विकेट लिए. जहीर ने 2011 के वर्ल्ड कप फाइनल में अपने शुरू के तीन ओवर मेडन फेंके.
जहीर का कहना है, "2003 में मेरे अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में आने के एक दो साल बाद ही मुझे फाइनल खेलने का मौका मिला. मैं तेज गेंदें फेंकना चाहता था. मेरे बदन में गर्म खून दौड़ रहा था. फाइनल मैच में राष्ट्रगान खत्म होने के साथ ही मैं ऑस्ट्रेलियाई टीम को चीर कर रख देना चाह रहा था." उन्होंने कहा, "लेकिन इस वर्ल्ड कप में मुझे पता था कि बहुत से लोगों की भावनाएं जुड़ी हैं. मुझे इससे पार पाना है और अपना संयम बनाए रखना है. मैं खुद से कह रहा था कि सिर्फ अपना काम करो और बॉलिंग करो."
रिपोर्टः पीटीआई/ए जमाल
संपादनः ए कुमार