टाइटैनिक दुर्घटना के 100 साल, क्या सीखा
१५ अप्रैल २०१२आधुनिक तकनीक के जरिए इंजीनियर काफी कुछ ऐसा कर सकते हैं जिससे जहाज सुरक्षित हो सकें. टाइटैनिक को अनसिंकेबल यानी कभी न डूबने वाला जहाज कहा जाता था. लेकिन इसे ऐसी नजर लगी कि पहली ही यात्रा के दौरान यह दुर्घटनाग्रस्त हुआ और 1,500 लोगों की जान ले बैठा. इस दुर्घटना के कारण बड़े देशों की सरकारों को जोरदार धक्का लगा और उन्होंने सुरक्षा पर काम करने की ठानी. इसका नतीजा 1914 में बना सोलास, यानी समुद्र में सुरक्षा पर अंतरराष्ट्रीय करार. तब से अब तक जहाजों का बनना, चलना सब कुछ सोलास के नियमों के हिसाब से चलता है. इस समझौते को तकनीक में बेहतरी के साथ कदम मिलाते हुए समय समय पर बदला जाता है. लेकिन जहाज बनाने में आने वाली समस्या बदली नहीं है.
तो क्या करें?
किसी भी जहाज दुर्घटना के मुख्य तीन कारण होते हैं, या तो जहाज किसी चीज से टकरा जाए और उसमें छेद हो जाए जहां से पानी अंदर घुस सकता हो, या जहाज पर आग या धमाका हो या फिर कोई लहर इतनी ऊंची आए जो जहाज को उलट दे.
तीनों ही स्थिति के लिए एक मुख्य हल यह है कि जहाज को ज्यादा से ज्यादा वाटर टाइट हिस्सों में बनाया जाए. अगर दरार फट जाए तो इस तरह से पानी अंदर आने से रोका जा सकता है. जर्मनी के रोस्तोक यूनिवर्सिटी में जहाज निर्माण के प्रोफेसर पेटर ब्रोनसार्ट कहते हैं, "इसका मतलब जहाज को लंबाई में बांटना, साइड से और खड़े में ताकि मजबूत दोहरा ढांचा खड़ा किया जा सके. यह बहुत जरूरी है."
हर हिस्से में दरवाजे हों जिन्हें बल्कहेड कहा जाता है, लेकिन एक जगह से नियंत्रित किए जाने वाले. टाइटैनिक में 15 इस तरह के बल्कहेड्स और 16 अलग अलग कंपार्टमेंट थे. बर्फ की चट्टान से टकराने के बाद पहले पांच में पानी भर गया. और जैसे ही जहाज डूबने लगा, जहाज को अलग करने वाली दीवारों के ऊंचा ना होने का कारण दूसरे हिस्सों में भी पानी चला गया.
आधुनिक जहाज कम सुरक्षित
जहाज को इस तरह से बांटने से आग लगने पर भी सुरक्षा हो सकती है. ब्रोनसार्ट कहते हैं कि आप जहाज को अलग अलग फायर जोन में बांट सकते हैं, जो जहाज में आग बुझाने और जहाज खाली करवान में महत्वपूर्ण साबित हो सकता है.
हालांकि अब जहाज इस तरह से बांटा जाता है, लेकिन मुश्किलें अभी भी हैं. कई कमजोर हिस्से हैं जिन पर काम किया जाना जरूरी है. स्वीडन के गोथेनबर्ग में चार्मर्स यूनिवर्सिटी के ओले रुटगेरसन की सबसे बड़ी चिंता है जहाज पलटने की. मेरा विचार यह है कि हमारे यात्री जहाज उतने अच्छे से और सुरक्षित बने हुए नहीं हैं जितना टाइटैनिक था. लेकिन टाइटैनिक में सबसे बड़ी गलती यह थी कि जहाज को बांटने वाली दीवारें ऊंची नहीं थीं. अगर जैसा आज किया जाता है वैसा तब भी होता तो शायद वह इस दुर्घटना को झेल जाता.
लेकिन वह कहते हैं कि कोस्टा कॉन्कोर्डिया की दुर्घटना को देखते हुए लगता है कि आज के यात्री जहाज टाइटैनिक से कम सुरक्षित हैं. कोस्टा कोन्कोर्डिया बहुत जल्दी जूब गया और टाइटैनिक की तुलना में खतरनाक तरीके से क्योंकि यह पलट गया था.
तैरते हुए हिस्से
रुटगेरसन की अपील है कि जहाज के साइड का हिस्सा ऊंचा बनाया जाए और बाहरी हिस्से अलग हो कर तैर सकने वाले हों. लेकिन आर्थिक लाभ के चक्कर में इस तरह की योजनाएं कभी अमल में नहीं पातीं. शिपिंग कंपनियां यात्री जहाज के बाहरी हिस्से पर बड़ी बड़ी पैनोरमा विंडो बनाती हैं ताकि यात्री बाहर देख सकें. तो बाहरी हिस्सा ऊंचा बने कैसे. और कार्गो जहाजों में इस तरह का हिस्सा नहीं बनाया जाता क्योंकि कंपनी को आशंका है कि इससे जहाज की क्षमता कम हो जाएगी.
जहाज की सुरक्षा हालांकि आधुनिक नेविगेशन तकनीक और मौसम के अनुमान के कारण बेहतर हुई है. जहाज खतरनाक स्थिति में पहुंचते ही नहीं है. इसलिए इसे तुलनात्मक रूप से यातायात का सबसे सुरक्षित माध्यम माना जाता है. ब्रोनसार्ट मानते हैं कि 80 फीसदी दुर्घटनाएं मानवीय भूल के कारण होती हैं.
कंप्यूटर सुरक्षा प्रणाली
जर्मनी के शहर रोस्तोक में मेरिटाइम सेफ्टी टेकनीक एंड मैनेजमेंट (मार्सिग) के डिर्क द्राइसिग एक ऐसा कंप्यूटर सिस्टम बना रहे हैं जो जहाज के चालक दल को आपात स्थिति में सही फैसला लेने में मदद करेगा. यह अलग अलग सेंसर, कैमेरा और उपकरणों से जानकारी इकट्ठा करेगा और बताएगा कि दुर्घटना का असर क्या होगा.
द्राइसिग बताते हैं, मशीन रूम में या स्टोर रूम में या फिर कार डेक पर आग लगने पर क्या किया जा सकता है. ऐसे मॉड्यूल हैं जो दुर्घटना की स्थिति में जहाज की स्थिरता को आंकेगे. एक कंपार्टमेंट खुल जाए और पानी अंदर आ जाएगा तो जहाज का क्या होगा. जहाज खाली करवाने के लिए मॉड्यूल्स हैं कि यात्री किस दिशा में जाएं.
इसके बाद कंप्यूटर सिस्टम ब्रिज यानी जहाज कप्तान तक सलाह पहुंचाता है लेकिन आखिरी फैसला कप्तान को ही लेना है. अंतरराष्ट्रीय मेरीटाइम कानून कहता है कि जहाज पर कप्तान का फैसला आखिरी फैसला होता है. वही सर्वेसर्वा है. उसे ही सब तय करना है. और फैसला गलत होने की स्थिति में पूरी जिम्मेदारी भी खुद पर लेनी है.
रिपोर्टः फाबियान श्मिट, आभा मोंढे
संपादनः ईशा भाटिया