नंदीग्राम में बदलता लालगढ़
११ जनवरी २०११इस नरसंहार के विरोध में विपक्षी दलों व नक्सल समर्थक एक जनजातीय संगठन की बंद की अपील पर सोमवार को राज्य के कई हिस्सों में जनजीवन प्रभावित रहा. सीपीएम के हथियार बंद काडरों के मुद्दे पर बीते दिनों केंद्रीय गृह मंत्री पी.चिदंबरम और और मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य के बीच लंबा पत्र-युद्ध चला था.
ममता पहले ही इलाके में सीपीएम के हथियारबंद काडरों की मौजूदगी का सवाल उठाती रही हैं. इस घटना ने इलाके में उनकी मौजूदगी साबित कर दी है. इस घटना के बाद केंद्रीय गृह मंत्री ने मुख्यमंत्री को फौरन बुलाया है. राज्यपाल एम.के.नारायणन ने भी सरकार से लालगढ़ की हालत पर अंकुश लगाने को कहा है. इस घटना से डरे गांव के लोग हिंसा तेज होने की आशंका से पलायन करने लगे हैं.
राज्य के आपराधिक जांच विभाग (सीआईडी) के एक दल ने रविवार को पश्चिम बंगाल के पश्चिम मिदनापुर में लालगढ़ के करीब हुई सात लोगों की हत्या की जांच के लिए घटनास्थल का दौरा किया. यहां दो दिन पहले हत्यारों ने आठ लोगों की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. सीआईडी के उप महानिरीक्षक राजीव मिश्रा के नेतृत्व में दल ने नेताई गांव का दौरा किया.
ताजा मामला
ताजा मामला लालगढ़ इलाके के नेताई गांव का है. वहां एक घऱ में सीपीएम के 25 हथियारबंद काडर महीनों से रह रहे थे. गांव वालों की मानें तो वे स्थानीय लोगों पर हथियारों का प्रशिक्षण लेने का दबाव डाल रहे थे. यह लोग गांव की महिलाओं का शोषण भी कर रहे थे. इसी के विरोध में गांव के लोग जब उस घर के सामने प्रदर्शन कर रहे थे तब अचानक भीतर से अंधाधुंध फायरिंग होने लगी. गांव वालों ने जब भागने की कोशिश की तो इन लोगों ने बाहर से भी उन पर गोलियां चलाई. नतीजतन छह लोगों ने तो मौके पर ही दम तोड़ दिया. इस घटना में कोई 20 लोग घायल हो गए थे. उनमें से दो ने अस्पताल में दम तोड़ा.
सीआईडी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया, "हमने दो मंजिली इमारत से 20 से अधिक खाली कारतूस और दस्तावेज बरामद किया है. जांच में यह पता चला है कि ज्यादातर गोलियां घर के अंदर से चलीं और गोलीबारी के लिए लंबी दूरी तक मार करने वाली बंदूकों का इस्तेमाल किया गया."
राज्य के गृह सचिव जी.डी.गौतम कहते हैं, "लालगढ़ इलाके में यह हिंसा सीपीएम और तृणमूल कांग्रेस के बीच राजनीतिक संघर्ष का नतीजा है." वाममोर्चा के घटक आरएसपी के वरिष्ठ नेता और पीडब्ल्यूडी मंत्री क्षिति गोस्वामी कहते हैं, "ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती. इलाके में दोनों राजनीतिक दलों के पास भारी तादाद में हथियार हैं. यह हिंसा उसी का नतीजा है."
शुरूआत
लालगढ़ इलाका माओवादी गतिविधियों के लिए बीते दो वर्षों से सुर्खियों में रहा है. केंद्रीय सुरक्षा बल के जवानों ने अपना माओवादी-विरोधी अभियान भी वहीं से शुरू किया था. बाद में लालगढ़ से माओवादियों को खदेड़ कर सुरक्षा बलों ने वहां कब्जा कर लिया. उसके बाद बीते साल अगस्त में तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने पहली बार वहां कोई रैली की. उस समय इलाके में सीपीएम का कोई नामलेवा तक नहीं था. उस रैली के बाद सीपीएण ने नंदीग्राम की तर्ज पर लालगढ़ पर भी दोबारा कब्जे की योजना बनाई. इसी के तहत केंद्रीय सुरक्षा बलों के साए में अपने काडरों की सहायता से सीपीएम ने बीते 21 दिसंबर को वहां एक बड़ी रैली कर इलाके को लाल झंडों से पाट दिया था. उसके बाद बर्चस्व की इस लड़ाई में हिंसा तो होनी ही थी. शुक्रवार की घटना इसी का नतीजा थी.
इस घटना के बाद मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने कहा है कि यह घटना नहीं होनी चाहिए थी. उन्होंने सभी पार्टियों से संयम बरतने की अपील की है. उनका कहना था,'' पश्चिमी मेदिनीपुर में जो हुआ वह ठीक नहीं था.यह घटना नहीं होनी चाहिए थी. यह खूनखराबा रूकना चाहिए, नहीं तो विकास के सभी काम ठप हो जाएंगे."
हथियारबंद शिविर
ममता बनर्जी शुरू से ही इलाके में सीपीएम के हथियारबंद शिविरों की बात कहती रही हैं. दूसरी ओर सीपीएम हमेशा इन आरोपों का खंडन करती रही है. केंद्रीय गृह मंत्री पी. चिदंबरम ने जब अपने पत्र में इन शिविरों और सीपीएम की "हार्मद वाहिनी (गुंडों की फौज)" की बात कही तो पार्टी के नेता तिलमिला गए. उन्होंने चिदंबरम पर ममता की भाषा बोलने का आरोप लगाया.
अब इस घटना से साफ हो गया है कि सीपीएम के खिलाफ उठ रहे इन आरोपों में दम है. वैसे, नंदीग्राम पर कब्जे की लड़ाई में भी ऐसी ही हिंसा हुई थी और तब मुख्यमंत्री बुद्धदेव समेत तमाम नेताओं ने उसे जायज ठहराया था. बाद में हालांकि बुद्धदेव ने उसके लिए माफी मांग ली थी. लेकिन जो नुकसान होना था वह तो पहले ही हो गया था.
इस बार सीपीएम काडरों के इन हमलों के बावजूद पार्टी के नेता इसे माओवादियों का हमला बता रहे हैं. पश्चिम मेदिनीपुर के सीपीएम नेता और राज्य के पश्चिमांचल विकास मंत्री सुशांत घोष कहते हैं, "यह हमला तृणमूल नेताओं के इशारे पर माओवादियों ने किया है. मरने वाले सीपीएम के समर्थक थे."
विपक्ष का आरोप
इस घटना के बाद विपक्ष ने मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य और उनकी पार्टी सीपीएम के प्रति आक्रामक रवैया अपनाया है. तृणमूल प्रमुख ममता कहती हैं, "आखिर हकीकत को कब तक दबाया जा सकता है? जब यहां सीपीएम की हार्मद वाहिनी है तो सुरक्षा बलों की क्या जरूरत है?" वे कहती हैं कि इस घटना ने सीपीएम का मुखौटा उतार दिया है.
विपक्ष का आरोप है कि गांव वालों ने सीपीएम काडरों के अत्याचार के बारे में स्थानीय थाने में कई बार शिकायत की थी. लेकिन पुलिस मूक दर्शक बनी रही. ममता पहले से ही अपनी रैलियों में माओवादी-विरोधी अभियान में जुटे सुरक्षा बलों का बेजा इस्तेमाल करने का आरोप लगा रही हैं. उनका आरोप है कि सुरक्षा बल के जवानों की सहायता से माकपा की हर्माद वाहिनी यानी गुंडों की फौज इलाकों पर कब्जा करने में जुटी है.
यहां राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि इस बार चुनावों से पहले लालगढ़ और सुरक्षा बलों के बेजा इस्तेमाल का मुद्दा और जोर पकड़ेगा.
रिपोर्टः प्रभाकर तिवारी,कोलकाता