प्रधानमंत्री भी लोकपाल के दायरे में आए
२० दिसम्बर २०११लंबे अर्से से चल रहे विवाद को थामने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री को लोकपाल दायरे में शामिल कर लिया गया है. हालांकि इसके साथ कुछ शर्तें जुड़ी होंगी. सूत्रों के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय मुद्दे, कानून और व्यवस्था, परमाणु और अंतरिक्ष अधिकार के अलावा देश की आंतरिक और बाहरी सुरक्षा के प्रधानमंत्री के अधिकारों को लोकपाल के दायरे से बाहर रखा जाएगा.
प्रधानमंत्री पर आरोप आसान नहीं
प्रधानमंत्री के खिलाफ किसी भी तरह की जांच पर फैसला पूरी लोकपाल बेंच को करना होगा और कम से कम तीन चौथाई सदस्यों को इसके लिए सहमत होना पड़ेगा. इस पूरे मामले की वीडियो रिकॉर्डिंग की जाएगी और अगर शिकायत गलत साबित हुई, तो इस मामले को सार्वजनिक करना होगा.
लोकपाल बिल को पारित करने के लिए भारतीय प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की अध्यक्षता में कैबिनेट की बैठक मंगलवार देर शाम दो घंटे तक हुई, जिसके बाद इसे मंजूर कर लिया गया. हालांकि इसमें भारत की केंद्रीय जांच एजेंसी सीबीआई को लोकपाल विधेयक के दायरे से बाहर रखने का फैसला किया गया है. सूत्रों के मुताबिक फिर भी लोकपाल के पास सीबीआई के उन मामलों पर नजर रखने का अधिकार हो सकता है, जो भ्रष्टाचार से जुड़े हों.
विधेयक में बदलाव
समाचार एजेंसी एएफपी ने भारत के राष्ट्रीय समाचार चैनल दूरदर्शन के हवाले से खबर दी है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि बिल के प्रारूप में कुछ बदलाव किया गया है. रिपोर्ट में प्रधानमंत्री के हवाले से कहा गया, "विधेयक के मूल रूप में कुछ बदलाव किया गया है." इस बीच भारत की प्रमुख समाचार एजेंसी पीटीआई ने बताया है कि इस विधेयक को गुरुवार 22 दिसंबर को संसद के पटल पर रखा जाएगा.
लोकपाल की कमेटी में आठ लोग हो सकते हैं, जिनका कार्यकाल पांच साल का होगा. उन्हें पद से हटाने के लिए महाभियोग की जरूरत होगी और 100 सांसदों की मांग के बाद ही यह महाभियोग लगाया जा सकेगा. लोकपाल का चुनाव करने वाली टीम अलग से होगी. इसमें पांच लोग होंगे. इनमें प्रधानमंत्री, लोकसभा स्पीकर, लोकसभा में विपक्ष के नेता, भारत के सर्वोच्च न्यायाधीश या उनके द्वारा मनोनीत सुप्रीम कोर्ट का कोई और जज और राष्ट्रपति का मनोनीत एक न्यायविद होगा.
सीबीआई पर विवाद
इसके अलावा सीबीआई में बदलाव के लिए भी विशेष प्रक्रिया से गुजरना होगा. आम तौर पर किसी मामले की जांच को 90 दिन के भीतर पूरा करना होगा और अगर जरूरत पड़ी तो इसे बढ़ाया जा सकेगा.
भारत में एक के बाद एक भ्रष्टाचार के मामले सामने आने के बाद सरकार पर इस तरह की संस्था बनाने का दबाव बढ़ा था. इसके बाद समाजसेवी अन्ना हजारे ने अगस्त में भूख हड़ताल करने के बाद इस मांग को और तेज कर दिया. अन्ना को भारत के आम लोगों का भारी भरकम समर्थन मिला. हालांकि अन्ना हजारे की टीम ने नए मसौदे पर खुल कर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है. लेकिन उन्होंने बिल न पेश होने की शर्त पर 27 तारीख से दोबारा अनशन करने और एक जनवरी को जेल भरने का एलान पहले ही कर दिया है.
समझा जाता है कि इन चीजों को टालने के लिए सरकार ने अफरा तफरी में ही सही लेकिन बिल को संसद के मौजूदा सत्र में ही पेश करने का फैसला किया. इसकी वजह से संसद के शीतकालीन सत्र को बढ़ा दिया गया है. अब 27 दिसंबर से 29 दिसंबर तक सत्र का सेशन बढ़ाया जा सकता है.
रिपोर्टः एएफपी, पीटीआई/ए जमाल
संपादनः महेश झा