बिगड़ रही है महिलाओं की हालत
११ दिसम्बर २०१२इस रिपोर्ट में महिलाओं के हालात का आंकलन किया गया है. रिपोर्ट की शुरुआत में एक पंद्रह साल की बच्ची की दर्दनाक कहानी बताई गयी है जिसने खुद को आग लगा ली. इस बच्ची की जबरन शादी करा दी गयी थी. पति और ससुर रोज उसे मारते पीटते. इससे परेशान हो कर जब उसने कानून का सहारा लेना चाहा तो उसे धमकाया गया कि या तो वह अपनी शिकायत वापस ले ले या फिर जेल जाने के लिए तैयार हो जाए. परेशान होकर लड़की ने आत्महत्या कर ली.
यह अकेली लड़की नहीं जो पुरुष प्रधान समाज से परेशान हो कर आग में झुलसी हो. देश भर में इसी तरह महिलाएं घरेलू हिंसा और यौन उत्पीड़न का शिकार बन रही हैं.
"रोज मर रही हैं बच्चियां"
पिछले 11 साल से अफगानिस्तान में अमेरिकी सेनाएं तालिबान से लड़ रही हैं. इस बीच वहां काफी कुछ बदला है. लड़कियों के पास अब शिक्षा का अधिकार है, वे अब संसद में भी शामिल हो सकती हैं. लेकिन समाज का ढांचा अब भी रूढ़ीवादी है. रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र किया गया है कि इसी साल देश में एक धार्मिक संगठन ने महिलाओं को पुरुषों की तुलना में "दूसरे दर्जे का" कहा था.
अफगानिस्तान इंडीपेंडेंट ह्यूमन राइट्स काउंसिल के आंकड़ों के अनुसार इस साल मार्च से अक्टूबर के बीच महिलाओं के खिलाफ हिंसा के 4,010 मामले दर्ज हो चुके हैं. यह पिछले बारह महीनों की तुलना में दोगुनी संख्या है. संयुक्त राष्ट्र ने देश के 34 में से 21 जिलों में जानकारी इकट्ठा की तो पता चला कि हिंसा के 470 मामलों में से केवल 21 प्रतिशत की ही सुनवाई की गयी है.
अफगानिस्तान इंडीपेंडेंट ह्यूमन राइट्स कमीशन की अध्यक्ष सीमा समर ने 2001 में पहली बार देश में महिला अधिकारों के लिए मंत्रालय बनाया. देश में मानवाधिकारों के लिए लड़ रही सीमा समर ने डॉयचे वेले से बातचीत में बताया कि इस भेदभाव ने ही उन्हें समाज के लिए कुछ करने के लिए प्रोत्साहित किया. वह बताती हैं कि अब भी पहले ही की तरह हिंसा हो रही है, बस तरीके बदल गए हैं, "पिछले हफ्ते ही एक लड़की की सम्मान के लिए हत्या कर दी गयी, सिर्फ इसलिए क्योंकि वह टीकाकरण के लिए लोगों को प्रोत्साहित कर रही थी. इस बात की बहुत ज्यादा आलोचना भी नहीं की गयी. अफगानिस्तान में हम हर रोज इसी तरह बच्चियों को खो रहे हैं और महिला अधिकारों के हनन को रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाए जा रहे."
सम्मान के लिए हत्या
2009 में महिलाओं के खिलाफ हिंसा पर कानून में संशोधन किया गया. इस कानून के तहत देखा गया है कि घर में मारना पीटना या किसी बात की सजा के तौर पर शरीर पर कहीं काट कर दर्द पहुंचाना बहुत आम है. इसके अलावा सम्मान के लिए हत्या के मामले भी सामने आए हैं. रिपोर्ट के अनुसार यदि कोई लड़की किसी के साथ भाग जाए या किसी महिला के शादी के बहार संबंध की बात पता चले तो उन मामलों को गांव के बड़े बुजुर्गों को सौंप दिया जाता है. ऐसे में कई बार महिलाओं की जान चली जाती है. बलात्कार के मामलों में बजाए इसके कि आरोपी को अदालत के सामने पेश किया जाए, उसे महिला से शादी करने के लिए कह दिया जाता है.
जमीनी हकीकत बयान करते हुए संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि ऐसा नहीं है कि सरकार महिलाओं के उत्थान के लिए काम नहीं कर रही है. "राष्ट्रपति हामिद करजई की सरकार लगातार इस बात पर दबाव डाल रही है कि महिलाओं के अधिकारों को बचाना और उन्हें बढ़ावा देना अफगानिस्तान में शांति स्थापित करने की प्रक्रिया का एक अहम हिस्सा हैं."
रिपोर्ट में आंकडें बढ़ते हुए दिख रहे हैं, लेकिन अफगानिस्तान में मौजूद संयुक्त राष्ट्र का मिशन का कहना है कि अधिकतर महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मामले दर्ज ही नहीं किए जाते. आंकड़ों के बढ़ने का मतलब है कि अब महिलाएं सामने आ कर अपने हक के लिए लड़ने की कोशिश कर रही हैं.
रिपोर्ट: ईशा भाटिया (एएफपी)
संपादन: मानसी गोपालकृष्णन