शास्त्रीय विधाएं कोई कड़वी दवा नहीं
२७ सितम्बर २०११अंजना राजन कहती हैं, शास्त्रीय संगीत या नृत्य कोई कड़वी दवा थोड़ी ही है जिसे पीकर हमें ठीक होना है. यह एक मनोरंजन है. बिलकुल फिल्मी गीतों और डांस की तरह ही. भारत की कलाक्षेत्र अकादमी से भरतनाट्यम की शिक्षा ले चुकीं अंजना राजन मानती हैं कि जैसे हमें कोई भाषा सीखना पड़ती है वैसे ही नृत्य की भाषा भी सीखनी पड़ती है. वह कहती हैं, "जैसे आप निबंध लिखते हैं, कविता लिखते हैं इसके लिए आपको भाषा की जरूरत है ठीक वैसे ही नृत्य प्रस्तुत करने के लिए आपको मुद्राओं की जरूरत है, भावों की जरूरत है. जब तक आप इस भाषा को नहीं सीखेंगे आप इसमें बात नहीं कर सकते."
अंजना राजन और जीएस राजन एक कलाकार दंपती हैं जो हाल ही में जर्मनी की राजधानी बर्लिन आए. उन्होंने कई कार्यक्रमों के अलावा भारत में लंबे समय तक रहे जर्मन लोगों को भरतनाट्यम के बारे में जानकारी दी. जीएस राजन बांसुरी वादक हैं जबकि अंजना राजन भरतनाट्यम करती हैं. दोनों ने ही संगीत और नृत्य की पढ़ाई चेन्नई के कलाक्षेत्र संस्थान से की है.
नई पीढ़ी और शास्त्रीय नृत्य
कैसे नई पीढ़ी को शास्त्रीय नृत्य की ओर आकर्षित किया जा सकता है, इसका जवाब देते हुए अंजना कहती हैं, "भले ही बच्चे बॉलीवुड पर थिरकते हों लेकिन मुख्य बात है कि उन्हें नृत्य और संगीत में मजा आता है. और हमें यही देखने की जरूरत है कि बच्चों को सिखाने की शुरुआत थ्योरी से नहीं बल्कि सीधे डांस से की जाए तो उन्हें इसमें मजा आता है. फिर यह उनके लिए खेल हो जाता है. और वे अपने आप इसका आनंद लेने लगते हैं."
थिएटर से जुड़ीं और बच्चों के साथ कई नृत्य प्रोजेक्ट करने वाली अंजना रंजन कहती हैं, "मैंने कभी नहीं देखा कि जब हम बच्चों के साथ किसी शास्त्रीय नृत्य को बनाते हैं, कम्पोज करते हैं तो वे कभी नहीं कहते कि हम तो सिर्फ फिल्मी गानों पर नाचना चाहते हैं. वे नए कॉम्पोजिशन का आनंद लेते हैं, उसे सीखते हैं. लोगों के दिमाग में एक इम्प्रेशन बन गया है कि शास्त्रीय मुश्किल है, मनोरंजन नहीं होता.. एक भावना फैल गई है जो गलत है. जब हम बात करते हैं तो डांस ही करते हैं... ताल का आधार लय है. और लय जीवन के हर पहलू में है. रेलगाड़ी चलती है, दिल धड़कता है सब लय में है. सूरज उगता है डूबता है, यह लय है. यहीं से संगीत पैदा होता है."
कोई अहं नहीं
अक्सर माना जाता है कि पति पत्नी एक ही क्षेत्र से जुड़े हों तो उनके अहं का टकराव होता है. इस सवाल पर काफी देर तक खिलखिलातीं अंजना कहती हैं कि ऐसा नहीं है. वह बताती हैं, "दो व्यक्तियों के बीच मतभेद होना सामान्य बात है लेकिन कला के मुद्दे पर, संगीत या नृत्य में हमारे बीच कभी अहं नहीं आया. हम एक दूसरे की बात को अच्छे से समझते हैं."
अपनी पत्नी से सहमति जताते हुए जीएस राजन कहते हैं, "हम कलाक्षेत्र से सीखे हुए कलाकार हैं. जो हमने वहां सीखे हैं वे मूल्य ही अलग हैं. अहं का टकराव संभव ही नहीं है."
संगीत की ओर खिंचते
भारत में बांसुरी कितने लोग बजाना सीख रहे हैं इस बारे में जीएस राजन कहते हैं, "बहुत बच्चे सीख रहे हैं. लड़के और कई लड़कियां भी. निश्चित ही पंडित हरिप्रसाद चौरसिया जैसे मशहूर लोग इसका कारण हैं."
जीएस राजन और अंजना राजन दोनों ही इस बात को मानते हैं कि शास्त्रीय संगीत बहुत शांति देता है. जीएस राजन कहते हैं, "बॉलीवुड संगीत बहुत अच्छा है, आंखों को और कानों को सुकून देता है. लेकिन शास्त्रीय संगीत और नृत्य आंखों, कानों, मन और दिमाग को भी सुकून देता है. शायद लोग यह समझने लगे हैं कि तनाव से दूर होने का यह अच्छा तरीका है. इसलिए रईस होने की कोशिश किए बगैर लोग संगीत से जुड़ रहे हैं, मन की शांति के लिए भी."
रिपोर्टः आभा मोंढे
संपादनः वी कुमार