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'सीरिया में बहते खून के लिए रूस, चीन जिम्मेदार'

५ फ़रवरी २०१२

सीरिया पर कार्रवाई के प्रस्ताव को रूस और चीन ने सुरक्षा परिषद में एक बार फिर वीटो कर दिया है. विश्लेषकों का कहना है कि इससे मॉस्को और बीजिंग राष्ट्रपति बशर अल असद को अपने करतूतों को छुपाने का मौका दे रहे हैं.

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संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की कार्रवाईतस्वीर: dapd

चार महीने में दूसरी बार रूस और चीन सुरक्षा परिषद में सीरिया पर कार्रवाई का विरोध किया. खास तौर पर रूस शनिवार को सीरियाई शहर होम्स में 200 से ज्यादा लोगों की हत्या के बावजूद अपने फैसले पर अड़ा है. मानवाधिकार कार्यकर्ता कहते हैं कि शनिवार रात को भी 57 लोग सुरक्षा बलों की हिंसा का निशाना बने है. संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी राजदूत सूजन राइस ने इस बारे में आपत्ति जताते हुए कहा, "अब जितना खून बहेगा, वह इनकी (रूस और चीन की) जिम्मेदारी होगी."

सीरिया में विपक्षी सीरियन नेशनल काउंसिल एसएनसी ने प्रस्ताव की असफलता पर कहा है कि इससे राष्ट्रपति बशर अल असद को "खून करने की लाइसेंस" मिल गई है. एसएनसी ने एक बयान में कहा कि उनके देश में लोग और प्रवासी सीरियाई नागरिक सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव से उम्मीद लगाए बैठे थे.

संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव को समर्थन दे रहे यूरोपीय और अरब देशों ने भी रूस और चीन की जिद पर निराशा जताई है. प्रस्ताव के मुताबिक अरब लीग की योजना को समर्थन दिया जाना था जिसके तहत सीरिया के राष्ट्रपति असद अपना पद उप राष्ट्रपति को सौंपते और देश में चुनावों का आयोजन किया जाता.

Syrien Soldaten Deserteure
असद के इशारों पर आतंक मचाती सेनातस्वीर: Reuters

रूस का कहना है कि संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव को पारित करना सीरिया में गृहयुद्ध को बढ़ावा देना होगा. हालांकि ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी सहित कई देशों ने इस बात पर जोर दिया है कि प्रस्ताव में सीधे तौर पर असद के इस्तीफे के बारे में कुछ नहीं लिखा गया है और इसमें विदेशी सैन्य कार्रवाई से भी मना किया गया है.

ह्यूमन राइट्स वॉच के फिलिप बोलोपियों का कहना है कि रूस सीरिया को हथियार बेचता है और साथ ही वह कूटनीतिक तौर पर भी सीरिया की मदद कर रहा है. सीरिया की सरकार अपने ही लोगों को मार रही है. विश्लेषक ऐंड्रू टेबलर का कहना है कि रूस सीरिया की सरकार की काली करतूतों को ढक कर रखना चाहता है. टेबलर के मुताबिक रूस के लिए प्रस्ताव का पारित न होना एक सफलता है.

हालांकि पिछले साल अक्टूबर जिन देशों ने सीरिया में कार्रवाई के खिलाफ रूस और चीन का साथ दिया था, वे इस बार पश्चिमी देशों का साथ दे रहे हैं. भारत, दक्षिण अफ्रीका और पाकिस्तान, तीनों ने सीरिया में सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव को लागू करने के हक में वोट किया है. रूस के इस रवैये से विश्लेषक भी परेशान हो रहे हैं. उनका कहना है कि शायद यह पुतिन के दोबारा राष्ट्रपति बनने के सकेत हैं और हो सकता है कि रूस आने वाले दिनों में सुरक्षा परिषद में और आक्रमक भूमिका निभाए.

रिपोर्टः एएफपी, डीपीए/एमजी

संपादनः ओ सिंह

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