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आशा को भी गाना था 'ऐ मेरे वतन के लोगों..'

११ अक्टूबर २०१०

लता मंगेशकर का 'ऐ मेरे वतन के लोगों..' गीत आज भी कहीं बजता है तो लोग ठहर कर सुनते हैं. लेकिन कम ही लोग इस बात को जानते हैं कि पहले इस ऐतिहासिक गीत को लता और आशा भोंसले को मिल कर गाना था.

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लता ने आशा का काटा पत्ता

1962 में चीन के साथ हुए भारत के युद्ध में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि देने के लिए रचे गए गीतकार प्रदीप के इस गीत को सुन कर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की आंखों में आंसू आ गए थे. शुरू में इस गीत को लता मंगेशकर और आशा भोंसले, दोनों बहनों को मिलकर गाना था. लेकिन गीत की धुन तैयार करने वाले संगीतकार सी रामचंद्रन के साथ लता की ज्यादा नहीं बनती थी. वह सिर्फ इसी शर्त पर यह गाना गाने को तैयार हुईं कि अकेली गाएंगी.

एक नई किताब जर्नी डाउन मेलोडी लेन के मुताबिक, "सी रामचंद्रन ने इस गीत को एक युगल गीत के तौर पर तैयार किया था. लेकिन उन दिनों लता और सी रामचंद्रन एक दूसरे से बात करना भी पसंद नहीं करते थे. फिर कवि प्रदीप ने मध्यस्थ की भूमिका निभाई."

राजु भारतन अपनी इस किताब में लिखते हैं, "इत्तेफाक की बात है कि लता ने विले पार्ले में कवि प्रदीप के घर फोन किया और इच्छा जताई कि वह ऐ मेरे वतन के लोगों.. गाना चाहती हैं लेकिन सिर्फ तभी, जब उन्हें यह गीत अकेले गाने दिया जाए."

Flash-Galerie Lata Mangeshkar
लता पर लगते रहे हैं अन्य गायिकाओं को आगे न बढ़ने देने के आरोपतस्वीर: AP

भारतन बताते हैं कि आशा ने सी रामचंद्रन के साथ इस गाने की रिहर्सल भी कर ली थी, लेकिन लता की जिद पर उन्हें गाने से हटना पड़ा. किताब के मुताबिक, "प्रदीप को लगा कि सी रामचंद्रन भी इस ऐतिहासिक गाने के लिए लता मंगेशकर की आवाज ही चाहते थे. हालांकि उन्होंने आशा भोंसले के साथ तीन लंबी रिहर्सल की थीं." 1962 में चीन से मिली हार के बाद तैयार किए गए इस गीत ने भारतवासियों का दिल छू लिया. इस गीत ने नेहरू को इतना प्रभावित किया कि नम आंखों से उन्होंने लता को गले लगा लिया.

वहीं संगीतकार ओपी नैयर ने न सिर्फ लता मंगेशकर से दूरी बना कर रखी, बल्कि आशा को उनकी प्रतिद्वंद्वी के तौर पर तैयार भी किया. बॉलीवुड में लता और आशा के बीच चलने वाली प्रतिद्वंद्विता का जिक्र करते हुए भारतन कहते हैं, "बॉलीवुड में नैयर ही सिर्फ ऐसे संगीतकार है जिन्होंने लता मंगेशकर की आवाज के बिना इतने शानदार गाने दिए." दरअसल ओपी नैय्यर और लता मंगेशकर का यह टकराव 1954 में बनी महबूबा फिल्म से शुरू हुआ. लता ने इस फिल्म में अपने पसंदीदा संगीतकार के स्थान पर ओपी नैय्यर को लेने पर एतराज किया था.

आशा और ओपी ने मिल कर बहुत से यादगार गीत दिए इनमें 'ये है रेश्मी जुल्फों का अंधेरा', 'जाइए आप कहां जाएंगे' और 'हाय, इशारों इशारों में दिल में दिल लेने वाले' जैसे गीत शामिल हैं. लेकिन बाद ने इन दोनों के रास्ते भी जुदा हो गए. फिर आशा ने आरडी बर्मन के साथ मिलकर अपनी नई पहचान तलाशी. बाद में दोनों ने शादी भी की.

रिपोर्टः एजेंसियां/ए कुमार

संपादनः ए रंजन

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