ईरान पर नए प्रतिबंध, रूस नाराज
२२ नवम्बर २०११नए प्रतिबंध देश के केंद्रीय बैंक और ऊर्जा क्षेत्र से संबंधित हैं. ईरान पर संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंध संभव नहीं हो पा रहे हैं क्योंकि रूस और चीन इसका विरोध करते हैं. इसलिए अमेरिका और कनाडा ने अपने स्तर पर नए प्रतिबंधों का एलान किया है. इन प्रतिबंधों का मकसद ईरान के केंद्रीय बैंक के पश्चिमी देशों के साथ संबंधों पर नकेल कसना है, क्योंकि ईरान के ऊर्जा उत्पादों की बिक्री इसी बैंक के जरिए संभव है. ईरान के कुल बजट का 70 फीसदी हिस्सा ऊर्जा उत्पादों की बिक्री पर ही निर्भर है.
आईएईए की रिपोर्ट का आधार
एक लिखित बयान में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने कहा, "जब तक ईरान इस खतरनाक रास्ते पर आगे बढ़ता रहेगा, अमेरिका अपने साथियों के जरिए और अपनी कार्रवाइयों के जरिए उसे अलग थलग कर उस पर दबाव बनाने के तरीके निकालता रहेगा."
ओबामा ने कहा कि ईरान या तो अपनी अंतरराष्ट्रीय जिम्मेदारियां निभा सकता है या फिर वह अपनी जिम्मेदारियों से बचते हुए और ज्यादा दबाव झेलने के लिए तैयार रहे.
ये प्रतिबंध अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी आईएईए की दो हफ्ते पहले आई रिपोर्ट के बाद आए हैं, जिसमें ईरान के परमाणु कार्यक्रम की सख्त आलोचना की गई थी. इसमें सीधे सीधे तो नहीं, लेकिन इशारों में ईरान पर परमाणु हथियार बनाने के आरोप लगाए गए हैं. अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने इन प्रतिबंधों को ईरान पर दबाव बनाने के लिए अहम कदम बताया है. पहली बार ईरान के ऊर्जा क्षेत्र को सीधे सीधे प्रतिबंधों का निशाना बनाया गया है.
ईरान के लिए मुश्किलें
पेट्रोकेमिकल सेक्टर में वस्तुओं, सेवाओं और तकनीकों पर प्रतिबंधों के दायरे के बारे में विस्तार से बताते हुए क्लिंटन ने कहा कि ऐसे व्यवहार के कुछ तो नतीजे भुगतने ही पड़ेंगे.
ईरान पर पहले ही चार दौर के संयुक्त राष्ट्र प्रतिबंध लग चुके हैं. हालांकि वह इस आरोप को सख्ती से नकारता है कि उसके परमाणु कार्यक्रम का मकसद बम बनाना है. ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम का मकसद शांतिपूर्ण ऊर्जा उत्पादन बताता है.
प्रतिबंधों पर अमल की तैयारी शुरू हो गई है. अमेरिकी वित्त मंत्री टिमोथी गाइथनर ने चेतावनी जारी की है कि जो भी कंपनी ईरान के बैंकिंग सेक्टर के साथ व्यापार करेगी, उस पर गैरकानूनी गतिविधियों के लिए पैसा मुहैया कराने का आरोप होगा. अमेरिकी सरकार का कहना है कि ईरान हवाला के धन का प्रमुख केंद्र बन रहा है. हालांकि ये प्रतिबंध पूर्ण नहीं हैं, बल्कि उससे थोड़ा सा पीछे हैं क्योंकि पूर्ण प्रतिबंध एशियाई और यूरोपीय साझीदारों के साथ संबंधों में तनाव पैदा कर सकते थे. लेकिन गाइथनर ने चेतावनी दी है कि वित्तीय संस्थानों को इस बात पर गंभीरता से विचार करना होगा कि वे ईरान के साथ व्यापार करके क्या क्या खतरे उठा रहे हैं.
फिर भी, ईरान के लिए ये प्रतिबंध काफी मुश्किलें पैदा करेंगे. अमेरिकी वित्त मंत्रालय के पूर्व अधिकारी आवी जोरिश बताते हैं कि हाल के दिनों में ईरान अपने केंद्रीय बैंक पर बहुत ज्यादा निर्भर करने लगा है क्योंकि बाकी बैंक प्रतिबंधों का सामना कर रहे हैं. उसके तेल की बिक्री का ज्यादातर पैसा इसी बैंक के जरिए आता है.
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
अमेरिका के प्रतिबंधों के एलान के बाद अन्य देश भी ऐसा कर सकते हैं. सोमवार को ब्रिटेन ने भी अमेरिका के सुर में अपना सुर मिल दिया. ब्रिटिश वित्त मंत्री जॉर्ज ओसबर्न ने ईरानी बैंकों के साथ संबंध तोड़ने का एलान किया. उन्होंने कहा, "हम यूनाइटेड किंगडम की वित्तीय व्यवस्था और ईरान के बैंकिंग सिस्टम के बीच सारे संबंधों को बंद कर रहे हैं."
फ्रांस ने तो एक कदम और आगे बढ़कर अपने अंतरराष्ट्रीय साझीदारों से अपील भी कर दी है कि ईरान के केंद्रीय बैंक के साथ संबंध तोड़ लें और तेल व्यापार भी बंद कर दें. हालांकि उसने खुद किसी तरह के प्रतिबंधों का एलान अभी नहीं किया है.
पिछले कुछ दिनों इस चर्चा ने बहुत जोर पकड़ा है कि इस्राएल ईरान पर हमला कर सकता है. इस्राएल कई बार कह चुका है कि दुनिया को ईरान को परमाणु बम बनाने से रोकने के लिए सख्त कदम उठाने चाहिए.
रूस ने अमेरिका के इस कदम पर सख्त एतराज जताया है. मंगलवार को उसने कहा कि ये प्रतिबंध ईरान के साथ बातचीत को खतरे में डाल सकते हैं. विदेश मंत्रालय की ओर से जारी एक बयान में कहा गया, "रूस का मानना है कि यह तरीका अस्वीकार्य है और अंतरराष्ट्रीय कानून के विरुद्ध है. इससे तेहरान के साथ रचनात्मक बातचीत की प्रक्रिया मुश्किल हो जाती है."
ईरान ने भी इन प्रतिबंधों को प्रोपेगैंडा बताकर खारिज कर दिया है. उसने कहा है कि प्रतिबंधों से उसकी अर्थव्यवस्था पर असर नहीं पड़ेगा. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रमीन मेहमानपरस्त ने कहा, "हमारे लोग इन प्रतिबंधों की आलोचना करते हैं. यह व्यर्थ की कार्रवाई है क्योंकि इसका कोई असर नहीं होगा."
रिपोर्टः रॉयटर्स/एएफपी/वी कुमार
संपादनः एन रंजन