ओलंपिक खेलों में खाली सीटें
३० जुलाई २०१२लंदन ओलंपिक में टिकटों का आयोजन करने वाली संस्था लोकोग का कहना है कि इससे पूर्वी लंदन के आम लोगों, स्कूली छात्रों और सेना के जवानों को फायदा हो सकता है. ओलंपिक खेलों को देखने के लिए उन्हें मुफ्त की सीटें मिल सकती हैं. चार साल पहले जब बीजिंग ओलंपिक के दौरान ऐसा हुआ था, तो पश्चिमी मीडिया ने इसकी खूब हंसी उड़ाई थी.
पहले दो दिन के खेल मुकाबलों के दौरान अधिकारियों, खेल फेडरेशनों, एथलीटों, पत्रकारों और स्पांसरों के सीट खाली रह गए हैं. इन्हें कुल टिकट का 25 फीसदी हिस्सा दिया गया है. आयोजन समिति के अध्यक्ष सेबास्टियन को ने मीडिया ने इस मामले में रिपोर्टिंग करते समय सावधानी बरतने को कहा है, "यह कोई ऐसी चीज नहीं है कि हम इस बारे में ओलंपिक खेलों के पहले ही दिन से नाटकीय रूप से रिपोर्टिंग करें. मुझे नहीं लगता कि खेलों में ऐसा लंबे समय तक चलेगा."
लेकिन इसके साथ ही वह सीटों को खाली नहीं देखना चाहते और इसलिए उन्होंने लोकोग से कहा है कि जहां तक हो सके, सीटें भरी जाएं. उन्होंने कहा कि वैसा ही तरीका निकाला जा रहा है, जैसा विम्बलडन में किया गया था. उस दौरान मैच के बीच में निकलने वाले लोग अपना टिकट जमा किया करते और उनकी जगह दूसरे लोगों को कोर्ट में मुफ्त जाने का मौका दिया जाता है.
ब्रिटेन के सांस्कृतिक मंत्री जेरेमी हंट ने भी कहा है कि लोकोग को इस समस्या को प्राथमिकता के रूप में देखना चाहिए. हंट के ही जिम्मे ओलंपिक का कार्यभार भी है. लोकोग और ओलंपिक समिति ने इन बातों का खंडन किया है कि रविवार को जो सीटें खाली रहीं, उनमें से ज्यादातर प्रायोजकों को दी गई थीं. अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक कमेटी (आईओसी) के प्रवक्ता मार्क एडम्स ने कहा, "यह कहना बिलकुल गलत होगा कि यह स्पांसरों से जुड़ा मामला है." इनका कहना है कि पहले दिन जो सर्वे हुए, उससे पता चला है कि ज्यादातर स्पांसर खेल देखने पहुंचे.
को ने मैच से पहले कहा था कि वह इस बात में नहीं हिचकिचाएंगे कि अगर उन्हें बताना पड़े कि कौन से लोग टिकट लेने के बाद भी खेल देखने नहीं पहुंचे. हालांकि अब वह अपने बयान को नरम कर रहे हैं, "मुझे पक्के तौर पर नहीं पता कि किसी का नाम लेकर उन्हें बदनाम करने से कुछ फायदा होगा."
लोगों की गैरमौजूदगी टेलीविजन प्रसारणों पर साफ दिखती है. आम तौर पर टीवी पर उन्हीं लोगों को दिखाया जाता है, जो पहले की पंक्तियों में बैठे होते हैं. माना जाता है कि यह बेहतर सीटें होती हैं और इसलिए अहम लोगों को दी जाती हैं.
एजेए/एमजी (डीपीए)