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ओलिंपिक आयोजन में डाउ केमिकल्स की भूमिका का विरोध

३ दिसम्बर २०११

कुछ महीने पहले डाउ केमिकल्स को लंदन ओलिंपिक आयोजकों की बड़ी तारीफ मिली क्योंकि उसने आयोजन समिति को एक मुश्किल से निकाला. पर अब ओलिंपिक का प्रायोजक ऐसे विवाद में पड़ गया है जिसमें कोई फंसना नहीं चाहेगा.

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भोपाल में प्रदर्शनतस्वीर: AP

डाउ केमिकल्स के रिश्ते उस कंपनी से है जो 1984 के भोपाल गैस कांड की आरोपी है. यह दुनिया में अब तक का सबसे बड़ी औद्योगिक आपदा मानी जाती है. अब डाउ केमिकल्स और ओलिंपिक के आयोजन को एक विवाद को अपनी चपेट में ले लिया है. ओलिंपिक खेलों से डाउ को बाहर करने की मांग ने जोर पकड़ रही है. मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में विरोध प्रदर्शन कर रहे लोगों ने शुक्रवार और शनिवार को लंदन ओलिंपिक खेलों की आयोजन कमेटी के चेयरमैन सेबास्टियन का पुतला जलाया और खेलों का बॉयकाट करने की मांग की.

भारत में भोपाल गैस कांड की याद घटना के 27 साल बीत जाने के बाद भी लोगों के जेहन में बिल्कुल ताजी है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस हादसे ने 15000 लोगों की जान ली और कम से कम 5 लाख लोगों को घायल किया. भारत के अधिकारियों ने कहा है कि इन खेलों से बाहर होने की बात तो नहीं सोची जा रही लेकिन लंदन ओलिंपिक की आयोजन समिति पर इस बात के लिए दबाव बन रहा है कि वह डाउ केमिकल्स से अपना रिश्ता तोड़ ले.

डाउ ओलिंपिक के बड़े प्रायोजकों में से एक है और अंतरराष्ट्रीय ओलिंपिक कमेटी ने इसे शीर्ष श्रेणी में डाल रखा है. यह श्रेणी उन कंपनियों की है जो हरेक चार साल पर 10 करोड़ अमेरिकी डॉलर का दान देंगे. आयोजन समिति के चेयरमैन के लिए इस स्तर के किसी प्रायोजक को हटाने का फैसला करना कठिन साबित हो रहा है. खासतौर से इस लिए भी कि ओलंपिक खेलों की एक जो सुखद अनुभूति वाली छवि है वह एक प्रमुख वजह है कि डाउ केमिकल्स ने पहले स्थान पर रह कर इसे प्रायोजित करने का फैसला किया है.

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त्रासदी से कई लोगों की जिंदगी पर असर पड़ा हैतस्वीर: AP

विवाद की शुरुआत तब हुई जब डाउ ने स्टेडियम के चारों तरफ लगने वाले एक खास पर्दे का खर्च उठाने की मंजूरी दी. ओलिंपिक अधिकारियों ने इस योजना को रद्द कर दिया था क्योंकि इस पर बहुत खर्च आ रहा था. आर्किटेक्ट और कलाकारों ने जब इस कदम के खिलाफ आवाज उठाई और कहा कि इससे ओलिंपिक की छवि को नुकसान पहुंचेगा. तब डाउ ने इस मामले में हाथ डाला और इस पर्दे को बचा लिया. डाउ ने इस बाद की जरा भी परवाह नहीं की कि ओलिंपिक नियमों के तहत उस पर अपना लोगो भी नहीं लगा सकेगा. पर अब यही बात उसके खिलाफ जा रही है.

ओलिंपिक के आयोजकों को भोपाल गैस कांड से जुड़ी कंपनी के साथ करार करना उन्हें असहज स्थिति में डाल रहा है. भारत में भोपाल गैस कांड के पीड़ितों और उनकी तरफ से आवाज उठाने वालों का कहना है कि ओलिंपिक ने डाउ के साथ करार करके उन लोगों के जख्मों को भुला दिया है जो 3 दिसंबर 1984 को यूनियन कार्बाइड पेस्टिसाइड प्लांट से हुए रिसाव के कारण उन्हें झेलना पड़ा. बड़ी संख्या में लोगों के मरने और जख्मी होने के बावजूद इलाके के बाशिंदो का कहना है कि यहां का वातावरण अभी भी जहरीला है. यहां रहने वालों की पीढ़ियां भी इसका बुरा असर झेल रही हैं.

डाउ का कहना है कि उसकी कोई गलती नहीं है सिवाय इसके कि उसने घटना के 16 साल बाद यूनियन कार्बाइड नाम की कंपनी को खरीद लिया. कंपनी की तरफ से इस हादसे के पीड़ितों को 47 करोड़ डॉलर का हर्जाना भारत सरकार के जरिए दिया जा चुका है.

भारत के ओलिंपिक खिलाड़ी और भोपाल गैस कांड के पीड़ितों के गुट ने लंदन ओलिंपिक खेलों की आयोजन समिति से मांग की है कि वो डाउ को इस आयोजन से बाहर कर दे. उनका कहना है कि डाउ ने इलाके की मिट्टी और जमीन के भीतर मौजूद पानी की सफाई करने से इनकार कर दिया है. डाउ और यूनियन कार्बाइड का कहना है कि यह जमीन अब मध्य प्रदेश सरकार की है इसलिए सफाई की जिम्मेदारी भी उन्हीं की है.

रिपोर्टः एपी/एन रंजन

संपादनः एमजी

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