कामकाजी महिलाओं पर रात का खौफ
१० सितम्बर २०१२टीवी न्यूजरीडर अंकिता मुखर्जी अपने बैग में काली मिर्च का स्प्रे, मोबाइल फोन चैक करती हैं. और तय करती हैं कि सब सामान बैग में मौजूद है. इसके बाद ही वह देर रात ऑफिस से घर जाने के लिए निकलती हैं. अंकिता दिल्ली की उन कई हजार मध्यमवर्गीय महिलाओं में शामिल हैं जो देर रात ऑफिस से घर लौटती हैं. अंकिता और दूसरी महिला कर्मचारियों का मानना है कि इस सशक्तीकरण के साथ महिलाओं के साथ यौन हिंसा की आशंका भी बढ़ गई है खास तौर पर अगर वह देर रात घर आ रही हों.
बीते साल पुलिस ने महिलाओं के साथ बलात्कार के 24,204 मामले दर्ज किए थे जबकि बहुत सारे मामले ऐसे हैं जिनकी रिपोर्ट ही नहीं हो पाती. ये आंकड़ा राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो का है. हालांकि महिलाओं की सुरक्षा के लिए बहुत सारे इंतजाम भी किए गए हैं लेकिन इसके बावजूद उनके साथ बलात्कार या छेड़खानी की घटनाएं हो रही हैं.
2007 में पुणे में 22 साल की ज्योति चौधरी नाम की लड़की के साथ उसके कैब ड्राइवर ने ही बलात्कार कर उसकी हत्या कर दी थी. बाद में ड्राइवर को मौत की सजा सुनाई गई. इसी तरह 2009 में दिल्ली में सौम्या विश्वनाथन की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. हत्या से पहले उसके साथ छेड़खानी की गई थी. सौम्या पेशे से पत्रकार थीं और रात को काम खत्म करने के बाद वो अपनी कार से घर वापस लौट रही थीं.
एसीसीआई (एसोसिएशन ऑफ चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री) ने हाल ही में एक सर्वे किया है जिसमें पता चला है कि 56 फीसदी महिलाएं दिल्ली में खुद को असुरक्षित महसूस करती हैं. इसकी तुलना में बेंगलोर और मुंबई में उन महिलाओं की तादाद काफी कम है जो खुद को असुरक्षित मानती हैं. सर्वे के मुताबिक बेंगलोर और मुंबई में खुद को असुरक्षित मानने वाली महिलाओं का प्रतिशत 48 और 26 है.
पहले कानून भी ऐसे थे जो महिलाओं को रात में काम करने पर प्रतिबंध लगाते थे. 1948 में बना फैक्ट्री लॉ महिलाओं को रात में काम करने से मना करता था. लेकिन बाद में 1980 में इस कानून को बदल दिया गया. कई राज्यों में भी इस तरह के कानूनों में सुधार किया गया है जो महिलाओं को रात में काम करने से रोकते थे.
कोलकाता के जाधवपुर विश्वविद्यालय में स्कूल ऑफ वीमेन स्टडीज की निदेशक समिता सेन कहती है,"कामकाजी महिलाओं की वजह से समाज में बड़ी दरार पैदा हो गई है. पुरानी व्यवस्था टूट रही है. समाज में पुरुषों का वर्चस्व भी खत्म हो रहा है. इसीलिए पुरुषों में गुस्सा और खीझ पैदा हो रही है."
दिल्ली के नजदीक गुड़गांव के एक कॉल सेंटर में काम करने वाली प्रीति सिंह का कहना है,"महिलाओं को खुद उनकी सुरक्षा के लिए चौकन्ना रहना होगा. महिलाओं को मजूबत होना होगा. ये मेरा शहर है और आखिर मैं खुद पर कर्फ्यू तो नहीं लगा सकती."
वीडी/एनआर (डीपीए)