शहर छोड़ खेतों की ओर जा रही हैं महिलाएं
३ सितम्बर २०११जर्मनी में कॉलेज की डिग्री लेने के बाद खास ट्रेनिंग करनी होती है जो यह तय करती है कि आप का व्यवसाय क्या होगा. चाहे पत्रकार बनना हो, सेक्रेटरी या नर्स हर प्रोफेशन के लिए अलग ट्रेनिंग होती है. आज कल जर्मनी की महिलाओं में कृषि के क्षेत्र में ट्रेनिंग का चलन बढ़ गया है.
किसानों को मिली राहत
एक समय था जब औरतों को केवल आर्थिक कारणों से अपने पति की मदद करने के लिए खेतों में काम करना पड़ता था. धीरे धीरे औरतें शहरों की ओर बढ़ने लगी और टीचर और नर्स जैसी नौकरियां करने लगी. इस दौरान गांव में महिलाओं की इतनी कमी हो गई कि किसानों को शादी करने के लिए भी कोई महिला नहीं मिलती थी. इसी के चलते जर्मनी में एक रिएलिटी शो भी शुरू किया गया. छह साल पहले जर्मनी के लोकप्रिय चैनल आरटीएल पर 'बाउअर जूख्ट फ्राओ' यानी पत्नी कि तलाश में किसान के नाम से यह शो शुरू हुआ.
लेकिन अब हालात बदलते दिख रहे हैं. औरतें एक बार फिर गांव का रुख कर रही हैं. किसानों के लिए यह राहत की बात है. जर्मनी के रीष्टेट में खेती बाड़ी करने वाली नाना हार्म्स का मानना है कि गांव की जिंदगी शहर के भीड़ भाड़ और तनाव वाले जीवन से बेहतर होती है, "बच्चों के लिए तो गांव में रहने के केवल फायदे ही हैं." नाना कहती हैं कि उन्हें यह बात पसंद है कि वह और उनके पति सारा दिन एक साथ ही रहते हैं. दफ्तर जाने का कोई झंझट नहीं, इसलिए वे दोनों हमेशा एक दूसरे की मदद के लिए मौजूद होते हैं. लोग छुट्टियां मनाने के लिए खास तौर से शहर से कहीं दूर वादियों में जाते हैं, पर नाना के परिवार को कहीं जाने की जरूरत ही नहीं पड़ती, "हम तो यहां अपने खेतों पर ही छुट्टियां मना लेते हैं."
घरेलू काम का फैशन
स्विटजरलैंड में इस तरह की ट्रेनिंग देने वाली संस्था 'इन्फोरामा' में होमसाइंस विभाग की प्रमुख बारबरा थोएर्नब्लाड खेती बाड़ी के कोर्स के बारे में बताती हैं, "हमारे पास औसतन 120 महिलाएं इस कोर्स में रजिस्टर करती हैं. इन में से तीस परिक्षा में बैठती हैं." यह संख्या भले ही कम लगे, लेकिन पुराने आंकड़ों पर नजर डालें तो पता चलता है कि पहले इस कोर्स या परीक्षा में जरा भी दिलचस्पी नहीं दिखाई जाती थी. खेती बाड़ी के साथ साथ घर के कामकाज भी सिखाए जाते हैं. जैसे घर के बगीचे को किस तरह खूबसूरत बनाया जा सकता है और बच्चों और परिवार का ख्याल कैसे रखें. बारबरा बताती हैं, "घरेलू काम का एक बार फिर चलन आ गया है. लोगों की फिर से इस बात में रुचि जगने लगी है कि घर को कैसे अच्छी तरह से संवारा जा सकता है."
इस तरह के कोर्स में सिलाई बुनाई भी सिखाई जाती है. भारत में स्कूलों में भी होमसाइंस सिखाई जाती है, लेकिन कॉलेज में कम ही लड़कियां इसे प्रमुख सब्जेक्ट के तौर पर लेना पसंद करती हैं. बारबरा का मानना है कि जर्मनी और स्विटजरलैंड में लोग शहरी जीवन से ऊब गए हैं और दोबारा वहां लौट रहे हैं, जहां उनकी पहचान है, "लोग अपनी जड़ों की ओर लौटना चाह रहे हैं, वे खुद से पूछते हैं कि हमारी पहचान क्या है. लोग अपनी पुरानी दुनिया को एक बार फिर देखना और समझना चाहते हैं और उसी का हिस्सा बन जाना चाहते हैं."
रिपोर्टः एजेंसियां/ईशा भाटिया
संपादनः महेश झा