खेल बिलः कातिल ही मुंसिफ है
३१ अगस्त २०११भारत की केंद्रीय कैबिनेट ने खेल मंत्रालय के राष्ट्रीय खेल विकास बिल को खारिज कर दिया है. कैबिनेट ने मंत्रालय से कहा है कि बिल पर दोबारा काम करे और इसका मसौदा फिर से तैयार किया जाए. देश में खेल संघों की राजनीति के चलते खेलों और खिलाड़ियों पर जो नकारात्मक असर होता है, उसे ठीक करने के लिए खेल मंत्री अजय माकन यह कानून बनवाने की कोशिश कर रहे हैं. इस बिल में खेल संघों के अध्यक्षों की उम्र तय करने समेत ऐसे कई प्रावधान हैं जिससे मौजूदा खेल संघों के ढांचे में बदलाव आएगा और उनकी जवाबदेही बढ़ेगी. साथ ही भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड जैसे स्वायत्त संगठन भी सरकार के नियंत्रण में आएंगे.
लेकिन ऐसे बहुत से लोग हैं जो नहीं चाहते कि ऐसा कानून बने. भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड की भूमिका भी संदेह के घेरे में है क्योंकि कानून बनने से उसके कामकाज में सरकार का दखल होगा. दिलचस्प बात यह है कि जिस कैबिनेट ने यह बिल खारिज किया है, उसकी मीटिंग में शरद पवार, विलास राव देशमुख और फारुख अब्दुल्ला जैसे लोग शामिल हुए. ये तीनों ही खेल संघों के अध्यक्ष हैं और इस कानून का सीधा असर इन्हीं की कुर्सी पर पड़ने वाला है. यानी कातिल को ही मुंसिफ बनाया जा रहा है तो वो किसके हक में फैसला देगा.
क्या है बिल में
अजय माकन के खेल मंत्रालय ने जो बिल तैयार किया है, उसकी शुरुआत में ही कहा गया है इस बिल का मकसद खेल संघों या ओलंपिक कमेटी के कामजकाज में दखल देना नहीं है. यह सिर्फ खेल में पारदर्शिता और निष्पक्षता लाने का काम करेगा.
बिल की खास बातों में संघ के सदस्यों की उम्र अहम है. इस बिल के कानून बन जाने के बाद 70 साल से ज्यादा उम्र का व्यक्ति खेल प्रबंधन का काम नहीं देख सकेगा. इसके अलावा खेल संघों के चुनाव में 25 फीसदी वोटिंग अधिकार खिलाड़ियों को दिए जाने की बात कही गई है.
बिल में कहा गया है कि भारत में खेल प्रबंधन में खिलाड़ियों की आवाज को जगह नहीं मिल पाती है. इसलिए एक राष्ट्रीय खेल विकास परिषद बनाने का प्रस्ताव दिया गया है. इस परिषद का अध्यक्ष एक खिलाड़ी ही होगा. इस परिषद में खेलों के हर हिस्से के लोगों को प्रतिनिधित्व दिया जाएगा. मसलन ओलंपिक कमेटी, खेल विश्व विद्यालयों के चांसलर, खेल विज्ञानी, खिलाड़ी और एनजीओ समेत हर उस तबके के लोग इस परिषद का हिस्सा होंगे जो खेल के लिए किसी तरह का काम कर रहे हैं. इसका सबसे अहम पहलू यह है कि 15 मौजूदा खिलाड़ियों को भी परिषद का हिस्सा बनाने का प्रस्ताव है. इसके अलावा खेल संघों को अपना बही खाता सरकार को दिखाने की बात कही गई है. जाहिर है कि इस तरह के नियम बनने से खेल संघों की मनमर्जी पर असर होगा.
क्यों पड़ी कानून की जरूरत
भारत में खेल संघों की राजनीति कीचड़ उछालने के लिए जानी जाती है. देश के कई बड़ी पार्टियों के नेता खेल संघों के अध्यक्ष हैं. कॉमनवेल्थ खेलों के आयोजन में घोटाले के आरोपों में जेल में बंद सुरेश कलमाड़ी ओलंपिक संघ के अध्यक्ष हैं. तीरंदाजी संघ का अध्यक्ष पद बीजेपी नेता विजय कुमार मल्होत्रा के पास है. राष्ट्रीय फुटबॉल संघ के अध्यक्ष केंद्रीय मंत्री प्रफुल्ल पटेल हैं. कांग्रेस नेता जगदीश टाइटलर जूडो के अध्यक्ष हैं.
नेताओं के हाथ में खेल प्रबंधन होने से खिलाड़ी तो परेशान रहते ही हैं, खेल संघों के भीतर चलती उठा पटक का असर खेल और खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर पड़ता है. भारत में हॉकी को बर्बाद कर देने का आरोप ऐसी ही राजनीति पर लगता है. नेता कई कई बरस तक अध्यक्ष या संघ के दूसरे पदों पर काबिज रहते हैं. सुरेश कलमाड़ी 1996 से ओलंपिक संघ के अध्यक्ष हैं. उनके गिरफ्तार होने के बाद से उपाध्यक्ष विजय कुमार मल्होत्रा कामकाज देख रहे हैं. वह 79 साल के हैं.
बीसीसीआई की दिक्कत
कहा जा रहा है कि माकन के बिल को कैबिनेट में खारिज करने के पीछे सबसे बड़ा हाथ भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड का है. बीसीसीआई सरकारी नियंत्रण से इस दलील पर बचता रहा है कि वह एक स्वायत्त संस्था है और सरकार से कोई पैसा नहीं लेता. अगर बिल कानून बन जाता है तो बोर्ड को कई नियमों का पालन करना होगा. मसलन वह सूचना के अधिकार के तहत आ जाएगा और उसे अपना सारा हिसाब किताब देना होगा.
इसके अलावा बिल में क्रिकेटरों को नियमित तौर पर ड्रग टेस्ट से गुजरने का प्रावधान रखा गया है. फिलहाल क्रिकेटर राष्ट्रीय एंटी डोपिंग एजेंसी के नियंत्रण में नहीं है. लेकिन बिल में इस एजेंसी को देश के सभी खिलाड़ियों के लिए जिम्मेदार बनाने की बात कही गई है. क्रिकेटर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी डोपिंग टेस्ट का विरोध करते हैं.
इसलिए बीसीसीआई इस बिल से बिल्कुल सहमत नहीं है. इस बारे में बोर्ड के प्रशासक रत्नाकर शेट्टी कहते हैं, "हम जवाबदेही की बात से तो खुश हैं लेकिन खेल संघों में सरकार के दखल की बात हमें पसंद नहीं. हमें नहीं लगता कि सरकार के पास बीसीसीआई के कामकाज में दखलअंदाजी की कोई वजह है."
लेकिन खेल मंत्री अजय माकन कहते हैं कि वह किसी तरह की दखलअंदाजी की पैरवी नहीं करते, वह तो बस जवाबदेही तय करना चाहते हैं. अपने ट्विटर अकाउंट पर माकन ने लिखा, "मुझे समझ नहीं आता कि किसी संघ को आरटीआई के तहत लाना उसके कामकाज में दखल देना कैसे है?"
कुछ पूर्व क्रिकेटर भी माकन से सहमत हैं. मौजूदा सांसद और पूर्व भारतीय क्रिकेट कप्तान मोहम्मद अजहरूद्दीन कहते हैं, "खेल संघ और उनके पेशेवर प्रशासन के लिए यह बहुत अच्छा है. बिना किसी अपवाद के हर खेल संघ के लिए कानून बराबर होना चाहिए."
रिपोर्टः विवेक कुमार
संपादनः महेश झा