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देश छूटने पर छूट जाता है खान पान

१९ मई २०११

लोग जब अपना देश छोड़कर अमेरिका पहुंचते हैं, तो सिर्फ जमीन नहीं छूटती, खाना पीना भी छूट जाता है. एक रिसर्च के मुताबिक ज्यादातर लोग अपना असली खाना पीना छोड़कर अमेरिकी खाना अपना लेते हैं.

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Bahraini children are seen around the World's biggest bowl of corn flakes, measuring 8 feet in diameter by 4 feet high and weighing nearly half a ton as it is expected to enter the Guinness Book of World Record held Friday May 25, 2001 in Manama, Bahrain. Figures reveal that 20 to 30 percent of Bahrain's schoolchildren suffer from obesity as a result of bad dietary habit.
तस्वीर: AP

रिसर्च के मुताबिक अमेरिका में रहने वाले ज्यादातर एशियाई खाने पीने की आदतें बदल लेते हैं. इसकी दो वजहें हैं. एक तो यह खाना सस्ता पड़ता है, दूसरा इसके जरिए लोग समाज का हिस्सा बनने की कोशिश करते हैं.

सेहत को नुकसान

लेकिन यह खाना सेहतमंद नहीं होता. जो प्रवासी अमेरिकी खाना खाते हैं वे अपने देश का खान पान न छोड़ने वाले प्रवासियों के मुकाबले 182 कैलरी ज्यादा खाना खाते हैं और सात ग्राम फैट ज्यादा लेते हैं. इस वजह से इन फास्ट फूड प्रवासियों के मोटा होने और मोटापे की वजह से होने वाली क्रॉनिक बीमारियों की चपेट में आने का खतरा भी ज्यादा होता है.

बात सिर्फ उन्हीं तक खत्म नहीं होती बल्कि उनके बच्चों में भी यही आदतें जाती हैं. रिसर्च कहती है कि जो प्रवासी बच्चे 15 साल तक अमेरिका में रहते हैं उनके मोटापे का शिकार होने का खतरा अमेरिकी बच्चों जितना ही है. उनमें से एक तिहाई बच्चे मोटे होते हैं.

U.S. first lady Michelle Obama speaks to students during a visit to the National Handicrafts and Handloom Museum in New Delhi, India, Monday, Nov. 8, 2010. President Barack Obama and the first lady are on a three-day visit to the world's largest democracy. (AP Photo/Mustafa Quraishi)
भारतीय बच्चों संग मिशेल ओबामातस्वीर: AP

क्यों अलग है रिसर्च

यह रिसर्च स्टैन्फर्ड, वॉशिंगटन और कैलिफॉर्निया-बर्कले यूनिवर्सिटी ने मिलकर की है. हालांकि इससे पहले भी प्रवासियों के खान पान पर रिसर्च में इस तरह के नतीजे सामने आ चुके हैं लेकिन नई रिसर्च खास है. यह अमेरिका में पैदा हुए कुछ विदेशी मूल के बच्चों ने ही की है. इनमें भारतीय मूल की सपना चेरियन, चिली मूल की माया ग्वेंदलमान और फ्रांसीसी प्रवासी बेनोएट मोनिन शामिल हैं. इन्होंने अपनी रिसर्च का केंद्र इस बात को रखा कि क्या एशियाई-अमेरिकी अमेरिकी खाना इस लिए अपनाते हैं क्योंकि वे खुद को अमेरिकी साबित करना चाहते हैं.

कैसे हुई रिसर्च

इस रिसर्च का तरीका भी अनोखा रहा. पहले दो प्रयोगों में एशियाई मूल के अमेरिकियों को "धमकाया" गया कि क्या वे अंग्रेजी बोलते हैं और फिर उनसे उनके पसंदीदा खाने के बारे में पूछा गया. उसके बाद एक ग्रुप से उनके अमेरिकी होने पर सवाल उठाए बिना उनकी पसंदीदा डिश पूछी गई.

चेरियन बताती हैं, "सुनने में यह सवाल सामान्य लगता है कि क्या आप अंग्रेजी बोलते हैं. लेकिन जब आप निशाने पर होते हैं तो लगता है कि आपको अलग थलग किया जा रहा है क्योंकि आप अलग दिखते हैं."

इस रिसर्च के नतीजे साफ जाहिर करते हैं कि लोग अमेरिकी होना ज्यादा अहम मानते हैं. धमकाए गए लोगों ने मैकरोनी और चीज या हैमबर्गर जैसी खास अमेरिकी डिश का नाम लिया. दूसरे प्रयोग में लोगों से कहा गया था कि वे इसमें तभी हिस्सा ले सकते हैं अगर वे खुद को अमेरिकी मानते हैं. उन्हें दो मेन्यू दिए गए. एक में अमेरिकी डिश थीं और दूसरे में एशियाई. 60 फीसदी लोगों ने अमेरिकी खाना चुना.

जिस ग्रुप में लोगों को धमकाया नहीं गया था, उसमें से 70 फीसदी लोगों ने एशियाई खाना चुना.

रिपोर्टः एजेंसियां/वी कुमार

संपादनः एन रंजन

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