नाईजीरिया में औरतों के साथ को तरसती औरतें
३१ मार्च २०११दुनियाभर में सरकारी पदों पर 19 प्रतिशत महिलाएं हैं. लेकिन पश्चिमी अफ्रीकी देश नाईजीरिया में महिलाओं को सरकार या संसद में जगह नहीं दी जाती है. अगर महिलाएं राजनीति में आना चाहें तो उन्हें बहुत प्रयास और संघर्ष करना पड़ता है. अकसर उन्हें चुनावों के लिए नामांकित नहीं किया जाता या हिंसक तरीके से उन्हें चुनावों में भाग लेने से रोक दिया जाता है. दो अप्रैल से नाईजीरिया में संसद के और राष्ट्रपति पद के चुनाव शुरू हो रहे हैं. इसलिए महिला कार्यकर्ता वहां महिलाओं को राजनीति में शामिल करने के लिए कोटे की मांग कर रहे हैं.
योग्य ही नहीं हैं महिलाएं
प्रिंसेस तायो 30 वर्षों से राजनीति में सक्रीय हैं. वह ऐक्शन कांग्रेस ऑफ नाईजीरिया यानी एसीएन के लिए प्रचार कर रहीं हैं. वह दोस्तों और रिश्तेदारों को राजधानी लागोस में पार्टी के लक्ष्यों के बारे में अवगत करा रहीं हैं. 2 अप्रैल से देश में चुनाव शुरू हो रहे हैं. लेकिन इस बार भी हमेशा की तरह बहुत कम महिला उम्मीदवार दिखा जा रही हैं. प्रिंसेस तायो कहतीं हैं, "महिलाओं को यहां बहुत ही कम मौके मिलते हैं. अफ्रीकियों को ऐसा लगता है कि ऊंचे पदों के लिए महिलाएं योग्य ही नहीं हैं."
इन पुर्वाग्रहों का सामना करते हुए प्रिंसेस तायो को बहुत गुस्सा आता है. वह कहतीं हैं कि खासकर तब जब देश में सैनिक सरकार थी, महिला राजनितिज्ञों को बहुत ही भेदभाव का सामना करना पढ़ाता था. सैनिक सरकार के शासन के दौरान बहुत सारे फैसलों में मनमानी की जाती थी. 12 जून 1983 को मोशूद आबियोला को राष्ट्रपति चुना गया और देश में उम्मीद की किरण फैली. लेकिन उस वक्त की सैनिक सरकार ने चुनावों के परिणामों को मानयता ही नहीं दी. प्रिंसेस तायो ने भी हजारों लोगों के साथ प्रदर्शणों में भाग लिया. इसकी वजह से उन्हें गिरफतार किया गया और एक रात के लिए कैद भी किया गया. यह उनके लिए बहुत ही बड़ा सदमा था जिसके बारे में बात करने से वह सालों बाद भी परहेज करतीं हैं, "मैं भगवान को शुक्रियादा करतीं हूं कि मै आज जिंदा हूं. जो भी अत्याचार उस वक्त के सैनिक शासन के दौरान हुए, उनका शब्दों में वर्णन करना मुम्किन नहीं है."
360 सांसदों में से सिर्फ 27 महिलाएं
नाईजीरिया में 1999 से लोकतांत्रिक सरकार सत्ता में है. इस बीच महिलाओं के अधिकारों के लिए काम करने वाले कई संगठन भी राजनीति में हस्तक्षेप करने की कोशिश कर रहे हैं. लेकिन इन सभी सफलताओं के बावजूद महिला राजनितिज्ञ अकसर हिंसा का शिकार बनतीं हैं. तीन हफ्ते पहले ही एक महिला को पीटा गया जो सेनट के चुनावों में भाग ले रहीं थीं. उनके कई पार्टी सदस्य साथ खड़े थे, लेकिन उन्होंने मदद नहीं की क्योंकि वह भी एक पुरूष को उम्मीदवार बनते हुए देखना चाहते थे. वैसे, 1985 में नाईजीरिया ने संयुक्त राष्ट्र के साथ महिलाओं को भेद भाव से बचाने के लिए तैयार की गई संधी पर हस्ताक्षर किए थे.
अलवाना ओयुक्वू सेंटर फॉर डेमोक्रेसी ऐंड डिवेलपमेंट के लिए काम कर रहीं हैं. वह कहतीं हैं, "यहां राजनीति में अलग अलग पदों पर महिलाओं की संख्या 7 प्रतिशत ही है. आंकडें यह भी दिखाते हैं कि संसद के 360 सांसदों में से सिर्फ 27 महिलाएं हैं. सेनट में 109 सदस्य हैं और उनमें से सिर्फ 9 महिलाएं हैं. "
कोटे के लिए संघर्ष मुश्किल
इस स्थिति में बदलाव लाने के लिए महिलाओं के अधिकारों के लिए काम करने वाले कई संगठनों का मानना है कि कानूनी तौर पर महिलाओं के लिए कोटा तय करने की जरूरत है. इस कोटे के साथ सुनिश्चित किया जाएगा कि महिलाओं को संसद में 35 प्रतिशत हिस्सेदारी मिलेगी. 2010 में कोशिश की गई थी कि संविधान में इस तरह का कानून शामिल किया जाए, लेकिन उस वक्त महिलाएं अपने प्रयासों के साथ सफल नहीं रहीं. महिला कार्यकर्ता राबी मूसा अब्दुल्लाही का कहना है, "हमारी उस वक्त किस्मत अच्छी नहीं थी. इस मामले पर काम करने वाले कमिटी ने हमारे सुझावों के 60 प्रतिशत शामिल किए, लेकिन कोटा तैय करने का हमारा सुझाव पास नहीं किया गया. लेकिन हम थके नहीं हैं और हम आगे भी इस पर काम करेंगे. भविष्य में भी हम महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण विषयों को एजेंडे पर रखेंगे और कोटे के लिए प्रचार जारी रखेंगे."
लेकिन कोटे के लिए संघर्ष करना बहुत ही मुश्किल काम है, क्योंकि बहुत सारे लोग इसके बारे में जानते ही नहीं है. एक भी पार्टी ऐसी नहीं हैं जिसने इस मुद्दे को चुनावी अभियान में उठाया हो.
केवल एक वोट
जिन पुरूषों को इस सुझाव के बारे में पता है, वो इसका मजाक उड़ाते हैं. और महिलाएं भी महिला उम्मीदवारों की मदद नहीं करती. पीप्लस डेमोक्रेटिक पार्टी के अंदर जब तय किया जा रहा था कि राष्ट्रपति चुनावों में कौन भाग लेगा, तब महिला राजनीतिज्ञ सैरा जिब्रिल को एक ही वोट मिला और यह वोट उन्हीं का था, किसी और ने उनके लिए वोट नहीं किया किसी महिला ने भी नहीं. पार्टी के अंदर पुरूषों का कहना है कि यह परिणाम यह दिखाता है कि वे राष्ट्रपति बनने के लिए योग्य ही नहीं थीं.
वैसे एक समस्या यह भी है कि पार्टियां इस मानसिक्ता की वजह से महिलाओं को उम्मिदवार बनाती ही नहीं है, क्योंकि वह वोट हारना नहीं चाहती. अगर महिलाएं ही महिलाओं की मदद नहीं करेंगी ते औरों सो क्या उम्मीद की जा सकती है?
यदि ऐसा ही रहा तो नाईजीरिया में महिलाओं को राजनीति में शामिल होने के लिए बहुत लंबा सफर तय करना पड़ेगा.
रिपोर्ट: काट्रीन गेंस्लर/प्रिया एसेलबॉर्न
संपादन: ईशा भाटिया