पाक पर अमेरिकाः एक हाथ से मार एक से पुचकार
३० सितम्बर २०११अमेरिकी सेना के अधिकारी पाकिस्तान की तीखी आलोचना कर रहे हैं. लेकिन ओबामा प्रशासन इस आलोचना से दूरी बनाए हुए है. इसे दो तरह से समझा जा सकता है. एक तो यह कि अमेरिका एक हाथ से प्यार दूजे से मार वाली नीति पर चल रहा है. या फिर इसका मतलब यह हो सकता है कि अपने एक मुख्य सहयोगी के बारे में अमेरिका की नीति गड़बड़ा गई है.
काउंसिल ऑफ फॉरन रिलेशनशिप में पाकिस्तानी विशेषज्ञ डेनियल मार्के कहते हैं कि मुलेन के बयान से ऐसा लगता है कि हक्कानी नेटवर्क से निपटने के मामले में अमेरिका घर में ही असहमतियों से जूझ रहा है. वह कहते हैं, "सच यह है कि सरकार को उलझन, उलट पलट और विभाजन सभी का सामना करना पड़ रहा है."
क्या करना चाहता है अमेरिका
अगर अमेरिका चाहता था कि अफगान आतंकवादियों का साथ देने के लिए पाकिस्तान पर एक बार जमकर बरसा जाए और फिर चुपके से कदम वापस खींच लिए जाएं, तो यह साफ नहीं हो पाया कि इस नीति से उसे हासिल क्या हुआ. हुआ बस यह है कि पहले से ही तनावग्रस्त रिश्तों में और ज्यादा तनाव आ गया.
जल्दी ही पद से हटने वाले अमेरिका के जॉइंट चीफ्स ऑफ स्टाफ एडमिरल माइक मुलेन ने पिछले हफ्ते पाकिस्तान को खूब खरीखोटी सुनाई. मुलेन ने कहा कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई आतंकी संगठन हक्कानी नेटवर्क को समर्थन दे रही है. अफगानिस्तान में युद्ध शुरू होने के बाद से पाकिस्तान पर ये सबसे गंभीर इल्जाम थे. और इनकी गंभीरता और ज्यादा बढ़ गई क्योंकि सीधे मुलेन ने ऐसा कह दिया. अमेरिकी प्रशासन में मुलेन को पाकिस्तान का सबसे करीबी दोस्त माना जाता है.
मुलेन ने कहा कि हक्कानी नेटवर्क पाकिस्तान की आईएसआई के सहयोगी की तरह काम करता है. यह संगठन उत्तरी वजीरिस्तान के कबायली इलाके से काम करता है और अफगानिस्तान में तैनात अमेरिकी सैनिकों के लिए सबसे बड़ा खतरा माना जाता है.
पाकिस्तान ने इसका करारा जवाब दिया. लेकिन व्हाइट हाउस, पेंटागन और विदेश मंत्रालय ने बहुत सावधानी से मुलेन की टिप्पणी पर किनारा कर गए. व्हाइट हाउस के प्रेस सचिव जे कार्ने ने कहा, "मुलेन ने जो कहा है, उन शब्दों का इस्तेमाल मैं नहीं करूंगा." हालांकि कार्ने ने कहा कि पाकिस्तानी को हक्कानी नेटवर्क से निपटने के लिए और ज्यादा कोशिशें करनी चाहिए.
मुलेन के कंधे से निशाना
हालांकि मुलेन कांग्रेस में दिए अपने बयान पर अड़ गए हैं. बुधवार को जब सरकारी रेडियो ने उनसे पूछा कि क्या वे अपने बयान में कुछ बदलना चाहेंगे, तो उन्होंने कहा, "एक शब्द भी नहीं. मैं जो बोलना चाहता था, मैंने वही बोला." मुलेन ने दावा किया कि आईएसआई हक्कानी नेटवर्क को पैसा और साजो सामान तो उपलब्ध कराती ही है, छिपने की जगह भी देती है.
अमेरिकी रक्षा मंत्री लियोन पनेटा ने भी कांग्रेस में मुलेन के साथ ही बयान दिया था. ऐसा लगता है कि वह भी अमेरिका के उस हाथ के साथ हैं जो पाकिस्तान की खिंचाई का काम कर रहा है. काबुल में अमेरिकी दूतावास पर हुए हमले के बाद उन्होंने जो बयान दिया उसका पाकिस्तान में मतलब यह निकाला गया कि अगर पाकिस्तान ने कुछ नहीं किया तो अमेरिका खुद ही हक्कानी नेटवर्क के खिलाफ एकतरफा कार्रवाई कर सकता है.
दूसरी तरफ विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन और पाकिस्तान में अमेरिका के राजदूत कैमरन मंटर उस हाथ के साथ हैं जो पाकिस्तान को पुचकार कर रहा है. बुधवार को क्लिंटन ने कहा, "मैं इस बात से पूरी तरह सहमत हूं कि यह बहुत जटिल और मुश्किल रिश्ता है. लेकिन मैं यह भी मानती हूं कि मुश्किलों के बावजूद हमें मिल जुलकर काम करना है."
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी ने भी इस बात का संकेत दिया कि उनकी सरकार अमेरिका के साथ मिलकर काम करने को तैयार है. लेकिन उन्होंने यह भी साफ कर दिया कि हक्कानी नेटवर्क के खिलाफ सैन्य कार्रवाई करने पर विचार नहीं हो रहा है. इस्लामाबाद में गुरुवार को हुई सर्वदलीय बैठक में गिलानी ने कहा, "और ज्यादा करने के लिए पाकिस्तान पर दबाव नहीं बनाया जा सकता."
क्या मिलेगा अमेरिका को
लेकिन इस सारे घटनाक्रम से ऐसा लगता है कि अमेरिका एक हाथ से मार एक से पुचकार की अपनी नीति के जरिए पाकिस्तान से कुछ छूट हासिल करने की कोशिश कर रहा है. हक्कानी नेटवर्क के खिलाफ कार्रवाई करने की बात शामिल न भी हो. और इसके लिए सैन्य अधिकारी मुलेन का इस्तेमाल किया जा रहा है जो पद छोड़ने ही वाले हैं. इससे फायदा यह हो रहा है कि विदेश मंत्रालय और ओबामा प्रशासन बिना सामने आए पाकिस्तान तक वो बात पहुंचा रहे हैं, जो वे चाहते हैं.
इसके अलावा अमेरिका यह भी जांचने की कोशिश कर रहा है कि पाकिस्तान पर किस हद तक सख्ती की जा सकती है. अमेरिकी इस बात से अच्छी तरह वाकिफ हैं कि पाक सरकार को देश में लोगों के अमेरिका विरोधी रुख का सामना करना पड़ रहा है. और वे जानते हैं कि अगर पाकिस्तानी परेशान हुए तो वे वॉशिंगटन को जवाब देने के तरीके भी जानते हैं.
अमेरिका की अटलांटिक काउंसिल में साउथ एशिया सेंटर के निदेशक शुजा नवाज कहते हैं यह साफ ही नहीं है कि पाकिस्तान पर नीति बनाने का काम कौन देख रहा है. वेबसाइट में अपने एक लेख में उन्होंने लिखा, "यह साफ नहीं है कि वॉशिंगटन में पाकिस्तान की नीति पर कौन संयोजन कर रहा है. और उससे भी उलझन की बात यह है कि वॉशिंगटन में और दक्षिण एशिया में पाकिस्तान इस नीति का नेतृत्व कौन करेगा."
रिपोर्टः एजेंसियां/वी कुमार
संपादनः ए कुमार