बंटाधार एयर इंडिया बंद होने के कगार पर
९ सितम्बर २०११नागरिक उड्डयन मंत्री व्यालार रवि ने साफ शब्दों में कह दिया है कि एयर इंडिया के पास 27 नए बोइंग विमान खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं. एयर इंडिया विमानों का ऑर्डर काफी पहले दे चुका है लेकिन पैसा न चुकाने की वजह से डिलीवरी नहीं हुई.
निजी टीवी चैनल एनडीटीवी से बातचीत में रवि ने कहा, "मेरे पास चुकाने के लिए पैसा नहीं है. हर वक्त में वित्त मंत्री से पैसे के लिए याचना नहीं कर सकता. बहुत मुश्किल है, यही सच्चाई है. सरकार यह नहीं कह सकती कि हम इसकी पुष्टि करते हैं या इसे खारिज करते हैं."
एयर इंडिया को तीन साल पहले 27 बोइंग 787 विमान अपने बेड़े में शामिल करने थे. लेकिन पैसा न चुकाने की वजह से बोइंग ने विमान नहीं दिए. अब नौबत शर्मिंदगी तक आ चुकी है.
इस बात से कोई इनकार नहीं कर सकता कि एयर इंडिया को बर्बाद करने में नेताओं और अधिकारियों की बड़ी भूमिका रही है. महालेखापरीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट में भी अकूत भ्रष्टाचार का जिक्र किया गया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि एयर इंडिया में अघोर वित्तीय अनियमितताएं चल रही हैं. विमान की खरीद फरोख्त और उन्हें लीज पर लेने की प्रक्रिया से करोड़ों रुपये का नुकसान हुआ है.
कर्मचारियों के वेतन का भुगतान और ईंधन बिल की अदायगी की प्रक्रिया अब भी मुश्किलें खड़ी कर रहे हैं. रवि ने कहा, "वेतन देने में भी बहुत मुश्किल हो रही है. एयर इंडिया वेतन दे इसके लिए सरकार पैसा दे रही है."
प्रफुल्ल पटेल की भूमिका
सीएजी की रिपोर्ट को देखें तो एयर इंडिया की इस हालत के लिए पूर्व नागरिक उड्डयन मंत्री प्रफुल्ल पटेल भी काफी हद तक जिम्मेदार नजर आते हैं. सीएजी की रिपोर्ट में पटेल की नीतियों पर सवाल उठाए गए हैं. प्रफुल्ल पटेल 2004 में नागरिक उड्डयन मंत्री बने. उनके मंत्री बनते ही कर्ज लेकर 111 नए विमान खरीदे गए. प्रबंधन ने घाटे में चल रहे रूटों को लेकर कोई कदम नहीं उठाए. पटेल के कार्यकाल में प्रीमियम रूटों का आवंटन फिर से हुआ. हैरानी वाली बात है कि इसके बाद एयर इंडिया को उन रूटों पर भी नुकसान होने लगा जहां कभी उसे हमेशा फायदा होता था. सीएजी की रिपोर्ट में 2006 में एयर इंडिया और इंडियन एयरलाइन्स के विलय पर भी सवाल उठाया गया है. रिपोर्ट कहती है कि विलय एक गलत फैसला था.
पटेल के ही कार्यकाल में एक मार्च 2009 को एयर इंडिया के जर्मनी के फ्रैंकफर्ट एयरपोर्ट पर अपना इंटरनेशल हब बनाया. यह हब क्यों बनाया गया, यह एयर इंडिया के तत्कालीन सीईओ अरविंद जाधव और प्रफुल्ल पटेल के अलावा किसी की समझ नहीं आया. बहरहाल हब बनाने में अथाह पैसा फूंकने के बाद 30 अक्टूबर 2010 को फ्रैंकफर्ट हब बंद कर दिया गया. इस बीच एयर इंडिया अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इतना बदनाम हो गया कि कई विदेशी एयरलाइन कंपनियों ने एयर इंडिया से साझा करार भी तोड़ दिया.
प्रबंधन और कर्मचारी भी जिम्मेदार
फिलहाल भारी उद्योग मंत्री प्रफुल्ल पटेल सीएजी की रिपोर्ट में लगाए गए आरोपों से इनकार करते हैं. इसमें शक नहीं है कि पटेल के कार्यकाल में भारत में एयरलाइन उद्योग आगे बढ़ा. निजी कंपनियों ने नए नए विमान खरीदे. निजी कंपनियों में आपसी होड़ बढ़ी. इंडिगो जैसी एयरलाइन एक साथ 180 एयरबस विमानों का ऑर्डर देने की स्थिति में आ गई. जब निजी एयरलाइन्स ठीक काम कर पा रही हैं तो फिर एयर इंडिया बीमार क्यों है?
इसके लिए एयर इंडिया प्रबंधन और काफी हद तक एयर इंडिया के कर्मचारी भी जिम्मेदार हैं. एयर इंडिया की फ्लाइट्स अक्सर लेट लतीफी का शिकार होती हैं. सरकारी नौकरी को जागीर समझने वाली मानसिकता से साथ काम करने वाले एयर इंडिया के कई कर्मचारी ग्राहकों के साथ रुखे ढंग से पेश आते हैं. एयरपोर्ट पर तैनात एयर इंडिया का ग्राउंड स्टाफ के कई कर्मचारी पेशेवर ढंग से काम करने के बजाय यात्रियों के साथ अड़ियल रुख से पेश आने के लिए कुख्यात हैं. पायलट जब तब हड़ताल पर चले जाते हैं.
निजी एयरलाइन कंपनियों के विमान एक दिन में कम से कम 14 घंटे हवा में रहते हैं. एयर इंडिया के जहाज सिर्फ 10 घंटे उड़ान भरते हैं. लेट लतीफी की वजह से भी यात्री एयर इंडिया से जाने से बचते हैं. यह कुछ ऐसे कारण जिनके चलते 1946 से उड़ान भरने के बावजूद एयर इंडिया प्रतिष्ठा हासिल नहीं कर सकी.
क्या से क्या हो गया
एयर ट्रैफिक के लिहाज से भारत एक अहम जगह है. मध्य पूर्व एशिया, पश्चिमी एशिया और यूरोप से पूर्वी एशिया व ऑस्ट्रेलिया को जोड़ने वाला हवाई रास्ता भारत से होकर गुजरता है. जानकार कहते हैं कि एयर इंडिया को अगर ठीक ढंग से चलाया गया तो एयरलाइन सरकार की नवरत्न कंपनियों में शुमार होती. जिस तरह लुफ्थांसा, एमिरेट्स, डेल्टा एयर लाइंस, यूनाइटेड एयरलाइंस और सिंगापुर एयरलाइंस अंतरराष्ट्रीय रुट्स पर दबदबा बनाए हुए हैं. ऐसी ही स्थिति एयर इंडिया की भी हो सकती थी. लेकिन ऊपर गिनाए गए तमाम कारणों और अहम पदों पर बैठे कुछ लोगों ने एयर इंडिया को क्या से क्या बना दिया. आलोचक एयर इंडिया की वित्तीय गड़बड़ियों को भारत का सबसे बड़ा घोटाला बताते हैं. वैसे 1947 से अब तक हिसाब लगाया जाए तो यह दावा कमजोर नहीं पड़ेगा.
एक वक्त था जब यूरोप के कई देशों की सरकारी एयरलाइन कंपनियां घाटे में थीं. लुफ्थांसा और ब्रिटिश एयरवेज जैसी कंपनियों को निजिकरण का सामना करना पड़ा और अब इनकी हालत लाभकारी है. इन कंपनियों को बेहतरीन सेफ्टी रिकॉर्ड का भी फायदा हुआ. वैसे अगर कोई करना चाहे तो क्या नहीं हो सकता.
इसकी मिसाल 2007 तक हादसों के लिए बदनाम गुरुडा इंडोनेशिया ने दी. 1950 से अब तक 12 खतरनाक हादसों के लिए बदनाम गुरुडा इंडोनेशिया के टॉप मैनेजमेंट से लेकर नीचे तक बड़े बदलाव हुए. एयरलाइन इतनी बदनाम हो गई कि यूरोपीय संघ ने इंडोनेशिया की सभी एयरलाइन कंपनियों को अपने यहां आने की अनुमति ही नहीं दी. लेकिन अब गुरुडा मुनाफा कमाने के करीब है और लोग उस पर भरोसा भी करने लगे हैं.
देश की छवि को नुकसान
दुनिया भर में घूमने के शौकीन एक बात कहते हैं कि अगर किसी देश को जानना है तो सबसे पहले उसकी मुख्य एयरलाइन्स में सवारी करो. इससे आपको वहां के लोगों के व्यवहार, उनकी तहजीब और पेशेवर रुख का पता चलता है. शायद एयर इंडिया इस मामले में भी अपनी और भारत की साख को बट्टा लगा रहा है.
रिपोर्ट: एजेंसियां/ओंकार सिंह जनौटी
संपादन: वी कुमार