बांग्लादेश की 'वीरांगनाओं' का दर्द
३० जून २०११वीरांगना का मतलब बहादुर महिला होता है. बांग्लादेश सरकार ने उन महिलाओं को वीरांगना की संज्ञा दी है जिनसे 1971 में मुक्ति युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सैनिकों ने बलात्कार किया. बांग्लादेश की आजादी के लिए लड़ने वाले लोगों का कहना है कि पाकिस्तान सेना ने दो लाख से ज्यादा महिलाओं से बलात्कार किया. बलात्कार की शिकार कई महिलाएं भारत चली गईं तो बहुत सी महिलाएं ऐसी थीं जिन्हें उनके परिवार ने स्वीकार नहीं किया और उन्होंने आत्महत्या कर ली.
अपनी कहानी बताते हुए आल्या बेगम की आंखों में आंसू आ जाते हैं. 13 साल की उम्र में उनका अपहरण कर लिया गया और फिर सात महीने तक उनसे सामूहिक बलात्कार किया गया. ''उन्होंने हमारे हाथ बांध दिए, चेहरे जला दिए और शरीर पर जलती सिगरेट के निशान छोड़े. मेरे जैसी हजारों महिलाएं वहां थीं. दिन में कई बार हमारे साथ बलात्कार हुआ. मेरा शरीर सूज गया और मुझे चलने में भी परेशानी होती थी. लेकिन उन्होंने हमें अकेला नहीं छोड़ा.''
आल्या का कहना है कि उन्हें दिन में सिर्फ एक बार खाने के लिए सूखी ब्रेड दी जाती और कभी कभार सब्जी. उन्होंने कई बार भागने की कोशिश की लेकिन वह नाकाम रहीं. कई लड़कियों की हत्या कर दी गई. आल्या को भी गोली मार दी गई थी लेकिन मुक्ति सेना ने उन्हें बचा लिया. जब वह घर लौटीं तो पांच महीने की गर्भवती थीं. जन्म के बाद ही उनके बच्चे की मौत हो गई.
आल्या के मुताबिक उन्हें बुरी औरत समझा गया. उनकी बेइज्जती की गई और बुरे नामों से बुलाया गया. वह बाद में ढाका चली गईं जहां उन्होंने छोटे मोटे काम किए. आल्या ने जब शादी की तो अपनी कहानी का जिक्र पति से नहीं किया. आज भी वह पुराने दिनों के बारे में बात करने से डरती हैं क्योंकि उन्हें डर है कि लोग उनका मजाक बनाएंगें.
आल्या के पति को जब उनके अतीत के बारे में पता चला तो उसने उनके साथ गाली गलौज करते हुए घर से निकालने की कोशिश की. लेकिन आल्या की बेटी ने उनका साथ दिया जिसके चलते पति को मानना पड़ा. आल्या सरकार से नाराज हैं क्योंकि उनके मुताबिक सरकार ने पुनर्वास के लिए कुछ नहीं किया और न ही उन्हें मुआवजा मिला.
आल्या बेगम की बेटी अस्मा एका 15 साल की हैं. अस्मा का कहना है कि भले ही समाज उनकी मां से शर्मिंदा हो लेकिन उन्हें अपनी मां पर गर्व है. अस्मा ने अपनी मां के लिए एक गाना भी लिखा है जिसमें उन्होंने बताने की कोशिश की है कि एक वीरांगना की बेटी के दिल में दर्द को देखने के लिए कोई तैयार नहीं है.
रिपोर्ट: बिजोयता दास, ढाका
संपादन: एस गौड़