ब्राउन पर निकाली ब्लेयर ने भड़ास
१ सितम्बर २०१०किताब बाज़ार में आने से पहले ही ब्लेयर ने गॉर्डन ब्राउन के बारे में अपनी राय लोगों के सामने रख दी. एक इंटरव्यू में ब्लेयर ने ब्राउन को "अजीबोगरीब, कठोर, भावना शून्य और दिमाग खराब कर देने वाला व्यक्ति" करार दिया है. ब्लेयर ने कहा कि प्रधानमंत्री के रूप में ब्राउन का कार्यकाल किसी काम का नहीं रहा. ब्लेयर ने ये भी कहा कि ब्राउन में राजनीतिक समझ नहीं दिखी. लंबे वक्त तक ब्रिटेन के प्रधानमंत्री रहने के बाद टोनी ब्लेयर ने 2007 में प्रधानमंत्री का पद गॉर्डन ब्राउन के सुपुर्द किया. ब्लेयर का कहना है," ब्राउन में राजनीतिक जोड़तोड़ की समझ तो दिखी लेकिन वो राजनीति के लिए नहीं बने. उनके अंदर न तो परिस्थितियों को समझने की ताकत है, न ही भावनाओं की समझ."
ब्लेयर की किताब ए जर्नी हैड बिन एट द सेंटर ऑफ इन्टेंस स्पेक्यूलेशन आज ही जारी होने वाली है. माना जा रहा है कि ब्राउन के बारे में ब्लेयर की ये राय किताब में भी नजर आएगी. हालांकि किताब में क्या है इस पर अभी तक बस अनुमान ही लग रहे हैं. ब्लेयर से जब पूछा गया कि क्या ब्राउन पागल कर देने की हद तक कठोर थे तो उन्होंने जवाब दिया "हां." हालांकि ब्लेयर ने ये भी माना, "वो काबिल और होशियार इनसान हैं और ब्राउन के इन गुणों के लिए वो उनका हमेशा सम्मान करेंगे."
ब्लेयर ने कहा है कि ब्राउन को हटाना इसलिए मुमकिन नहीं था क्योंकि पार्टी और मीडिया में वो बेहद लोकप्रिय थे. ब्राउन के साथ अपने संबंधों को ब्लेयर ने "बेहद मुश्किल" कहा और माना कि इसका चलना नामुमिकन था. हालांकि ब्लेयर ने ये मानने में संकोच नहीं किया कि उनकी सरकार के लिए ब्राउन एक बड़ी ताकत थे.
इराक पर अमेरिकी फौज का हमला और राष्ट्रपति सद्दाम हुसैन को सत्ता से हटाने में शामिल होने को ब्लेयर सही फैसला मानते हैं. ब्लेयर का कहना है कि सद्दाम का राष्ट्रपति बने रहना सुरक्षा के लिहाज से ठीक नहीं था. ब्लेयर ने बड़ी साफगोई से माना कि अल कायदा के आतंकी नेटवर्क का खतरा भांपने में उनसे चूक हुई. इराक में हुई मौतों पर ब्लेयर अपना दुख नहीं छिपा पाए. ब्लेयर ने कहा, "मुझे इराक में हुई मौतों का बेहद अफसोस है. जिन लोगों की ज़िंदगी के दिन कम हो गए और फिर उनकी मौत की वजहों पर उठे सवालों से उनके रिश्तेदारों का दुख बढ़ा इन सबने मुझे बहुत दुखी किया." ब्लेयर ने चेतावनी दी कि ईरान की वजह से परमाणु खतरे का संकट मंडरा रहा है और हो सकता है कि इसके लिए सैनिक ताकत का इस्तेमाल करने की जरूरत पड़े.
रिपोर्टः एजेंसियां/ एन रंजन
संपादनः ए जमाल