भारत में नहीं टूटेगा विवादित जहाज
९ मई २०१२पर्यावरण कार्यकर्ता गोपाल कृष्णा ने बताया है कि "ओरियंटल नाइसिटी" नाम का यह जहाज पिछले हफ्ते भारतीय जलसीमा में घुसा और जिस समय सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया, जहाज गुजरात की ओर बढ़ रहा था जहां उसे तोड़ा जाना था. भारत की पुराने जहाजों को तोड़ने वाली एक कंपनी की हांगकांग स्थित शाखा ने हाल में इस जहाज को खरीदा. इसे अब तोड़ने के लिए अलंग ले जाया जा रहा है जहां भारत का जहाज तोड़ने का उद्योग है.
अनुमति वापस
अदालत के फैसले के बाद गुजरात के समुद्री मामलों और प्रदूषण नियंत्रण विभाग ने जहाज को अलंग बीच के निकट खड़ा करने की अनुमति वापस ले ली. कृष्णा पर्यावरण सुरक्षा के लिए संघर्ष करते रहे हैं. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर कर भारत सरकार और जहाजरानी मंत्रालय को जहाज की खरीद और उसके भारत घुसने पर निर्देश देने को कहा था. सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछा था कि वह जहाज पर क्या कदम उठा रही है.
एक्सन कंपनी के जहाज को तोड़ने का कांट्रैक्ट लेने वाली कंपनी ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील करने की घोषणा की है. कंपनी के एक पार्टनर हर्षदभाई पाड़िया ने कहा है, "हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मानेंगे. हम फैसले का अध्ययन कर रहे हैं, हम अपील करेंगे."
जहाज कंपनी एक्सन वाल्देज शुरू से ही विवादों में रही है. 24 मार्च 1989 को यह जहाज अलास्का में चट्टानों से टकरा गया था जिसके बाद वहां के पर्यावरण के लिए संवेदनशील प्रिंस विलियम साउंड में करोड़ों गैलन तेल बह गया. समुद्र तट पर कच्चे तेल की काली परत बिछ गई थी और 40,000 से ज्यादा पक्षी मारे गए थे. इसमें पर्यावरण का भारी नुकसान हुआ और इलाके का मछली उद्योग चौपट हो गया.
लटके मामले
टेक्सास की एक्सन मोबिल कंपनी ने 1991 में विवादों के निबटारे के लिए हुए समझौते पर 90 करोड़ डॉलर खर्च किए. कई केस अब भी लड़े जा रहे हैं. बाद में दुर्घटना के साथ नाम जोड़े जाने से बचने के लिए 26 साल पुराने टैंकर को कई बार बेचा जा चुका है और उसका नाम पांच बार बदला जा चुका है. हालांकि टैंकरों के लिए 26 साल की उम्र बहुत ज्यादा नहीं होती लेकिन ओरियंटल नाइसिटी कई बार दुर्घटनाओं का शिकार हो चुका है. अंतिम टक्कर 2010 में दक्षिणी चीन सागर में हुई थी.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में बाजेल संधि का हवाला दिया है जिसमें जहाज को उसके मूल देश में मर्करी, आर्सेनिक, एसबेस्टस और बाकी तेल के प्रदूषण से सफाई करने की बात कही गई है, क्योंकि वह तोड़ने की जगह को प्रदूषित कर सकता है. जहाजों और टैंकरों को तोड़ने वाला दुनिया के सबसे बड़ा उद्योग में से एक भारत में है. वहां मजदूर जहाज को इस ढंग से तोड़ते हैं कि मूल्यवान धातु निकाली जा सके. पर्यावरण संस्थाओं की शिकायत है कि शिप ब्रेकिंग कंपनियां मजदूरों के स्वास्थ्य और पर्यावरण को जहरीले पदार्थों से बचाने का ख्याल नहीं रखतीं.
एमजे/ओएसजे (एपी)