महिलाओं को हिंसा से बचाएगा मोबाइल
२० जून २०१२नई दिल्ली को केवल भारत की राजधानी के ही नहीं, बल्कि अपराध की राजधानी के रूप में भी जाना जाता है. दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में और किसी महानगर में औरतों के खिलाफ हिंसा के इतने मामले सामने नहीं आते जितने नई दिल्ली में. पुलिस के आंकड़ों के अनुसार भारत में हर चार में से एक बलात्कार दिल्ली में ही होता है. दिल्ली की दो महिला पत्रकारों ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए एक मोबाईल एप तैयार किया है.
जिम्मेदारी किसकी
श्वेता पुंज और हिंडोल सेनगुप्ता दोनों दिल्ली में ही पली बड़ी हैं, दोनों पत्रकार हैं और दोनों की उम्र 35 से कम है. पांच साल पहले दोनों ने मिलकर वायपोल नाम की वेबसाइट तैयार की. इस साइट पर वे सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर जानकारी देती हैं. दिल्ली में महिलाओं की सुरक्षा के बारे में श्वेता पुंज कहती हैं, "महिलाओं की सुरक्षा एक ज्वलंत मुद्दा है. लेकिन इसका कोई समाधान निकालने की जगह पुलिस और सरकार बस एक दूसरे पर दोष डालने की फिराक में ही रहती हैं. सरकार का हाथ पर हाथ धरे बैठे रहना निराशाजनक है. इसलिए हमने इसकी जिम्मेदारी खुद उठा ली है. हम अपने तरीके से इस पर काम कर रहे हैं, क्योंकि हम तकनीक में विश्वास करते हैं."
फेसबुक पर अलार्म
श्वेता और हिंडोल अब फाईट बैक नाम के एक स्मार्ट फोन एप से महिलाओं की मदद करना चाहती हैं. इस एप को सालाना सौ रुपये के शुल्क पर वायपोल की साइट से डाउनलोड किया जा सकता है. एप के इस्तेमाल के बारे में हिंडोल बताती हैं, "मान लीजिए शाम के वक्त आप बाहर गईं. घर से निकलते ही आप इस एप को एक्टिवेट कर दीजिए. अब आप जहां भी जाती हैं, जीपीएस के जरिए पता लगाया जा सकता है कि आप कहां हैं. अगर आप किसी मुसीबत में पड़ जाएं तो आपको बस एक बटन दबाना है और पांच सेकंड के अंदर एप आपके मोबाइल से पांच एसएमएस और पांच ईमेल भेजेगा. ये उन पांच लोगों को भेजे जाएंगे जिनके नंबर आपने पहले से ही एप में सेव किए होंगे. इसके अलावा आपके फेसबुक पेज पर भी एक अलार्म संदेश पोस्ट किया जाएगा जिसे आपके सभी दोस्त देख सकेंगे. आपके जीपीएस डेटा के कारण वे सब जान सकेंगे कि आप कहां हैं."
पुलिस पर दबाव
फाईट बैक एप को लॉन्च हुए करीब छह महीने हो चुके हैं, लेकिन अब तक कुछ दो सौ महिलाएं ही इसका इस्तेमाल कर रही हैं. हिंडोल आने वाले समय को ले कर सकारात्मक हैं, "इस तरह की चीज को समय और संसाधनों की जरूरत होती है. अभी हमारा सफर शुरू ही हुआ है. जब यह एप उतना लोकप्रिय हो जाएगा जितना की हम चाहते हैं, तब यह सरकार और पुलिस पर दबाव बनाने में मददगार साबित होगा. तब कहीं जा कर दिल्ली में अधिकारी इस मामले को संजीदगी से लेने लगेंगे. और फिर अपराधियों पर भी दबाव बनेगा, जो अक्सर बिना किसी सजा के बच कर निकल जाते हैं."
अव्यवस्था की संस्कृति
इस एप के एक नए वर्जन पर भी काम चल रहा है, ताकि वे महिलाएं भी इसका इस्तेमाल कर सकें जिनके पास स्मार्ट फोन नहीं, बल्कि साधारण मोबाइल फोन है. योजना यह भी है कि इसका इस्तेमाल सिर्फ दिल्ली या महानगरों में ही नहीं बल्कि छोटे शहरों और आसपास के इलाकों में भी किया जा सके. दिल्ली के आसपास गुडगांव और नोएडा में भी महिलाओं के साथ हिंसा के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. हिंडोला कहती हैं, "यदि हम सामाजिक चुनौतियों का सामना करना चाहते हैं तो हमें तकनीक का सहारा लेना ही होगा."
भारत आज भी एक पुरुष प्रधान समाज है. घरेलू हिंसा, यौन उत्पीड़न, बलात्कार और महिलाओं के साथ छेड़ छाड़ के मामले रोजमर्रा की बात हैं. अधिकतर ये मामले दर्ज भी नहीं किए जाते हैं. श्वेता पुंज का कहना है, "भारत में अव्यवस्था एक संस्कृति बन चुकी है. यदि हम पुरुषों के बर्ताव को बदलना चाहते हैं तो हमें उनमें डर पैदा करना होगा."
रिपोर्ट: सांड्रा पेटर्समन / ईशा भाटिया
संपादन: आभा मोंढे