मानवाधिकार और टकराते हित
२१ जून २०११जर्मन शहर बॉन में चल रहे ग्लोबल मीडिया फोरम में अलग अलग संगोष्ठियों में इस पर चर्चा चल रही है. जब बात पश्चिमी देशों से अलग विश्व में मानवाधिकार की रणनीति बनाने पर हुई, तो फलीस्तीन से आए प्रतिनिधि ने बहस गर्म कर दी. उनका कहना था कि पश्चिमी देशों का नजरिया बिलकुल अलग है और विकासशील और संकटग्रस्त क्षेत्रों को लेकर उनका रवैया भी पक्षपातपूर्ण है. इस्राएल को मिल रहे पश्चिमी समर्थन पर भारी नाराजगी जताते हुए उन्होंने कहा कि सिर्फ दूर से बैठ कर और चर्चा करने से किसी मुद्दे का हल नहीं हो सकता.
फलीस्तीनी प्रतिनिधि ने भारी नाराजगी के साथ कहा, "पश्चिमी देशों की शह पर हमारी जमीन किसी और को दे दी गई और आज हम अपने बुनियादी अधिकार के लिए लड़ रहे हैं. उसमें भी कोई हमारा साथ नहीं दे रहा है. गजा और फलीस्तीनी क्षेत्र की स्थिति कितनी बुरी है, यह किसी से छिपी नहीं.'
इसके बाद फलीस्तीन में काम कर रहीं एक यूरोपीय स्वयंसेवी संस्था की प्रतिनिधि ने भी उनकी बात से सहमति जताई. उन्होंने कहा, "इस मुल्क का प्रतिनिधित्व करते हुए फलीस्तीन में काम करना बेहद मुश्किल है. मैं तो कभी कभी हताश हो जाती हूं कि इस समस्या का कोई हल निकल ही नहीं सकता. हमारे देशों का दबाव होता है कि हम उनके हितों का भी ध्यान रखें और जमीनी हकीकत कुछ और होती है."
ट्यूनीशिया से आईं पत्रकार सिल्हेम बेनजेदरीन ने बताया कि किस तरह से ट्यूनीशिया से होने की वजह से उन्हें वीजा तक में दिक्कतें आती हैं. अरब और विकासशील देशों को एक दूसरे से जोड़ने पर जोर देते हुए भारत के जयदीप कर्णिक ने कहा कि मानवाधिकारों को एशिया या पश्चिमी देशों में बांधने का जोखिम नहीं उठाना चाहिए क्योंकि यह मानव से जुड़ा अधिकार है और सभी मनुष्य इन बुनियादी अधिकारों के हकदार है.
इस बात पर भी चर्चा हुई कि किस तरह 27 देशों का संगठन यूरोपीय संघ विश्व नेतृत्व में बड़ा योगदान अदा कर सकता है और एकध्रुवीय (अमेरिका) विश्व संरचना में संतुलन पैदा कर सकता है.
यूरोपीय काउंसिल में विदेश नीति निर्धारण विभाग की फेलो सूजी डेनिसन ने इस बात को माना कि यूरोप का और अहम योगदान हो सकता है. उन्होंने कहा, "हर मुद्दे पर यूरोपीय संघ प्रतिक्रिया नहीं दे सकता और विश्व में मानवाधिकार के बड़े मुद्दों पर हम जरूर आवाज उठा रहे हैं."
अरब देशों में हो रहे बदलाव को देखते हुए विश्व में कैसी रणनीति बनाएं, इस पर कोई एकराय नहीं बन सकी लेकिन इस बात को जरूर प्रमुखता से उठाया गया कि सिर्फ वित्तीय हितों के लिए किसी देश का समर्थन या विरोध नहीं किया जाना चाहिए.
रिपोर्टः अनवर जे अशरफ
संपादनः ए कुमार