यूरोविजन के बाद अब वर्ल्डविजन
१७ मई २०११यूरोविजन सॉन्ग कॉन्टेस्ट पिछले 56 सालों से चल रहा है. फुटबॉल के बाद अगर कोई प्रतियोगिता पूरे यूरोप को एक साथ बांधती है, तो वह यूरोविजन ही है. इस बार जर्मनी के ड्यूसलडॉर्फ शहर में इसका आयोजन हुआ जिसका सीधा प्रसारण दुनिया भर के 55 देशों में करीब 13 करोड़ लोगों ने देखा.
यूरोविजन के प्रोग्राम संचालक जॉन ओला सैंड ने कहा कि यूरोविजन यूरोप के लिए वैसा ही है जैसा यूरोपियन फुटबॉल चैंपियंस लीग. लेकिन चैंपियंस लीग केवल चार साल में एक बार ही होती है, जब कि यूरोविजन का लुत्फ लोग हर साल ही उठा पाते हैं. सैंड ने कहा, "यह एक खास पल होता है, जब पूरे यूरोप में लोग एक साथ एक ही समय पर एक ही कार्यक्रम देखते हैं और उसका आनंद लेते हैं."
वर्ल्डविजन बड़ी चुनौती
वर्ल्डविजन सॉन्ग कॉन्टेस्ट कराने के बारे में जब सैंड से पूछा गया तो उन्होंने बताया, "अगर हम ऐसा कुछ आयोजित कर पाए, तो यह बहुत ही बड़ी बात होगी, लेकिन अभी तुरंत इसे शुरू करने के बारे में सोचा नहीं जा सकता. हां, अगर थोड़ा अधिक महत्वकांक्षी होकर सोचा जाए, तो हम जरूर कुछ कर पाएंगे, लेकिन यह एक बहुत ही बड़ी चुनौती होगी."
ड्यूसलडॉर्फ के फुटबॉल स्टेडियम को यूरोविजन के सेट में तब्दील करने में करीब एक महीने का समय लगा. सैंड कहते हैं कि चूंकि आयोजन इतने बड़े स्तर पर किया जाता है इसलिए तैयारियों के लिए काफी समय की जरूरत होती है. ऐसे में वर्ल्डविजन हर साल आयोजित करना काफी मुश्किल काम है. अगर इसे वर्ल्डकप की ही तरह चार साल में एक बार करने के बारे में सोचा जाए तो शायद यह हकीकत बन सकता है.
वित्तीय संकट से ब्रेक
सैंड ने कहा कि वित्तीय संकट से गुजर रहे यूरोप के लिए इस बार का यूरोविजन एक ब्रेक जैसा रहा, जिसकी यूरोप के लोगों को बहुत जरूरत थी, "इससे यह दिखता है कि कम से कम मनोरंजन और संगीत हमें एक कर सकते हैं. यूरोप अभी जिस मुश्किल समय से गुजर रहा है, संगीत के कारण इस घड़ी में भी वह एकजुट हो रहा है."
इस प्रतियोगिता में एक दिलचस्प बात यह देखने को मिली कि जहां एक तरफ जर्मनी में ग्रीस और आयरलैंड को वित्तीय मदद देने पर लोगों में नाराजगी देखी गई है, वहीं इन दोनों देशों को भारी संख्या में वोट भी जर्मनी से ही मिले. लोगों की नाराजगी का असर संगीत पर नहीं देखा गया. अब आगे अगर वर्ल्डविजन शुरू होता है तो यह देखना दिलचस्प रहेगा कि इसमें कितने देश हिस्सा लेते हैं, और कौन किसे वोट देना अधिक पसंद करता है.
रिपोर्ट: एजेंसियां/ईशा भाटिया
संपादन: आभा एम