विरोध प्रदर्शनों के साए में अवैध अप्रवासन का डर
८ फ़रवरी २०११रासमूसेन का मानना है कि अरब जगत में चल रहे विद्रोह का इस्राएल और फलीस्तीन के बीच शांति प्रक्रिया पर भी असर पड़ेगा. नाटो मुखिया ने कहा, "इलाके में अस्थायित्व अगर ज्यादा समय तक रहा तो अर्थव्यवस्था के लिए नुकसानदेह होगा साथ ही यूरोप में इस वजह से अवैध अप्रवासन भी बढ़ सकता है. जाहिर है कि अप्रत्यक्ष रूप से ही सही लेकिन उत्तरी अमेरिका और मध्यपूर्व में हो रही घटनाओं का यूरोप पर बुरा असर होगा. हालांकि इन घटनाओं को मैं नाटो के लिए सीधा खतरा नहीं मानता."
रासमूसेन ने कहा कि उत्तर अमेरिकी और यूरोपीय देशों का संगठन, मिस्र और दूसरे देशों के हालात पर गंभीरता से नजर बनाए हुए हैं. मिस्र में पिछले दो हफ्ते से बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. मिस्र की जनता राष्ट्रपति होस्नी मुबारक से पद छोड़ने की मांग पर अड़ी हुई है. मिस्र अमेरिका का सहयोगी है और अरब मुल्कों में जॉर्डन के साथ अकेला ऐसा देश है जिसने इस्राएल के साथ शांति समझौता कर रखा है.
मिस्र में विद्रोह के लिए लोगों को प्रेरणा ट्यूनीशिया से मिली जहां 30 साल पुरानी बेन अली की सरकार को उखाड़ फेंका गया और राष्ट्रपति को सउदी अरब में शरण लेनी पड़ी. अरब के दूसरे देशों यमन और जॉर्डन में भी विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं. ट्यूनीशिया में तो बेन अली के जाने के बाद लोगों का गुस्सा कुछ काबू में आ गया लेकिन मिस्र के हालात अभी भी गंभीर बने हुए हैं. राष्ट्रपति होस्नी मुबारक ने अगले चुनाव में भाग नहीं लेने का एलान तो कर दिया है लेकिन फिलहाल कुर्सी छोड़ने को तैयार नहीं हैं. मिस्र में इस साल सितंबर में राष्ट्रपति के लिए चुनाव होने हैं.
रिपोर्टः एजेंसियां/एन रंजन
संपादनः ओ सिंह