वेस्टरवेले ने भारत के बहुसांस्कृतिक अनुभवों को सराहा
१९ अक्टूबर २०१०इस बार सवाल भारतीय पक्ष की ओर से उठ रहे थे, जहां दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों को गहरा बनाने के अलावा छात्रों, इंजीनियरों और कुशल कामगारों को जर्मनी की ओर आकर्षित करना वेस्टरवेले के दौरे का एक उद्देश्य था.
जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल द्वारा मुल्टी-कुल्टी यानि बहुसांस्कृतिक समाज के विफल होने के बयान की गूंज दूर नई दिल्ली में भी सुनाई दे रही थी और विदेश मंत्री वेस्टरवेले के काम को मुश्किल बना रही थी जो खासकर नई दिल्ली के प्रतिष्ठित शिक्षा संस्थान आईआईटी पहुंचे थे ताकि भारत के एलीट संस्थान के छात्रों में जर्मन शिक्षा संस्थानों के लिए आकर्षण पैदा कर सकें.
एक ऐसे समय में जब जर्मनी में एक लाख इंजीनियरों और आईटी विशेषज्ञों की कमी की बात की जा रही है और वीजा नियमों में ढील देने की मांग हो रही है, आप्रवासियों के व्यवहार पर हो रही बहस विदेशी विशेषज्ञों को लुभाने के प्रयासों को आसान नहीं बना रही है.
भारत दौरे के अंतिम दिन गीडो वेस्टरवेले ने नई दिल्ली में बुद्धिजीवियों की एक गोष्ठी को संबोधित किया जहां उनसे एक बार और यह सवाल पूछा गया. चांसलर मैर्केल के बयान के विपरीत जाते हुए उन्होंने कहा कि आप्रवासियों को जर्मनी के कायदे कानून का पालन करना होगा. उन्होंने कहा, "यदि वे हमारे मूल्यों और कानूनों को स्वीकार करते हैं तो वे अपनी संस्कृति और धर्म का भी पालन कर सकते हैं."
बहुसांस्कृतिक समाज के रूप में भारत के अनुभवों की प्रशंसा करते हुए जर्मन विदेश मंत्री ने कहा कि बहुजातीय और बहुधार्मिक भारत दूसरे समाजों के लिए भी तगड़ा संदेश देता है. साथ ही उन्होंने जोड़ा कि विभिन्न जातियों और धर्मों के शांतिपूर्ण सहजीवन के लिए सहमति जरूरी है जिसे नियमित रूप से संशोधित करना होगा. विदेश मंत्री ने कहा कि धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक अंतर का इस्तेमाल अपमान, हिंसा और शोषण को उचित ठहराने के लिए नहीं किया जाना चाहिए.
जर्मनी चांसलर गैरहार्ड श्रोएडर के समय से ही भारत से कुशल कर्मियों को आकर्षित करने की कोशिश कर रहा है जिसमें उसे बहुत सफलता नहीं मिली है. 1990 के 600 की तुलना में छात्रों की संख्या बढ़कर लगभग 6000 हो गई है जबकि चीन के छात्रों की संख्या 30,000 है. जर्मन विश्वविद्यालयों के आईआईटी के साथ गहरे संबंध हैं और इस समय इन संस्थानों के सैकड़ों छात्र जर्मन विश्वविद्यालयों में मास्टर या पीएचडी कर रहे हैं.
जर्मनी भारत का पांचवा सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार है. 2009 में पारस्परिक व्यापार 13 अरब यूरो से अधिक रहा और 2010 के पहले पांच महीनों में उसमें 26 फीसदी की बढ़त हुई है. जर्मनी भारत का आठवां सबसे बड़ा निवेशक है जबकि पिछले सालों में भारतीय कंपनियों ने भी जर्मनी में बड़ा निवेश किया है.
रिपोर्ट: एजेंसियां/महेश झा
संपादन: आभा एम