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ओलंपिक खिलाड़ियों की आउटसोर्सिंग?

३१ जुलाई २०१२

कजाकिस्तान ने चीन से एक महिला वेटलिफ्टर को पांच साल के लिए उधार पर लिया, उसे एक नया नाम और नई नागरिकता दी, जिसने ओलंपिक में स्वर्ण जीत लिया. क्या यह पदक जीतने की नई तरकीब होगी.

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तस्वीर: Reuters

अब पांच साल खत्म हो रहे हैं और ओलंपिक स्टार को घर की याद आ रही है. वह चीन में अपने घर जाना चाहती है.

पांच साल के समझौते के तहत जुल्फिया चिनशानलो लंदन ओलंपिक  में कजाकिस्तान का प्रतिनिधित्व कर रही हैं. चिनशानलो दो बार विश्व विजेता रह चुकी हैं और क्लीन एंड जर्क स्पर्धा में उन्होंने 131 किलो का रिकॉर्ड बनाया है. 226 किलो उठा कर चीन ने ओलंपिक का भी रिकॉर्ड तोड़ दिया. कहती हैं, "अगर मैं चीन में रहती, तो शायद मेरे पास ओलंपिक खेलने का मौका नहीं होता."

19 साल की चिनशानलो चीन के हुनान प्रांत में पैदा हुईं. उनका नाम जाओ चांगलिंग था. 2008 में वह कजाकिस्तान पहुंचीं और अपना नाम जुल्फिया चिनशानलो में बदल दिया. चाइना डेली अखबार ने लिखा है, "वह चीनी थी. अब कजाकिस्तान की हैं और अगले साल उनका समझौता जब खत्म हो जाएगा तो वह शायद वापस चीन लौट आएंगी."

अखबार के मुताबिक जाओ हुनान के दाओशियान इलाके में पैदा हुईं. ओलंपिक खेलों में दी गई जानकारी के मुताबिक जुल्फिया कजाकिस्तान के अलमाटी इलाके में पैदा हुईं. बचपन से ही भारोत्तोलन में उनकी प्रतिभा को उनके माता पिता ने पहचान लिया और स्थानीय खेल स्कूल में 11 साल की उम्र से वह भारोत्तोलन की ट्रेनिंग करने लगीं.

2007 में फिर प्रांतीय खेल निदेशक ने उनसे पूछा कि क्या वे ओलंपिक में हिस्सा लेना चाहेंगी और क्या वह इसके लिए एक दूसरे देश की नागरिकता स्वीकार करने को तैयार हैं. उसके बाद जाओ ओर उनकी एक सहेली को कजाकिस्तान भेजा गया.

चिनशानलो उर्फ जाओ ने ओलंपिक फाइनल में चीन की जू जुन को हराया. चीन की सरकारी पत्रिका पीपुल्स डेली का कहना है कि जू का ओलंपिक के लिए चुना जाना शायद एक अच्छा फैसला नहीं था. वहीं, चिनशानलो की जीत के बाद कई लोग अटकलें लगा रहे हैं कि चीन कजाकिस्तान की अपनी खिलाड़ी के लिए प्रतियोगिता को आसान बनाने की कोशिश कर रहा था.

एमजी/एजेए (डीपीए)

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