कला का काला रूप
२९ जनवरी २०१३आम तौर पर कला जगत की छवि एक स्वतंत्र तंत्र के रूप में उभरती है. एक ऐसी दुनिया जिसमें कलाकार के लिए कोई सीमा नहीं होती, जहां नियम, कायदे और कानून नहीं होते और अगर होते भी हैं तो उन्हें तोड़ना मुश्किल नहीं. इसमें से कई बातें सिर्फ भ्रम हैं. दुनिया भर के कलाकारों से बने ऑनलाइन माध्यम आर्टलीक्स के जरिए भ्रष्टाचार की कई ऐसी कहानियां सुनने को मिल रही हैं जिनकी हमने कल्पना भी नहीं की होगी. वेबसाइट पर दुनिया भर के कलाकारों ने आर्ट गैलरियों, फिल्म निर्माताओं और सेंसरशिप से जुड़े मामलों की खुलकर शिकायत की है. इनमें भारतीय फिल्म निर्देशक अनुराग कश्यप के खिलाफ भी एक पत्र शामिल है.
कैसा भ्रष्टाचार
विकिलीक्स से प्रेरणा लेकर दुनिया भर के कलाकारों, इतिहासकारों और क्यूरेटरों ने मिलकर 2011 में आर्टलीक्स बनाई. कलाकारों का उद्देश्य है कि इस वेबसाइट से कला जगत में हो रहे भ्रष्टाचार को उजागर किया जाए.
सोंसू उन 8 कलाकारों में से एक हैं जिनकी खींची हुई तस्वीरें 2011 में स्विस म्यूजे डे एलेजे अवार्ड के लिए चुनी गई थीं. ये तस्वीरें उनके 'नेशन बिड' नाम के प्रोजेक्ट से चुनी गई थीं और तस्वीरों का पोर्टफोलियो तैयार करने के लिए उन्हें 4,000 यूरो की रकम दी गई. इसके बाद लाकॉस्ट समूह से एक उच्च स्तरीय अधिकारी के यह कहने पर कि सोंसू की तस्वीरें बहुत ज्यादा फलस्तीन पर आधारित हैं, उनका नाम वेबसाइट से हटा दिया गया.
इसके बाद आठ कलाकारों के काम के रिव्यू में भी सोंसू का काम शामिल नहीं किया गया. साथ ही संग्रहालय ने सोंसू से मांग की कि वह उस प्रेस रिलीज के लिए सहमति दें जिसमें लिखा है कि उन्होंने खुद समय न होने के कारण अपना नाम बाहर कर लिया. सोंसू के ऐसा करने से इनकार करने पर खबर दुनिया भर की मीडिया मीडिया में फैली. इसके बाद लाकॉस्ट को सेंसरशिप वापस लेनी पड़ी और वह इनाम भी निलंबन की भेंट चढ़ गया.
सोंसू का मामला इकलौता नहीं है. कलाकारों और क्यूरेटरों से जुड़ी ऐसी और घटनाएं सामने लाने के लिए आर्टलीक्स बनाई गई है ताकि मिलकर इस तरह के भ्रष्टाचार का सामना किया जा सके. आर्टलीक्स को शुरू करने में प्रमुख भूमिका निभाने वाले डिमिट्री विलेंस्की के अनुसार, "इस समय सबसे बड़ी समस्या यह है कि फिलहाल घरेलू स्तर पर ही बड़ी सारी समस्याएं हैं लेकिन अभी कोई आंदोलन के लिए आगे नहीं आ रहा."
भारत भी अनछुआ नहीं
भारतीय क्यूरेटर और कला से जुड़े मामलों के लेखक जॉनी एमएल ने बताया कि भारत में भी इस तरह की धोखाधड़ी के मामले आम हैं जब कभी चेक बाउंस हो जाता है तो कभी बेभाव दाम बढ़ने लगते हैं. समझ ही नहीं आता कि इन चीजों को क्या बात प्रेरित कर रही है, ऐसा हो रहा है तो क्यों हो रहा है. जॉनी कहते हैं, "कला जगत में बढ़ रहे भ्रष्टाचार के लिए कोई सिस्टम अकेला जिम्मेदार नहीं. सिस्टम हमसे ही बनता है, तो इसकी जिम्मेदारी भी सभी की है."
जॉनी पिछले दिनों दिल्ली में हुई यूनाइटेड आर्ट फेयर के निर्देशक भी थे. जॉनी एमएल ने डॉयचे वेले से कहा, "आर्टलीक्स कलाकारों के हक में एक बहुत ही अच्छा कदम है. इससे उन सब कलाकारों को आत्मविश्वास मिलेगा जो कई बार दबाव में आकर अपनी बात नहीं रख पाते हैं औऱ नुकसान उठाते हैं."
उनके अनुसार कला वह क्षेत्र है जिसे हर तरह के भ्रष्टाचार के खिलाफ खड़े होने के लिए स्वतंत्र होना चाहिए. यह बड़े दुख की बात है कि खुद कला और कलाकार भ्रष्टाचार के लपेटे में हैं.
चुप्पी तोड़नी होगी
वेबसाइट के संस्थापकों के अनुसार उनका मकसद है भ्रष्ट तंत्र के खिलाफ चुप्पी तोड़ना. विलेंस्की ने डॉयचे वेले को बताया, "आप अनुमान ही लगा सकते हैं कि इसके जरिए कौन कौन सी बातें सामने आएंगी. हमारा मकसद है दुनिया के सामने वे बातें लाना जो कला जगत के बारे में आम तौर पर लोगों को नहीं पता."
विलेंस्की रूसी कला समूह चो डीलाट के सदस्य हैं. उनके बुखारेस्ट की यूनिक्रेडिट गैलरी के साथ काम करने के तल्ख अनुभव आर्टलीक्स में मसाले की तरह काम रहे हैं. उनके इन खराब अनुभवों में सेंसरशिप से जुड़ी परेशानियां और समय पर सही भुगतान न मिलने जैसी कठिनाइयां भी शामिल हैं.
लंदन में रहने वाले मोरारियू रोमानियाई रिसर्चर और क्यूरेटर हैं. वे आर्टलीक्स शुरू होने के छह महीने बाद इससे जुड़े. उनके अनुसार आर्टलीक्स का मकसद विकिलीक्स की तरह सनसनी फैलाने का बिलकुल नहीं है. बल्कि वह चाहते हैं कि वेबसाइट के जरिए बाजार और बिक्री से जुड़े कलाकारों के अधिकारों की खुली जानकारी हो और उनकी छानबीन हो सके, "हम चाहते हैं कि संरचनात्मक त्रुटियों को उजागर कर सकें. व्यक्ति विशेष से जुड़ी जानकारी वेबसाइट पर छाप कर हम सिस्टम के भीतर की दिक्कतों को उजागर कर सकते हैं. आर्टलीक्स इन तमाम दिक्कतों और भ्रष्ट मामलों का संग्रह है."
शिकायत की शर्तें
ऐसा नहीं है कि विकिलीक्स की तरह आर्टलीक्स में अपनी कहानी कहने वाले अपना नाम नहीं छिपाते. संस्थापकों का कहना है कि कला जगत बहुत छोटा है और इसमें नाम छिपा रहना मुमकिन नहीं. वे मानते हैं कि नाम सामने रखने से वेबसाइट पर किसी प्रकार की अफवाहें या गैरजरूरी गपशप करने के आरोप की संभावना भी नहीं रहती. कोई भी कुछ भी लिखता है, तो उसकी पूरी जिम्मेदारी लेगा. वेबसाइट पर कोई भी शिकायत लिखते समय लिखने वाले को प्रमाण के रूप में कोई रिपोर्ट, ईमेल या जरूरी दस्तावेज भी जमा करने होते हैं जिससे शिकायत के सही होने की पुष्टि की जा सके.
वेलिंस्की के अनुसार, "वेबसाइट का मकसद सिर्फ शिकायतें दर्ज करना नहीं है, बल्कि लोगों को सही रास्ता दिखाना भी है. आर्टलीक्स के जरिए लोगों के सामने आदर्शवादी या व्यवहारिक मॉडल भी जरूरी है." उन्होंने व्यवहारिक मॉडल के रूप में 'नो फी स्टेटमेंट' मॉडल का उदाहरण दिया. इसके अनुसार गैलरी मालिकों को इस बात की सफाई देनी होगी कि किसी इंटर्न या कलाकार को अगर पैसे नहीं दे रहे हैं तो क्यों नहीं दे रहे हैं. यह एक तरह का प्रतिरोध जाहिर करने का तरीका है. आर्टलीक्स ने दुनिया भर के कलाकारों का ध्यान अपनी ओर खींचा है.
रिपोर्ट: हेलेन व्हिटल/समरा फातिमा
संपादनः ए जमाल