EU Schuldenkrise
२६ अक्टूबर २०११बुधवार की शिखर भेंट अंतिम भेंट नहीं होगी जिसमें कर्ज में डूबे देशों, बैंकों और खस्ताहाल वित्तीय व्यवस्था को बचाने पर चर्चा होगी. जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल का मानना है कि छोटे कदमों के जरिए ही संकट पर काबू पाया जा सकता है. अपनी हिचकिचाहट के लिए उनकी अक्सर आलोचना की जाती है, लेकिन उन्हें पता है कि उन्हें यूरोप को सालों तक प्रभावित करने वाले गंभीर फैसलों की जिम्मेदारी भी लेनी होगी.
उन्हें और यूरोप के दूसरे शीर्ष नेताओं को अभी यह समझने में परेशानी हो रही है कि उन्हें क्या फैसला लेना है. विशेषज्ञों की परस्पर विरोधी सलाहों से कैसे निबटना है. इसीलिए यूरोपीय संघ में चल रही बातचीत इतनी उलझी हुई है. यूरो देशों की मूल समस्या इस समय यह है कि दोनों महत्वपूर्ण देश जर्मनी और फ्रांस अभी भी बैंक संकट, कर्ज संकट और भरोसे के संकट के समाधान पर एकमत नहीं हैं.
किसकी चलेगी?
जर्मन चांसलर करदाताओं का और पैसा ग्रीस या दूसरे देशों को देने को तैयार नहीं. वे संकट का समाधान यूरोपीय केंद्रीय बैंक के जरिए करने को तैयार नहीं. जर्मनी में मुद्रास्फीति होने का डर बड़ा है. इसके विपरीत फ्रांसीसी राष्ट्रपति निकोला सारकोजी का मानना है कि फ्रांस अपने बैंकों को अकेले बचाने और दूसरे देशों को अधिक धन देने की हालत में नहीं है. उनका कहना है कि तकनीकी रूप से 1,000 अरब यूरो का बेलआउट पैकेज भी लोगों को यूरोपीय बॉन्ड खरीदने को प्रेरित नहीं करेगा.
फ्रांस चाहता है कि यूरोपीय बैंक असीमित मात्रा में धन मुहैया कराए. फ्रांसीसी विशेषज्ञों के अनुसार लगातार बेलआफट कोष को भरने के बदले यह सस्ता विकल्प होगा. उसके अनुसार ग्रीस को कर्ज माफी का स्पेन, इटली और अंत में फ्रांस जैसे देशों पर बुरा असर होगा. चूंकि इस समय कोई पक्ष अपनी बात मनवाने की हालत में नहीं है. बातचीत इतनी कठिन है.
अंतरिम समाधान की संभावना
बुधवार को शिखर भेंट में तिहरे समझौते की संभावना है, जो अंतिम हल तो नहीं होगा, लेकिन फिर से कुछ समय के लिए राहत देगा. ग्रीस के लिए कर्ज के एक हिस्से को माफ करने पर सहमति हो सकती है, जो इतना छोटा होगा कि ग्रीस को फिर से पटरी पर ला सके और फ्रांसीसी बैंकों को राहत दे. बैंकों की पूंजी सिर्फ इतनी बढ़ाई जाएगी जिससे ग्रीस के दिवालिया होने को सह सकेंगे, इटली को नहीं. यूरो बचाव कोष को बढ़ा दिया जाएगा, लेकिन इतना नहीं कि विश्व भर के निवेशकों का यूरो जोन में भरोसा फिर से कायम हो सके. जर्मन नुस्खे को माना जाए या फ्रांसीसी नुस्खे को, इस पर फैसले को टाल दिया जाएगा.
अमेरिका और ब्रिटेन फ्रांसीसी मॉडल का समर्थन कर रहे हैं यानी नोट छापो और मुद्रास्फीति का जोखिम उठाओ. दरअसल ये देश भी यही कर रहे हैं. वित्त बाजार भी संभवतः यही उम्मीद कर रहे हैं कि यूरोप अमेरिकी मॉडेल पर चले. इसलिए अंत में जर्मनी को यूरोप को बचाने के लिए रियायत देनी पड़ सकती है. इस समय जर्मनी का सबसे अच्छा साथी यूरोपीय केंद्रीय बैंक है. वह मुश्किल में पड़े देशों को सीधे धन देने से मना कर रहा है. वह कितने समय तक इस रुख पर कायम रह सकता है, इस पर बड़ा सवाल है. बैंक के फ्रांसीसी प्रमुख जां क्लोज त्रिचेट रिटायर हो रहे हैं और उनकी जगह इटली के मारियो द्रागी ले रहे हैं. 18 महीने पहले बैंक द्वारा सरकारी बॉन्ड की खरीद पहली गलती थी, अगली गलती बचाव कोष के लिए असीमित धनराशि मुहैया करना होगी, क्योंकि और कोई विकल्प नहीं है. दिसंबर में अगली शिखर भेंट के समय हमें ज्यादा पता होगा.
समीक्षा: बैर्न्ड रीगर्ट/मझा
संपादन: ओ सिंह