दिल्ली के माथे पर बलात्कार का कलंक
१८ दिसम्बर २०१२दिल्ली और पूरे देश में एक एक नेता की सुरक्षा में पुलिस और सुरक्षाबलों का पूरा दस्ता तैनात रहता है लेकिन आम आदमी के सुरक्षा की बात हो तो पुलिसकर्मियों की कमी बताई जाती है.
महिलाओं से जुड़ी संस्था जागोरी की एक रिसर्च के अनुसार दिल्ली यूनिवर्सिटी में भी महिलाएं अपने आप को असुरक्षित महसूस करती है. रिसर्च के अनुसार महिलाओं ने अक्सर सेक्स उत्पीड़न की शिकायत अधिकारियों से की है लेकिन उन पर इसका कोई असर नहीं हुआ है.
समाज शास्त्र की प्रोफेसर जानकी अब्राहम के अनुसार "जब भी दिल्ली यूनिवर्सिटी में महिलाओं की सुरक्षा की बात होती है तो सबसे पहले साइकिल रिक्शा वालों को हटाने की बात की जाती है जबकि सच यह है कि सड़क पर इन साइकिल रिक्शा चालकों कि वजह से महिलाएं अपने आप को कम से कम कुछ हद तक सुरक्षित पाती हैं." दिल्ली के जाने माने आर्किटेक्ट केटी रविंद्रन का कहना भी कुछ ऐसा ही है. रविंद्रन के अनुसार "दिल्ली की सड़कों पर छोटे मोटे फेरीवाले और खोमचा लगाने वालों की वजह से महिलाएं सुरक्षित रहती हैं.''
ये देखा गया है कि पुरानी दिल्ली के भीड भाड़ वाले इलाकों में छेड़छाड़ की खबरें न के बराबर आती हैं जबकि दक्षिणी दिल्ली के अमीर रिहायशी इलाकों में यह आम बात है. इन इलाकों के लोग घरों के दरवाजे बंद रखते हैं और सुनसान सड़कों पर जुर्म करने वालों को मौका मिलता है.
यह सच है कि पुलिस हर महिला के साथ हर वक्त नहीं रह सकती लेकिन यह भी सच है कि अपराधियों के मन से पुलिस का डर मिट गया है. कुछ इलाकों में तो इसके लिए पुलिस ही दोषी है. भारत की संसद के बिलकुल पास इंडिया गेट के इलाके में राज पथ पर मैदानों में सूरज ढलते ही जुर्म कि दुनिया हरकत में आ जाती हैं. पुलिस की नाक के नीचे अपराधी अपनी हरकतों को अंजाम देते हैं. कई बार तो वहां पर आसमाजिक तत्व शाम को सैर के लिए आई महिलाओं को भी नहीं बख्शते. वहां खड़ी पुलिस की जीप और उसमें बैठे कांस्टेबल भी तभी हरकत में आते हैं जब कोई राजनेता लाल बत्ती वाली गाड़ी में गुजरता है.
बलात्कार जैसी घटनाओं के बाद नेता एक दूसरे के खिलाफ बयान देने में ही व्यस्त रहते हैं. कुछ ही दिन पहले दिल्ली कि मुख्य मंत्री शीला दीक्षित ने एलान किया था कि दिल्ली महिलाओं के लिये सुरक्षित है. वसंत विहार हादसे के तुरंत बाद बीजेपी नेता मुख्तार अब्बास नकवी ने गृह मंत्रालय और दिल्ली पुलिस को दोषी बताया. नकवी के अनुसार "यह दिल्ली सरकार की नाकामयाबी की कि वजह से हुआ है " नेता एक दूसरे के बारे में चाहे जो कहें लेकिन लोगों ने दोनों दलों का शासन देखा है और स्थितियां कमोबेश एक जैसी ही रही हैं.
जागोरी के सुरक्षित दिल्ली अभियान की निदेशक कल्पना विश्वनाथ के अनुसार "दिल्ली में बस स्टॉप पर अंधेरा रहता है और वे महिलाओं के लिये सुरक्षित नहीं है." अभियान के तहत कई बार प्रशासन से अपील की गई कि बस स्टॉप के पास छोटी मोटी दुकान चला दी जाएं जिससे कि वहां थोडी बहुत हलचल रहे लेकिन दिल्ली प्रशासन पर कोई असर नहीं हुआ.
जहां तक बलात्कार का सवाल है तो इसके लिए सीधे सीधे पुरुष और पुरुषवादी सोच ही जिम्मेदार है लेकिन फिर भी प्रशासन को इसे रोकने के लिए कदम तो उठाना ही होगा.
रिपोर्ट: नौरिस प्रीतम, नई दिल्ली
संपादन: निखिल रंजन