वर्ल्ड कप को पोंटिंग का अलविदा
२५ मार्च २०११रिकी पोंटिंग और सचिन तेंदुलकर में कोई तुलना नहीं की जा सकती. रिकॉर्डों के मामलें में पोंटिंग हमेशा मास्टर ब्लास्टर का पीछा करते रह गए. लेकिन कुछ बातें ऐसी हैं जहां वो हमेशा सचिन पर भारी पड़े. करो या मरो की स्थिति वाले बड़े मैचों में रिकी पोंटिंग हमेशा ऑस्ट्रेलिया की सबसे बड़ी ताकत रहे. अहमदाबाद में हार के बावजूद उन्होंने फिर यह साबित किया.
स्पिन गेंदबाजों की खूब मदद कर रहे विकेट पर रिकी पोंटिंग बेहद संयम और समझ के साथ खेले. उन्होंने वक्त लिया. भारतीय स्पिनरों को हावी होने से रोका और किसी तरह अकेले दम पर ऑस्ट्रेलिया को 260 के स्कोर तक पहुंचाया. 104 रन की पारी उन्होंने ऐसे वक्त में खेली जब टीम को उनकी सबसे ज्यादा जरूरत थी.
इससे पहले 1999 के वर्ल्ड कप सेमीफाइनल में भी उन्होंने शानदार शतक जड़ा और वेस्ट इंडीज के जबड़े से जीत खींच ली. 2003 के वर्ल्ड कप फाइनल में पोंटिंग ने 140 रन की नाबाद पारी खेलकर भारत को पहले ही मनोवैज्ञानिक ढंग से हरा दिया. ऑस्ट्रेलिया चैंपियन बना.
लेकिन इस बार क्रिकेट का यह अर्जुन अकेला पड़ गया. एक अहम मौके पर बाकी खिलाड़ी गच्चा खा गए. शॉन टैट जैसे युवा तेज गेंदबाज बेतरतीब ढंग से गेंदबाजी करते रहे. फील्डिंग भी ऑस्ट्रेलिया के स्तर के मुताबिक नहीं हुई. यह फिर भी पोंटिंग की कसी कप्तानी का ही कमाल था कि भारतीय टीम की सांसें फूल तो गई ही थीं.
एक सुलझे कप्तान के नाते पोंटिंग ने हार के लिए किसी एक खिलाड़ी को जिम्मेदार नहीं ठहराया. उन्होंने खुद पूरी टीम के साथ हार की जिम्मेदारी ली. ब्रेट ली को सांत्वना देते हुए पोंटिंग ने बड़े शांत ढंग से कहा, ''ब्रेट ने बहुत मेहनत करके 14 महीने बाद वापसी की. इस मैच में भी उन्होंने अपनी पूरी जान लगा दी. यह हार उन्हें झकझोर देगी.''
वैसे ऑस्ट्रेलियाई कप्तान ने कुछ अहम सवाल भी उठाए. आईसीसी को ताना सुनाते हुए उन्होंने कहा, ''टूर्नामेंट के टाइम टेबल ने भी हमारी मदद नहीं की. पिछले 10 दिन में मेरी टीम ने चार मैच खेले हैं. मैं इसे हार का बहाना नहीं बना रहा हूं. लेकिन यह अच्छा होता कि सभी टीमों को बराबर का वक्त दिया जाता.''
ग्लेन मैक्ग्रा, शेन वॉर्न, एडम गिलक्रिस्ट और मैथ्यू हेडेन जानते हैं कि इस वक्त उनके दोस्त रिकी पोंटिंग के दिल पर क्या बीत रही है. एक ऐसा कप्तान जिसने क्रिकेट की दुनिया पर करीब एक दशक तक राज किया, अब थकान और मायूसी कोने में जा चुका है. पोंटिंग का दौर अब खत्म हो चुका है.
रिपोर्ट: ओंकार सिंह जनौटी
संपादन: उज्ज्वल भट्टाचार्य